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औरंगजेब से अल्लाह तक...पाकिस्तान की जिहादी मानसिकता, भारत के खिलाफ धर्म को बना रहा हथियार

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा, कि इतिहास गवाह है कि औरंगजेब के शासनकाल को छोड़कर भारत कभी भी एक यूनाइटेड नेशन नहीं रहा। पाकिस्तान, अल्लाह के नाम पर बनाया गया था। मैं तनाव नहीं बढ़ाना चाहता, लेकिन युद्ध का जोखिम वास्तविक हैं और मैं इससे इनकार नहीं कर रहा हूं। अगर युद्ध की नौबत आई, तो इंशाअल्लाह हम पहले से बेहतर परिणाम हासिल करेंगे

अपडेटेड Oct 08, 2025 पर 10:57 PM
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पाकिस्तान का सत्ताधारी वर्ग भारत के खिलाफ धार्मिक बयानबाजी जारी रखे हुए है।

इस साल की शुरुआत में ऑपरेशन सिंदूर में मिली करारी हार के बावजूद, पाकिस्तान का सत्ताधारी वर्ग भारत के खिलाफ धार्मिक बयानबाजी जारी रखे हुए है। हाल ही में पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने भारत के खिलाफ फिर से धर्म का सहारा लिया। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा, कि इतिहास गवाह है कि औरंगजेब के शासनकाल को छोड़कर भारत कभी भी एक यूनाइटेड नेशन नहीं रहा। पाकिस्तान, अल्लाह के नाम पर बनाया गया था। मैं तनाव नहीं बढ़ाना चाहता, लेकिन युद्ध का जोखिम वास्तविक हैं और मैं इससे इनकार नहीं कर रहा हूं। अगर युद्ध की नौबत आई, तो इंशाअल्लाह हम पहले से बेहतर परिणाम हासिल करेंगे।'

भारत के खिलाफ धर्म का सहारा 

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री का ये बयान सिर्फ भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं हैं, बल्कि पाकिस्तान की उस कभी ना खत्म होने वाली सोच को दिखाते हैं जो आक्रामकता को धार्मिक रूप देता है। ख्वाजा आसिफ के बयान कूटनीतिक दृष्टि से नहीं, बल्कि इस मानसिकता की झलक हैं कि पाकिस्तान की शक्ति का आधार तर्क नहीं, बल्कि धर्म है। “अल्लाह के नाम पर” दिए गए ऐसे बयानों के पीछे वही पुराना जहरीला विचार छिपा है, जिसने 1947 से पाकिस्तान को भारत के साथ लगातार टकराव की स्थिति में बनाए रखा है।


आसिफ का यह कहना कि “भारत के साथ युद्ध की संभावनाएं वास्तविक हैं,” एक तरह से अवश्यंभावी स्थिति की तरह पेश किया गया, लेकिन उनके शब्दों में साफ़ शत्रुता झलकती थी। उन्होंने एकता की बात सिर्फ़ भारत से युद्ध के संदर्भ में की, मानो पाकिस्तान की बंटी हुई राजनीति केवल टकराव के समय ही एकजुट हो सकती है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि उन्होंने धर्म को इस बयान में शामिल किया। “पाकिस्तान अल्लाह के नाम पर बनाया गया था” कहकर आसिफ ने पाकिस्तान की सैन्य सोच की उस गहराई को उजागर किया, जिसमें भारत के साथ संघर्ष को राजनीतिक या क्षेत्रीय विवाद नहीं, बल्कि धार्मिक कर्तव्य के रूप में देखा जाता है।

 औरंगजेब की कट्टरता की याद

पाकिस्तान में लंबे समय से दोहराया जा रहा यह नैरेटिव नेताओं को अपने पैदा किए गए संकटों की ज़िम्मेदारी से बचने का बहाना देता है। वे हर उकसावे या गलत नीति को धार्मिक कर्तव्य बताकर सही ठहराने की कोशिश करते हैं। ख्वाजा आसिफ द्वारा औरंगज़ेब का ज़िक्र भी इसी सोच को दर्शाता है — एक ऐसे शासक का उदाहरण देना जो धार्मिक कट्टरता के लिए जाना जाता था। इस तरह, पाकिस्तान अपने बयानों में भारत की साझा संस्कृति और सह-अस्तित्व की परंपरा को नज़रअंदाज़ करते हुए यह संदेश देता है कि भारत की एकता केवल मुस्लिम शासन के अधीन ही संभव है।

इस्लाम के नाम पर भारत के खिलाफ जंग!

