बाजार नियामक सेबी ने क्लाइंट के पैसों को क्लियरिंग कॉरपोरेशन के पास भेजने और इसे क्लाइंट के पास लौटाने की प्रक्रिया में बदलाव कर दिया है। अब इन नए नियमों को लेकर ब्रोकर्स को दिक्कत हो रही है। ब्रोकर्स के मुताबिक इससे कारोबार करने में दिक्कतें आ रही है। एसोसिएशन ऑफ नेशनल एक्सचेंजेज मेंबर्स ऑफ इंडिया (ANMI) और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज ब्रोकर्स फोरम (BBF) नियमों में ढील के लिए बाजार नियामक सेबी के पास पहुंचे हैं। सेबी ने नियमों में बदलाव इसलिए किया है ताकि ब्रोकर्स अपने क्लाइंट्स के पैसों का गलत इस्तेमाल न कर सकें।
क्या है SEBI का नया नियम, जिससे हो रही ब्रोकर्स को दिक्कत
एसोसिएशन के मुताबिक प्रत्येक कारोबारी दिन शाम 6:30 बजे से पहले क्लाइंट्स के फंड की अपस्ट्रीमिंग अनिवार्य करने के साथ-साथ हर दिन का हिसाब-खिताब भेजने के नियम से ब्रोकर्स को अधिक मैनपावर और पूंजी लगानी पड़ रही है। यह व्यवस्था 1 सितंबर से लागू है। सेबी के नियम के मुताबिक ब्रोकर्स को क्लाइंट्स से फंड पहले अप स्ट्रीमिंग क्लाइंट नोडल बैंक अकाउंट (USCNBA), फिर इसके बाद सेटलमेंट, फिर सेटलमेंट से क्लियरिंग कॉरपोरेशन, फिर क्लियरिंग कॉरपोरेशन से सेटलमेंट, फिर सेटलमेंट से DSCNBA (डाउन स्ट्रीमिंग क्लाइंट नोडल बैंक अकाउंट) से क्लाइंट्स के खाते में फंड भेजने की कई चरणों की लंबी प्रक्रिया से दिक्कत है।
इससे पहले अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम अकाउंट्स एक ही होता था और इसे ब्रोकर का क्लाइंट अकाउंट कहते थे। पैसों के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए नया नियम लाया गया कि USCNBA और DSCNBA, दोनों को हर दिन खाली करना होगा। इसमें से USCNBA को शाम 6:30 बजे तक और DSCNBA को दिन के आखिरी तक खाली करना होगा। ये फंड्स सिर्फ क्लियरिंग कॉरपोरेशन के पास रह सकते हैं। सबसे बड़ी दिक्कत ब्रोकर्स को कट ऑफ टाइम को लेकर है जिसके चलते उनका मानना है कि ऑपरेशनल दिक्कतें आ रही हैं और क्लाइंट सर्विसिंग प्रोसेस पर असर पड़ रहा है।
दिल्ली के एक ब्रोकिंग फर्म के एग्जेक्यूटिव का कहना है कि ब्रोकर्स का कई बैंकों में अपस्ट्रीमिंग अकाउंट होता है ताकि क्लाइंट से ब्रोकर के पास आसानी से फंड ट्रांसफर हो जाए। अब ब्रोकिंग फर्म का कहना है कि अगर किसी बैंक में तकनीकी खामी आ जाए और फंड समय पर ट्रांसफर न हो पाए तो इसमें ब्रोकर्स को क्यों जवाबदेह माना जाए? क्लाइंट के पैसों के अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम यानी क्लाइंट से क्लियरिंग कॉरपोरेशन और क्लियरिंग कॉरपोरेशन से क्लाइंट के पास पैसे ट्रांसफर करने के मामले में 10 करोड़ रुपये से ऊपर के उल्लंघन पर 5 लाख रुपये की पेनाल्टी का प्रावधान सेबी ने किया है।
इसके अलावा सेबी के नए नियमों के मुताबिक अगर किसी क्लाइंट ने शाम 6 बजे तक पैसे निकालने की रिक्वेस्ट कर दी है तो उसी दिन ब्रोकर्स को इसे प्रोसेस करना होगा। हालांकि ब्रोकर्स के मुताबिक इसमें डीएलोकेशन, रिलीज, क्लियरिंग मेंबर/ब्रोकर की तरफ से इंटर-बैंक ट्रांसफर और क्लाइंट के खाते में पैसे ट्रांसफर की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है जो काफी लंबा है। ब्रोकर्स को एक और नियम से दिक्कत है जिसके तहत उन्हें रीजन कोड देने की जरूरत पड़ती है। ब्रोकर्स का कहना है कि छोटी-छोटी डिटेल्स और माइक्रो-मैनेजमेंट के चलते ऑपरेशनल लेवल पर दिक्कतें बढ़ गई हैं।
ब्रोकर्स की क्या है सिफारिश
ब्रोकर्स फोरम ने सेबी से अनुरोध किया है कि क्लियरिंग मेंबर्स ने जो आंतरिक नीति बनाई है, उसके आधार पर क्लाइंट्स के खाते में पैसे भेजने की जरूरतों को तय किया जाए। इन नीतियों को इन क्लियरिंग मेंबर्स की साइट पर दिखाया जा सकता है। मुंबई के एक ब्रोकर ने इसे समझाते हुए बताया कि पहले पुराने डेटा के आधार पर ब्रोकिंग फर्म ब्रोकर्स क्लाइंट अकाउंट से पैसे काट लेती थी यानी नेट ऑफ कर देती थी और बाकी को क्लियरिंग कॉरपोरेशन के पास ट्रांसफर कर देती थी लेकिन अब नेटिंग पर रोक लग गई है और क्लाइंट के पूरे पैसों को अपस्ट्रीम करना होता है। पेआउट यानी क्लाइंट की पैसे निकालने की रिक्वेस्ट भी क्लियरिंग कॉरपोरेशन के पास कट-ऑफ समय से कम से कम एक घंटे पहले पहुंचना होता है। इसके बाद ही आगे का प्रॉसेस बढ़ता है। इस प्रक्रिया में किसी भी लेवल पर तकनीकी खामी आ सकती है।
ब्रोकर्स का सवाल ये भी है कि अगर क्लाइंट के रिक्वेस्ट पर क्लियरिंग कॉरपोरेशन से पैसे मांग लिए लेकिन मार्जिन कैलकुलेशन के बाद क्लाइंट की तरफ से मांगा गया अमाउंट कम हो तो बाकी पैसा अपस्ट्रीम होगा और वह फ्रीज हो जाएगा, इसकी जवाबदेही किस पर बनेगी। ब्रोकर्स ने सुझाव दिया है कि सेटलमेंट अकाउंट में पड़े एक्स्ट्रा फंड्स को 'प्लेस्ट विद सीसी (क्लियरिंग कॉरपोरेशन)' नाम दे दिया जाए और फिर फंड मूवमेंट के तीसरे और चौथे स्टेप को वैकल्पिक बना दिया जाए। ऐसी स्थिति में कट-ऑफ टाइम के बाद अपस्ट्रीम अकाउंट में जो पैसे आएं, उसे 'रिटेन्ड बाई ट्रेडिंग मेंबर' के रूप में माना जाए।