जब खेती का जिक्र होता है, तो अक्सर पारंपरिक फसलें ही दिमाग में आती हैं, लेकिन बिहार के रोहतास जिले के करकटपुर गांव के अर्जुन पासवान ने इस सोच को चुनौती दी है। उन्होंने यह साबित किया कि अगर इरादे बुलंद हों, तो सीमित संसाधनों के बावजूद भी बड़ी उपलब्धियां हासिल की जा सकती हैं। परंपरागत खेती को छोड़कर उन्होंने मशरूम की खेती को अपनाया और एक नई दिशा में कदम बढ़ाया। शुरुआत उन्होंने ऑयस्टर मशरूम से की, लेकिन आज वे बटन मशरूम की भी व्यावसायिक स्तर पर सफल खेती कर रहे हैं।
अर्जुन की मेहनत, तकनीकी समझ और नवाचार के प्रति झुकाव ने न केवल उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त किया है, बल्कि वे अब अपने गांव के युवाओं और किसानों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बन गए हैं। उनकी कहानी बताती है कि बदलाव की राह कठिन जरूर होती है, लेकिन नामुमकिन नहीं।
ऑर्गेनिक और केमिकल दोनों तरीकों में माहिर
अर्जुन मशरूम की खेती दो विधियों से करते हैं—ऑर्गेनिक और केमिकल। ऑर्गेनिक विधि में जैविक तत्वों का उपयोग होता है, वहीं केमिकल विधि में भूसे को फॉर्मलिन और विवेस्टिन से संक्रमण मुक्त किया जाता है। वे बताते हैं कि दोनों तरीकों से उत्पादन लगभग समान होता है, पर ऑयस्टर मशरूम की खेती ज्यादा आसान और कम लागत वाली होती है। इसमें भूसे को काटकर पीपी बैग में भर कर ठंडी व नम जगह पर रखा जाता है, और महज एक महीने में फसल तैयार हो जाती है।
मेहनत और प्रशिक्षण से बनी मिसाल
बटन मशरूम की खेती हालांकि थोड़ा समय लेने वाली और मेहनत भरी होती है—कंपोस्ट तैयार करने में ही एक महीना लगता है, फिर बीज डालने के बाद माईसीलियम बनने में 10 दिन और केसिंग के बाद लगभग 15 दिन में मशरूम तैयार होता है। अर्जुन फिलहाल सैकड़ों बैग में मशरूम उत्पादन कर रहे हैं और उनकी फसल खेत से ही बिक जाती है। सरकार से उन्हें 50% तक का अनुदान मिला है और वे अब तक दर्जनों किसानों को मशरूम की खेती का प्रशिक्षण दे चुके हैं, जिससे यह खेती अब कम लागत में बड़ा मुनाफा कमाने का बेहतरीन जरिया बन चुकी है।