अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बीच तनातनी बढ़ती जा रही है। अब यह अदातल की चौखट पर पहुंच गई है। दोनों एक-दूसरे के आमने-सामने आ गए हैं। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने बताया कि उसने ट्रप प्रशासन के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया है। जिससे इस प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी और रिपब्लिकन नेता के बीच की लड़ाई तेज हो गई है। डोनाल्ड ट्रंप ने हार्वर्ड को मिलने वाली फेडरल फंडिग (यानी जो पैसा ट्रंप प्रशासन भेज रहा है) पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही यूनिवर्सिटी में होने वाली तमाम एक्टिविटी पर बाहरी राजनीतिक सुपरविजन लागू करने की मांग की है।
ट्रंप सरकार ने हार्वर्ड, कोलंबिया और अन्य यूनिवर्सिटी की सरकारी फंडिंग रोकी है। इसकी वजह ये है कि इन यूनिवर्सिटीज ने अपने यहां फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनों पर रोक नहीं लगाई। सरकार का कहना है कि यूनिवर्सिटीज अपने कैंपस में यहूदी विरोधी भावनाओं को कंट्रोल करने में पूरी तरह से फेल रही है। इजरायल के गाजा पर हमले के बाद फिलिस्तीन के समर्थन में अमेरिकी यूनिवर्सिटीज में प्रदर्शन की शुरुआत हुई थी। सरकार से मांग की गई थी कि इजरायल को समर्थन देने से इनकार कर दिया जाए।
11 अप्रैल को हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को ट्रंप प्रशासन की ओर से एक पत्र लिखा गया था। जिसमें यूनिवर्सिटी में व्यापक सरकारी और नेतृत्व सुधारों और प्रवेश नीतियों में बदलाव की मांग की गई थी। इसमें यूनिवर्सिटी से परिसर में विविधता के बारे में विचारों की जांच करने और कुछ छात्र क्लबों को मान्यता देना बंद करने की भी मांग की गई थी। ऐसे में हार्वर्ड के अध्यक्ष एलन गार्बर ने कहा कि हार्वर्ड यूनिवर्सिटी मांगों के आगे नहीं झुकेगा। इसके कुछ ही घंटों बाद ट्रंप सरकार ने संघीय निधि में अरबों डॉलर की फंडिंग पर रोक लगा दी। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने ट्रंप प्रशासन की ओर से फंडिंग रोकने के फैसले को अवैध और असंवैधानिक करार देने की मांग की है। हार्वर्ड का दावा है कि यह कार्रवाई विश्वविद्यालय की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कमजोर करती है।
ट्रंप प्रशासन का पत्र वायरल
दरअसल, सरकार ने हार्वर्ड को 11 अप्रैल को मांगों की एक लंबी लिस्ट भेजी थी। ट्रंप सरकार के अधिकारियों को लगा था कि यह लिस्ट बातचीत की शुरुआत है और इसे गोपनीय रखा जाएगा। लेकिन हार्वर्ड ने इस लिस्ट को सार्वजनिक कर दिया। जिसके बाद ट्रंप प्रशासन हैरान रह गया। हार्वर्ड के अध्यक्ष एलन गार्बर ने कहा कि कोई भी सरकार चाहे वह किसी भी पार्टी की हो, वो निजी यूनिवर्सिटी को यह तय करने का अधिकार नहीं दे सकती है कि वे क्या पढ़ाएं, किसे नियुक्त करें और किसे प्रवेश दें और किस सेक्टर में रिसर्च करें।