आसिफ के बयानों के पीछे पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर की सोच झलकती है, जिन्होंने दो-राष्ट्र सिद्धांत को उसके सबसे कठोर रूप में फिर से जिंदा किया है। मुनीर कई बार कह चुके हैं कि पाकिस्तान की असली पहचान और उद्देश्य “इस्लाम की रक्षा” में निहित हैं, जबकि भारत को वे “धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा ओढ़ी हुई हिंदू सभ्यता” बताते हैं। अपने भाषणों में मुनीर पाकिस्तान को “इस्लाम का वैचारिक किला” और भारत को “भ्रमित राष्ट्र” कहकर पेश करते हैं।

कभी भारत-विभाजन का आधार रहा द्वि-राज्य सिद्धांत अब असीम मुनीर के नेतृत्व में पाकिस्तान के लिए एक सैन्य विचारधारा बन चुका है। अपने भाषणों में मुनीर विभाजन को इतिहास की घटना नहीं, बल्कि एक दैवीय योजना के रूप में पेश करते हैं। उनका संदेश साफ है — पाकिस्तान का अस्तित्व भारत के विरोध पर टिका है। इस सोच ने धर्म को नीति का हिस्सा बना दिया है, जिससे सेना देश के राजनीतिक और सामाजिक ढांचे के केंद्र में बनी रहती है। राष्ट्रीय अस्तित्व को “पवित्र मिशन” बताकर सेना अपने राजनीतिक प्रभाव, बड़े बजट और नागरिक मामलों में हस्तक्षेप को जायज़ ठहराती है।

भारत के खिलाफ जिहादी सोच

ख्वाजा आसिफ के हालिया बयान पाकिस्तान की उस पुरानी सोच का हिस्सा हैं, जहां नेताओं ने अपनी असफलताओं और असुरक्षाओं को छिपाने के लिए धर्म को एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया। आज़ादी के शुरुआती दौर से ही पाकिस्तान के नेताओं ने भारत विरोधी भावना को धार्मिक रंग दिया। जुल्फिकार अली भुट्टो ने कहा था कि पाकिस्तान भारत से हज़ार साल तक लड़ेगा, और जनरल ज़िया-उल-हक ने इसी विचार को नीति का रूप दे दिया। उनके शासन में ‘जिहाद’ सरकारी सोच का हिस्सा बन गया, जिसे सीमा पार फैलाया गया। इसके बाद परवेज़ मुशर्रफ से लेकर क़मर जावेद बाजवा तक हर सैन्य प्रमुख ने इसी विचारधारा को आगे बढ़ाया, जहां इस्लाम को ताकत और हथियार दोनों के रूप में इस्तेमाल किया गया।

पाकिस्तान की राजनीति में यह पैटर्न लंबे समय से दिखाई देता है। जब भी देश घरेलू संकटों या अंतरराष्ट्रीय दबाव में फंसता है, उसके नेता जनता को धर्म और भय के नाम पर एकजुट करने की कोशिश करते हैं। धार्मिक राष्ट्रवाद वहां एक ऐसा जरिया बन गया है, जो सत्ता में बैठे वर्ग और आम लोगों को अस्थायी रूप से जोड़ देता है। ख्वाजा आसिफ के हालिया बयान भी इसी सोच को आगे बढ़ाते हैं — भारत के खिलाफ उनकी चेतावनी दरअसल ताकत का प्रदर्शन नहीं, बल्कि भीतर से बंटी हुई राजनीति और समाज में धार्मिक एकता की बेताब कोशिश है।

जनरल असीम मुनीर के कार्यकाल में पाकिस्तान में आस्था और सत्ता का मेल और गहराता गया है। उनके बयानों में भारत को सिर्फ एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि एक सभ्यतागत दुश्मन के रूप में पेश किया गया है। इस साल की शुरुआत में राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय में दिए एक भाषण में उन्होंने पाकिस्तान को “दक्षिण एशिया में इस्लाम का अंतिम किला” बताया और कहा कि “जो लोग इस सच्चाई पर सवाल उठाते हैं, वे देश के भीतर के दुश्मन हैं।” ऐसी बयानबाज़ी यूं ही नहीं होती — यह सेना की उस सोच को मज़बूती देती है कि वही देश की धार्मिक पहचान की असली रक्षक है, जिससे उसे असहमति दबाने और नागरिक सरकार पर अपना प्रभाव बनाए रखने का आधार मिलता है।

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