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कर्ज के दलदल में फंसा पाकिस्तान फिर भी भारत से बराबरी करने की चाह, जानें किस देश का है कितना कर्ज?

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ की सरकार बार-बार यह कहती है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था सुधर रही है। लेकिन असल में स्थिति ये है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था विदेशी मदद पर टिकी हुई है और उसका आधा बजट सिर्फ़ पुराने कर्ज़ चुकाने में ही खर्च हो रहा है। साल 2025-26 के लिए सरकार ने कुल 17.57 ट्रिलियन रुपये के बजट में से 8.2 ट्रिलियन रुपये सिर्फ कर्ज़ की अदायगी के लिए रखे हैं

अपडेटेड Jul 18, 2025 पर 6:17 PM
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पाकिस्तान पर कुल सरकारी कर्ज़ अब 76 ट्रिलियन पाकिस्तानी रुपये से ज़्यादा हो है।

कर्ज के बोझ तले दबे पाकिस्तान की चाह भारत सी बराबरी करने की है और इस चाह को पूरा करने की कोशिस में इस मुल्क की हालत 'गरीबी में आटा गीला' जैसा हो गया है। पाकिस्तान की हालत अब और भी खस्ता होने जा रही है। दरअसल, पाकिस्तान को इस फाइनेंशियल ईयर में 23 अरब अमेरिकी डॉलर से ज्यादा कर्ज चुकाना है।

पाकिस्तान  पर कुल सरकारी कर्ज अब 76 ट्रिलियन पाकिस्तानी रुपये से ज़्यादा हो गया है, और सरकार का लगभग 46% बजट सिर्फ कर्ज चुकाने में खर्च हो रहा है। इतनी गंभीर आर्थिक स्थिति के बावजूद पाकिस्तान की सरकार सुधारों पर ध्यान देने के बजाय चीन और तुर्की के साथ अरबों डॉलर के डिफेंस डील में लगी है। मिसाइल, ड्रोन और युद्धपोत खरीदे जा रहे हैं, जबकि दूसरी तरफ़ पाकिस्तान डिफ़ॉल्ट से बचने के लिए अपने मित्र देशों से अस्थायी आर्थिक मदद की गुहार भी लगा रहा है।

पाकिस्तान पर इतना बड़ा कर्ज


1 जुलाई से शुरू हुए नए वित्तीय साल में पाकिस्तान को 23 अरब अमेरिकी डॉलर का भारी विदेशी कर्ज चुकाना है। यह रकम अंतरराष्ट्रीय बॉन्डधारकों, प्राइवेट बैंकों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को दी जानी है।

पाकिस्तान आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार, मार्च के अंत तक देश का कुल कर्ज़ 76.01 ट्रिलियन रुपये था। इसमें से 51.52 ट्रिलियन रुपये (करीब 180 अरब अमेरिकी डॉलर) घरेलू कर्ज़ और 24.49 ट्रिलियन रुपये (लगभग 87.4 अरब अमेरिकी डॉलर) विदेशी कर्ज़ है। इस 87.4 अरब डॉलर के विदेशी कर्ज़ में दो हिस्से शामिल हैं – एक तो सरकार द्वारा लिया गया विदेशी कर्ज़ और दूसरा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से मिला कर्ज।

अमेरिका से 23 अरब डॉलर का कर्ज 

इस साल पाकिस्तान को जो 23 अरब अमेरिकी डॉलर चुकाने हैं, उनमें से 12 अरब डॉलर ऐसे हैं जो "मित्र" देशों जैसे सऊदी अरब (5 अरब डॉलर), चीन (4 अरब डॉलर), संयुक्त अरब अमीरात (2 अरब डॉलर) और कतर (1 अरब डॉलर) से अस्थायी रूप से जमा करवाए गए हैं। सरकार को उम्मीद है कि ये देश इस रकम को अभी के लिए वापस नहीं माँगेंगे और इसे आगे के लिए बढ़ा देंगे। लेकिन अगर ये देश रकम आगे बढ़ाने को तैयार नहीं हुए, तो पाकिस्तान को ये पूरा पैसा वापस करना पड़ेगा। फिलहाल की कमजोर और संकट में फंसी अर्थव्यवस्था के लिए यह बोझ उठाना बहुत मुश्किल होगा।

हालांकि पाकिस्तान को कुछ जमाओं को लेकर भरोसा है कि वो सुरक्षित हैं, लेकिन फिर भी उसे इस वित्तीय साल में करीब 11 अरब अमेरिकी डॉलर चुकाने हैं। ये पैसे उसे अंतरराष्ट्रीय बॉन्ड रखने वालों, बड़े-बड़े बैंकों और देशों से लिए गए कर्ज़ को चुकाने के लिए देने हैं। इसमें 1.7 अरब डॉलर के बॉन्ड चुकाना, 2.3 अरब डॉलर वाणिज्यिक बैंकों को लौटाना, और करीब 2.8 अरब डॉलर वर्ल्ड बैंक, एशियाई विकास बैंक, इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक और एशियाई इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक जैसे संस्थानों को देने हैं। इसके अलावा 1.8 अरब डॉलर अलग-अलग देशों से लिए गए कर्ज़ के भी लौटाने हैं।

