भावनगर जिले के तलाजा तालुका के राजपारा गांव में रहने वाले धमेलिया महेशभाई पहले रासायनिक खेती करते थे। उन्हें फसल उगाने के लिए उर्वरक और कीटनाशक का उपयोग करना पड़ता था। लेकिन उन्होंने कई किसान बैठकों और शिविरों में भाग लिया और प्राकृतिक खेती के बारे में जाना। इसके बाद उन्होंने फैसला किया कि अब वो पूरी तरह प्राकृतिक खेती करेंगे। 2021 से महेशभाई ने रासायनिक खेती छोड़ दी और खेतों में प्राकृतिक तरीके से फसल उगाना शुरू किया। उन्होंने नई तकनीकें अपनाईं और अपने खेतों में प्रयोग किए।
अब वो केले की खेती भी कर रहे हैं और इस फसल से अच्छी आमदनी की उम्मीद है। उनका अनुभव और मेहनत न सिर्फ उनकी आमदनी बढ़ा रही है, बल्कि गांव और आसपास के किसानों के लिए भी प्रेरणा बन रही है।
महेशभाई ने पिछले दो सालों से केले की खेती शुरू की। उनका कहना है कि एक बीघा केले की फसल से उन्हें कम से कम 1,00,000 रुपये या उससे अधिक की कमाई होने की उम्मीद है। इसलिए ये फसल उनके लिए मुनाफे का बड़ा जरिया बन गई है।
खेती के आधुनिक और प्राकृतिक तरीके
केले की खेती के लिए महेशभाई ने एनारोबिक ट्यूब और जीवामृत का इस्तेमाल शुरू किया। ये तरीका मिट्टी और पौधों दोनों के लिए फायदेमंद है। पहले वे पारंपरिक फसलें जैसे प्याज उगाते थे, लेकिन अब उन्होंने अलग-अलग और लाभकारी फसलों की ओर ध्यान देना शुरू किया है।
महेशभाई अपनी केले की फसल की बिक्री के लिए पहले से योजना बनाते हैं। ये सुनिश्चित करते है कि फसल तैयार होने पर उन्हें उचित मूल्य मिले। उन्होंने आत्मा नामक प्राकृतिक खेती परियोजना से भी जुड़कर अपने ज्ञान और संसाधनों को और बढ़ाया है।
महेशभाई की ये पहल दिखाती है कि प्राकृतिक खेती अपनाकर किसान न सिर्फ पर्यावरण के लिए अच्छा करते हैं, बल्कि आर्थिक रूप से भी मजबूत बन सकते हैं। उनका अनुभव अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया है।