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Nepal Protest: बांग्लादेश की राह पर चला नेपाल, पुराने नेताओं का खेल खत्म, अब अंतरिम सरकार ही आखिरी रास्ता!

काठमांडू में सरकार से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि प्रदर्शनकारियों का एक बड़ा वर्ग अब ऐसी अंतरिम सरकार चाहता है, जिसे या तो आम नागरिकों का समूह चलाए या फिर किसी पूर्व मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में बनाया जाए। उनका कहना है कि ओली की सरकार ने जनता का भरोसा खो दिया है। नेपाल के भू-राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति बांग्लादेश मॉडल जैसी लग रही है

अपडेटेड Sep 10, 2025 पर 1:33 PM
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Nepal Protest: बांग्लादेश की राह पर चला नेपाल, पुराने नेताओं का खेल खत्म (PHOTO-AP)

संसद को आग के हवाले कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट जलाकर राख कर दिया गया। राष्ट्रपति भवन पर हमला कर उसे भी जला दिया गया। यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का घर भी आग में झोंक दिया गया। काठमांडू बगावत की आग में जल रहा है और सड़कों से आवाज उठ रही है कि अब अंतरिम सरकार बनाई जाए। यह सिर्फ छोटे-मोटे सुधारों की बात नहीं है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि पूरा राजनीतिक तंत्र अब पूरी तरह से खत्म हो चुका है।

काठमांडू में सरकार से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि प्रदर्शनकारियों का एक बड़ा वर्ग अब ऐसी अंतरिम सरकार चाहता है, जिसे या तो आम नागरिकों का समूह चलाए या फिर किसी पूर्व मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में बनाया जाए। उनका कहना है कि ओली की सरकार ने जनता का भरोसा खो दिया है। नेपाल के भू-राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति बांग्लादेश मॉडल जैसी लग रही है, जहां सड़कों पर उतरे गुस्साए नागरिकों ने कुछ ही दिनों में सरकार गिरा दी और सत्ता न्यायपालिका या सेना के हाथों में चली गई।

सत्ता प्रतिष्ठान भी अब बंटा हुआ है। एक धड़ा मानता है कि अंतरिम व्यवस्था बनाना अब टालना मुश्किल है। वहीं, सत्ताधारी गुट का कहना है कि प्रदर्शनकारियों से बातचीत का रास्ता अपनाना चाहिए, क्योंकि अगर सीधे भीड़ के दबाव के आगे झुक गए तो भीड़तंत्र को मजबूती मिल जाएगी। लेकिन प्रदर्शनकारी इन चेतावनियों से बिल्कुल भी प्रभावित नहीं हैं।


News18 से बातचीत में एक वरिष्ठ अफसर ने नाम न बताने की शर्त पर लिखा कहा, “प्रदर्शनकारियों के बीच अब राय बंटी हुई है। कुछ लोग अंतरिम सरकार बनाने की मांग कर रहे हैं, जिसमें आम नागरिक, Gen-Z लोग, सभी राजनीतिक दलों के नेता या प्रतिनिधि शामिल हों। इस सरकार का नेतृत्व किसी पूर्व मुख्य न्यायाधीश या पूर्व सेना प्रमुख को सौंपा जा सकता है। उनका कहना है कि यह अंतरिम सरकार छह महीने में चुनाव कराए। हमें यह हालात अब बांग्लादेश मॉडल जैसे लगने लगे हैं।”

उन्होंने आगे कहा कि और भी राय सामने आ रही हैं। अधिकारी ने बताया, “जैसे-जैसे हिंसा बढ़ी, आंदोलन बिना नेतृत्व का हो गया। अब सेना, सरकार, सिविल सोसायटी और कुछ राजनीतिक दलों के वरिष्ठ प्रतिनिधियों की एक टीम प्रदर्शनकारियों से बातचीत शुरू करने की कोशिश कर रही है।”

नेपाल की सेना से इस पर राय ली गई है, लेकिन सेना अभी सतर्क रुख अपनाए हुए है। सेना पहले ही यह साफ कर चुकी है कि जरूरत पड़ने पर वो नियंत्रण अपने हाथ में ले सकती है। इस बीच, अंतरिम सरकार का नेतृत्व किसी पूर्व मुख्य न्यायाधीश को सौंपने का विचार जोर पकड़ रहा है।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि राजनीतिक हालात में, जहां लगभग सभी दलों की छवि खराब दिख रही है, पूर्व मुख्य न्यायाधीश का नेतृत्व एक तटस्थ विकल्प के रूप में सामने आ रहा है।

News18 ने प्रधानमंत्री के पूर्व मीडिया सलाहकार से बातचीत की। सीनियर भू-राजनीतिक विश्लेषक और पूर्व PM ओली के मीडिया सलाहकार रहे गोपाल खनाल ने कहा, “सरकार, सेना, सिविल सोसायटी और प्रदर्शनकारियों के प्रतिनिधियों की टीम के बीच बातचीत शुरू करने की गुंजाइश होनी चाहिए। अंतरिम सरकार का नियंत्रण जिसके हाथ में होगा, वही नेपाल की दिशा तय करेगा।”

प्रदर्शनकारियों के लिए अंतरिम सरकार कोई अस्थायी हल नहीं, बल्कि एक नए राजनीतिक समझौते की दिशा में पहला कदम है। लेकिन इस पूरे हालात का असर भू-राजनीतिक स्तर पर भी है। बांग्लादेश में शेख हसीना के पतन के बाद भारत पहले से ही नई रणनीति बना रहा है और अब उसे एक और अस्थिर पड़ोसी की चिंता सताने लगी है।

इस बीच, इतना तो साफ हो गया है कि काठमांडू की अक्रोश की आग ने अपना फैसला सुना दिया है। पुराना राजनीतिक ढांचा अब खत्म हो चुका है। अंतरिम सरकार की मांग अब सिर्फ नारा नहीं रह गई है, बल्कि यही वो रास्ता दिख रहा है, जिसे सड़कों पर उतरी जनता मानने को तैयार है।

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