पाकिस्तान का आधा बजट सिर्फ कर्ज चुकाने में 

इसके बावजूद प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ की सरकार बार-बार यह कहती है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था सुधर रही है। लेकिन असल में स्थिति ये है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था विदेशी मदद पर टिकी हुई है और उसका आधा बजट सिर्फ़ पुराने कर्ज़ चुकाने में ही खर्च हो रहा है। साल 2025-26 के लिए सरकार ने कुल 17.57 ट्रिलियन रुपये के बजट में से 8.2 ट्रिलियन रुपये सिर्फ कर्ज़ की अदायगी के लिए रखे हैं। यह देश के पूरे बजट का लगभग 47% है। इसका सीधा मतलब यह है कि पाकिस्तान जो कमाई करता है, उसका लगभग आधा हिस्सा पुराने कर्जों को चुकाने में चला जाता है। न वो पैसा लोगों की सेहत पर खर्च हो रहा है, न शिक्षा पर, न सड़कों और सुविधाओं पर। और न ही इससे आम लोगों की ज़िंदगी में कोई सुधार हो रहा है।

सिर्फ सेना और नेताओं की मौज

पाकिस्तान का ज़्यादातर कर्ज़ संकट खुद उसी की गलती है। यह सालों की अंधाधुंध उधारी, भ्रष्टाचार और एक ऐसी सेना का नतीजा है जो न तो अपने बड़े बजट में कटौती करना चाहती है और न ही सत्ता पर से अपनी पकड़ ढीली करना। पाकिस्तानी फौज, जो खुद को हमेशा देश की सुरक्षा का रखवाला बताती है, असल में विदेशी मदद और कर्ज़ का सबसे बड़ा फायदा उठाने वाली रही है। जो पैसा देश के विकास में लगना चाहिए था, वह सेना अपने बढ़ते खर्चों और ढांचे को चलाने में खर्च कर देती है। विदेशी कर्ज़ का इस्तेमाल देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के बजाय, सेना और उसके बाद आने वाली सरकारों ने उसे अपनी राजनीति और फौजी ताकत बढ़ाने में लगाया। इसका नतीजा यह हुआ कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था अंदर से खोखली हो गई है और अब वो आईएमएफ की इमरजेंसी मदद, चीन के कर्ज़ और खाड़ी देशों की जमा रकम के भरोसे ही चल रही है।

अर्थव्यवस्था डगमगा रही है, तब भी हथियार खरीदे जारी

पाकिस्तान एक तरफ कर्ज़ चुकाने और नया बेलआउट पैकेज मांगने के लिए दुनिया से मदद की गुहार लगा रहा है, वहीं दूसरी तरफ सैन्य हथियारों पर लगातार पैसा खर्च कर रहा है। सरकार का ध्यान आर्थिक सुधार या आम लोगों की भलाई पर नहीं है, बल्कि वह महंगे हथियार खरीदने में लगी हुई है, जिससे यह साफ़ होता है कि उसकी प्राथमिकताएँ क्या हैं।

हाल ही में पाकिस्तान ने तुर्की के साथ एक नया रणनीतिक समझौता किया है, जो मिलिट्री सहयोग, खुफिया जानकारी साझा करने और सुरक्षा संबंधी साझेदारी पर आधारित है। इस समझौते का मकसद भारत के खिलाफ "जिहाद" के लिए तैयार रहना बताया जा रहा है। इस साझेदारी के तहत पाकिस्तान तुर्की से 900 मिलियन डॉलर (करीब 90 करोड़ डॉलर) के ड्रोन और 700 से ज्यादा लॉटरिंग हथियार खरीदने जा रहा है। इसके अलावा दोनों देशों ने 5 अरब डॉलर के व्यापारिक लक्ष्य भी तय किए हैं।

गरीबी से जूझते देश की जेब से लड़ाकू विमान की खरीद

पिछले महीने खबरें आई थीं कि पाकिस्तान ने चीन के साथ एक समझौता किया है, जिसके तहत वह रियायती कीमत पर 40 जे-35ए स्टील्थ लड़ाकू विमान खरीदेगा। यह दिखाता है कि पाकिस्तान अभी भी भारत के साथ सैन्य बराबरी की चाह में फंसा हुआ है, जबकि उसके अपने देश के लोग गरीबी, बेरोजगारी और बढ़ती महंगाई जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रहे हैं।

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