धान, तिल और उड़द की फसलें कट चुकी हैं और खेत अब खाली हैं। किसान रबी सीजन की तैयारी में जुट गए हैं। इस बार उनकी नजर लहसुन की खेती पर है, क्योंकि यह फसल मेहनत कम और मुनाफा ज्यादा देती है। लहसुन की मांग सालभर बनी रहती है, रसोई में मसाले के तौर पर और औषधीय उपयोग के लिए भी। यही वजह है कि किसान अब पारंपरिक फसलों की जगह लहसुन की ओर रुख कर रहे हैं। इसे “सफेद सोना” भी कहा जाता है, क्योंकि इसकी कीमत अधिक रहती है और भंडारण के लिए सुविधाजनक है।
लेकिन लहसुन की खेती सिर्फ जुताई और बुवाई तक सीमित नहीं है। इसके लिए मिट्टी, दूरी और समय पर सिंचाई बेहद जरूरी है। वैज्ञानिक तरीके से खेती करने पर किसान अपनी आमदनी दोगुनी कर सकते हैं।
सुल्तानपुर के किसान योगेश कुमार के अनुसार, लहसुन की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे बेहतर होती है। इसमें नमी संतुलित रहती है और पौधे अच्छी तरह बढ़ते हैं। खेत की 4–5 बार गहरी जुताई करनी चाहिए ताकि मिट्टी नरम और भुरभुरी हो जाए। इससे जड़ें गहराई तक फैलती हैं। जुताई के दौरान जल निकासी का ध्यान रखें, क्योंकि पानी जमा होने से फसल सड़ सकती है। अंतिम जुताई से तीन सप्ताह पहले कम्पोस्ट या सड़ी गोबर की खाद मिलाना फायदेमंद रहता है।
बीज बोने की दूरी का ध्यान
कृषि विज्ञान केंद्र सुल्तानपुर के डॉ. जे. बी. सिंह बताते हैं कि पौधे और पंक्तियों के बीच लगभग 10 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए। अगर बीज पास-पास बोए जाएं तो पौधों को बढ़ने के लिए जगह नहीं मिलती और पैदावार कम हो जाती है। सही दूरी पर बुवाई से फसल मजबूत और कंद बड़े व अच्छे गुणवत्ता वाले निकलते हैं।
उच्च पैदावार के लिए जमुना सफेद 1, 2, 3, एग्रीफाउंड सफेद और एग्रीफाउंड पार्वती जैसी किस्में अच्छी हैं। प्रति हेक्टेयर 6–7 क्विंटल बीज पर्याप्त होते हैं। बुवाई के 8–10 दिन बाद पहली सिंचाई करना जरूरी है, जिससे मिट्टी में नमी बनी रहती है और पौधों की शुरुआती वृद्धि तेज होती है।
लहसुन की खेती में ज्यादा खर्च या देखभाल की जरूरत नहीं होती। सही समय पर बुवाई, दूरी का ध्यान, नियमित सिंचाई और निराई से कुछ ही महीनों में फसल तैयार हो जाती है। सालभर मांग रहने के कारण यह किसानों के लिए एक लाभदायक और स्थायी फसल साबित होती है।