China Victory Day Parade: चीन की द्वितीय विश्व युद्ध वाले विक्ट्री परेड का क्या है इतिहास, जानें- भारत कनेक्शन

China Victory Day Parade: चीन ने तीन सितंबर को द्वितीय विश्व युद्ध में जापान पर अपनी विजय की 80वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में अपनी अब तक की सबसे बड़ी सैन्य परेड आयोजित की। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ इस परेड को देखने वालों में व्लादिमीर पुतिन और किम जोंग उन सहित 26 विदेशी नेता थे

अपडेटेड Sep 03, 2025 पर 11:51 PM
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China Victory Day Parade: चीन ने सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करते विशाल परेड में पहली बार कई नए हथियारों का प्रदर्शन किया

China Victory Day Parade: चीन ने तीन सितंबर को द्वितीय विश्व युद्ध में जापान पर अपनी विजय की 80वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में अपनी अब तक की सबसे बड़ी सैन्य परेड आयोजित की। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ इस परेड को देखने वाले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी थे। सैन्य साजो-सामान के अलावा परेड में चीन की कूटनीतिक शक्ति का भी प्रदर्शन हुआ। पुतिन के अलावा उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन सहित 26 विदेशी नेताओं ने भी इस कार्यक्रम में भाग लिया। अमेरिका के बाद चीन दूसरा सबसे बड़ा रक्षा बजट वाला देश है। 

भारत के पड़ोसी देशों से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली और मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने परेड में भाग लिया। पीटीआई ने सूत्रों के हवाले से बताया कि चीन में भारत के राजदूत प्रदीप कुमार रावत भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए। जापान और दक्षिण कोरिया के अलावा अमेरिका और यूरोपीय संघ के प्रमुखों ने परेड से दूरी बनाए रखी। परेड में अतिथियों में एक प्रमुख अनुपस्थिति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रही।

परेड में विदेशी नेताओं की उपस्थिति, जापान और चीन के बीच कूटनीतिक विवाद का विषय बन गई है, क्योंकि टोक्यो ने विश्व नेताओं से इसमें भाग न लेने का आग्रह किया था। चीन ने विश्व नेताओं से इस कार्यक्रम में शामिल न होने के अनुरोध को लेकर जापान के समक्ष कूटनीतिक विरोध दर्ज कराया है।

अपने भाषण में शी जिनपिंग ने कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध में जापान के खिलाफ जीत आधुनिक समय में विदेशी आक्रमण के खिलाफ चीन की पहली पूर्ण विजय है। शी ने कहा कि यह जीत सत्तारूढ़ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के नेतृत्व में जापानी आक्रमण के खिलाफ एक राष्ट्रीय संयुक्त मोर्चे के तहत हासिल की गई थी।

परेड में प्रधानमंत्री मोदी की अनुपस्थिति को समकालीन भू-राजनीति की जटिलताओं से जोड़ा जा रहा है। इसमें द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में पराजित देश जापान, भारत के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक है। दरअसल, Quad के किसी भी सदस्य ने इसमें भाग नहीं लिया। इस लिहाज से बीजिंग परेड में पीएम मोदी की अनुपस्थिति को समकालीन भू-राजनीति के चश्मे से देखना उचित है। हालांकि, ये तथ्य भी भी अपने आप में अधूरा है।

द्वितीय विश्व युद्ध के अंत की कहानी और निशानी


पहली कहानी के मुताबिकस 2 सितंबर, 1945 को जापान ने टोक्यो खाड़ी में अमेरिकी प्रमुख जहाज Missouri पर एक औपचारिक आत्मसमर्पण समारोह में भाग लिया। 9 सितंबर को नानजिंग में जापान और चीन के बीच एक अलग आत्मसमर्पण कार्यक्रम हुआ, जिससे द्वितीय विश्व युद्ध औपचारिक रूप से समाप्त हो गया

इतिहास की सबसे बड़ी वालंटियर आर्मी

इतिहासकार श्रीनाथ राघवन ने द्वितीय विश्व युद्ध में अविभाजित भारत की भूमिका और समकालीन दक्षिण एशिया पर इसके स्थायी प्रभाव पर एक विस्तृत किताब लिखी है। 'India’s War: World War II and the Making of Modern South Asia' में, उन्होंने लिखा है कि ब्रिटिश राज के तहत भारतीय सेना ने लगभग 25 लाख सैनिकों को ट्रेनिंग देकर तैनात किया थाइससे यह इतिहास की सबसे बड़ी वालंटियर आर्मी बन गईउनमें से लगभग 90,000 सैनिक मारे गए या अपंग हो गएभारतीय सैनिकों ने सभी प्रमुख युद्धक्षेत्रों, इटली, उत्तरी अफ्रीका, पश्चिम एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और सबसे महत्वपूर्ण, भारत में युद्ध लड़ा

ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उनकी मदद के लिए रूस द्वारा सम्मानित किया गया था। रॉयल इंडियन एयर फ़ोर्स में एक पायलट के रूप में उन्होंने स्टेलिनग्राद की लड़ाई के दौरान घिरी हुई लाल सेना को सुरक्षित रखने के लिए कई उड़ानें भरी थीं। राघवन ने बताया कि द्वितीय विश्व युद्ध के नतीजे में भारत का योगदान केवल सैनिकों तक सीमित नहीं था। वाशिंगटन से लेकर बीजिंग तक कई समकालीन राजनीतिक दिग्गज उस नींव को आगे बढ़ा रहे हैं जो आंशिक रूप से भारतीय खून और खजाने के माध्यम से बनाई गई है।

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इतिहासकारों से हुई भूल?

पश्चिमी युद्ध इतिहासकारों की नजर में अंग्रेजों के लिए लड़ने वाले भारतीय सैनिक भुला दिए गए थे। द्वितीय विश्व युद्ध में भारत की भूमिका पर सार्वजनिक हस्तियों द्वारा शायद ही कभी बात की जाती है। शायद इसके लिए सीधी रेखा का अभाव जिम्मेदार है।

Akhilesh Nath Tripathi

Akhilesh Nath Tripathi

First Published: Sep 03, 2025 11:48 PM

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