₹8800000 हुई H-1B Visa की फीस, ट्रंप ने मुश्किल की प्रोफेशनल्स की अमेरिका में एंट्री

H-1B Visa Annual Fee Hiked: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (US President) ने एक आदेश के जरिए प्रोफेशनल्स की अमेरिका में एंट्री और कठिन कर दी है। एच-1बी वीजा के लिए सालाना फीस $1 लाख यानी करीब ₹88 लाख कर दी है। इससे भारतीयों को तेज झटका लगा है क्योंकि बड़ी संख्या में भारतीय प्रोफेशनल्स वहां काम करते हैं और जाने का सपना भी देखते हैं

अपडेटेड Sep 20, 2025 पर 12:50 PM
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H-1B Visa Annual Fee Hiked: अमेरिका में काम करने का सपना और महंगा हो गया है क्योंकि एच-1बी वीजा की एप्लीकेशन फीस को सालाना $1 लाख यानी करीब ₹88 लाख कर दिया गया है।

H-1B Visa Annual Fee Hiked: अमेरिका में काम करने का सपना और महंगा हो गया है। इसकी वजह ये है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (US President Donald Trump) ने शुक्रवार को एक ऐसे घोषणा पत्र पर साइन किए हैं जिसमें एच-1बी वीजा होल्डर्स की अमेरिका में एंट्री सीमित की गई है और वीजा के लिए एप्लीकेशन फीस को सालाना $1 लाख यानी करीब ₹88 लाख कर दिया गया है। अभी अमेरिका की सरकारी साइट पर मौजूद $4500 (₹3.96 लाख) तक की ही फीस लगती है। डिटेल्स के मुताबिक  इससे भारतीय प्रोफेशनल्स को करारा झटका लग सकता है।

एच-1बी प्रोग्राम के जरिए अमेरिकी कंपनियों को हाई-स्किल वाले ऐसे पोस्ट पर विदेश से प्रोफेशनल्स को काम पर रखने की मंजूरी मिलती है, जो आसानी से अमेरिकी नागरिकों या स्थायी रेजिडेंट्स के जरिए संभव नहीं होता है। अब नए आदेश के तहत कंपनियों को विदेश से किसी प्रोफेशनल्स को काम पर रखने के लिए सालाना $1 लाख चुकाना होगा जोकि पहले की तुलना में काफी ज्यादा है। यह नियम 21 सितंबर से लागू हो रहा है।

बड़ी कंपनियों से बातचीत कर ही लिया गया फैसला


व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिस में राष्ट्रपति के साथ एक कार्यक्रम में अमेरिकी कॉमर्स सेक्रेटरी हॉवर्ड लुटनिक ने कहा कि एच-1बी वीजा के लिए सालाना $1 लाख की फीस रखी गई है और सभी बड़ी कंपनियां इसके समर्थन में हैं, उनसे बात की चुकी है। हॉवर्ड लुटनिक के मुताबिक सरकार की योजना ये है कि बड़ी टेक कंपनियां या अन्य सेक्टर की बड़ी कंपनियां बाहर से लोगों को लाने की बजाय अमेरिका के ही लोगों को काम पर रखें। उन्होंने कहा कि अब बाहर से किसी को लाने पर कंपनियों को $1 लाख सरकारी खजाने में देना होगा और फिर एंप्लॉयीज को वेतन देना होगा जो व्यावहारिक नहीं है।

हॉवर्ड लुटनिक के मुताबिक यह पूरी कोशिश इसलिए हो रही है ताकि अमेरिकी कंपनियां अमेरिका की यूनिवर्सिटीज से पढ़े बच्चों को ट्रेनिंग दें और उन्हें काम पर रखें और विदेश से लोगों को लाकर स्थानीय लोगों की नौकरी छीनने का काम बंद हो। उन्होंने कहा कि यही यहां की नीति है और इसमें सभी बड़ी कंपनियां शामिल हैं।

अब अमेरिका में एंट्री के लिए बढ़ाना होगा टैलेंट?

अमेरिकी कॉमर्स सेक्रेटरी हॉवर्ड लुटनिक के मुताबिक विदेश से किसी एंप्लॉयी को अमेरिका में काम पर रखना कंपनियों के लिए आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं होगा क्योंकि उन्हें काम पर रखने से पहले कंपनियों को पहले सरकार को $1 लाख देना होगा और फिर एंप्लॉयीज को वेतन मिलेगा। अमेरिकी टेक सेक्टर के लिए यह फैसला बड़ा झटका है जो स्किल्ड वर्कर्स के लिए भारत और चीन जैसे देशों पर बड़े पैमाने पर निर्भर है। हालांकि व्हाइट हाउस की स्टाफ सेक्रेटरी विल स्कार्फ (Will Scharf) ने जोर देकर कहा कि यह नीति इसलिए लाई जा रही है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि अमेरिका में बाहर से इतने हाई-स्किल्ड वर्कर्स लाए जाएं जिन्हें अमेरिकी लोगों से रिप्लेस न किया जा सके।

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