पिछले तीन दशकों में इंडियन इकोनॉमी तेजी से बढ़ी है। लेकिन, इस बीच देश में आर्थिक असमानता भी बढ़ी है। इकोनॉमी में रिफॉर्म्स का फायदा उन लोगों को ज्यादा मिला है, जिनके पास पहले से पैसे थे। उन्होंने अपने पैसे को निवेश कर ज्यादा पैसे बनाए हैं। हर साल इंडिया में बिलिनेयर्स की बढ़ती लिस्ट से इसकी पुष्टि होती है। फ्रांस के इकोनॉमिस्ट थॉमस पिकेटी ने हाल में इंडिया में अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई को पाटने पर अपनी राय पेश की थी। इसके बाद यह मसला फिर से सुर्खियों में आ गया है। सवाल है कि क्या सरकार यूनियन बजट 2025 में इस दिशा में कुछ बड़े कदम उठा सकती है?
आर्थिक उदारीकरण से अमीरों को ज्यादा फायदा
पिकेटी का मानना है कि आर्थिक उदारीकरण का फायदा अमीर भारतीयों ने ज्यादा उठाया है। उनका कहना है कि ऐसे लोगों को अपनी संपत्ति का कुछ हिस्सा देश में एजुकेशन और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए देना चाहिए। इसके लिए ज्यादा अमीर लोगों पर 2 फीसदी का वेल्थ (Wealth Tax) टैक्स लागाया जा सकता है। इससे हेल्थ और एजुकेशन जैसी चीजों के लिए काफी पैसा जुटाया जा सकता है। उन्होंने जीडीपी और टैक्स कलेक्शन के रेशियो को बढ़ाने के उपायों को भी जरूरी बताया।
कुल इनकम में गरीब लोगों की हिस्सेदारी घट रही
वर्ल्ड इनइक्विलिटी रिपोर्ट के डेटा के मुताबिक, इंडिया में कुल इनकम में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की हिस्सेदारी लगातार घट रही है। अगर आर्थिक रूप से कमजोर आबादी के आधे हिस्से की बात की जाए तो 1990 में कुल इनकम में इसकी हिस्सेदारी 21 फीसदी थी, जो 2021 में घटकर 13 फीसदी रह गई है। इसके उलट आबादी के 10 फीसदी सबसे अमीर लोगों की कुल इनकम में हिस्सेदारी 32 फीसदी से बढ़कर 57 फीसदी हो गई है। दूसरी स्टडी से भी इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि इकोनॉमिक ग्रोथ बढ़ाने का उपायों का असर दिखा है। लेकिन, इसका ज्यादा फायदा समाज के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को नहीं मिला है।
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सरकार को अपने खर्च की क्वालिटी बढ़ानी होगी
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी, 2025 को यूनियन बजट पेश करेंगी। इसमें वह आर्थिक रूप से कमजोर आबादी के करीब 50 फीसदी लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए बड़े कदम उठा सकती हैं। सरकार हर साल एजुकेशन और हेल्थ का बजट बढ़ाती है। लेकिन, इसका कितना फायदा आम लोगों को मिल रहा है? क्या सरकारी अस्पतालों में इलाज की सुविधाओं पर लोगों का भरोसा बढ़ रहा है? क्या मिडिल क्लास उन सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने में दिलचस्पी दिख रहा है, जिस पर सरकार हर वित्त वर्ष में अरबों रुपये खर्च करती है? इन सवालों के जवान तलाने से सरकार के कैपिटल एक्सपेंडिचर की क्वालिटी में इजाफा हो सकता है।