इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (आईएमएफ) ने कहा है कि काफी ज्यादा अमेरिकी टैरिफ के बावजूद इस साल इंडियन इकोनॉमी की ग्रोथ अच्छी रहने की उम्मीद है। इसमें गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) रेट्स में कमी का कुछ हाथ होगा। आईएमएफ की यह एसेसमेंट रिपोर्ट 26 नवंबर को रिलीज हुई है। इसमें कहा गया है कि 50 फीसदी अमेरिकी टैरिफ का असर एक्सटर्नल डिमांड पर पड़ेगा। इसके बावजूद इंडियन इकोनॉमी पर इसका असर सीमित रह सकता है। इसकी वजह यह है कि इंडिया की जीडीपी में मर्चेंडाइज एक्सपोर्ट की हिस्सेदारी अपेक्षाकृत कम है।
अमेरिकी टैरिफ का नहीं पड़ेगा ज्यादा असर
IMF की इस रिपोर्ट में कहा गया है, "अगस्त में अमेरिका ने भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगाया। इसका असर आउटलुक पर पड़ेगा। लेकिन, इसका असर बहुत ज्यादा नहीं होगा, क्योंकि मर्चेंडाइज एक्सपोर्ट्स में इंडिया की हिस्सेदारी अपेक्षाकृत कम है।" इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इंडिया में इकोनॉमी को लेकर स्थितियां अनुकूल हैं। ग्रोथ की रफ्तार अच्छी बनी हुई है और इनफ्लेशन कम है।
6.6 फीसदी रह सकती है जीडीपी की ग्रोथ
आईएमएफ ने FY26 में इंडियन इकोनॉमी की ग्रोथ 6.6 फीसदी रहने का अनुमान जताया। उसने कहा है कि इसके अगले साल इकोनॉमी की ग्रोथ 6.2 फीसदी रह सकती है। इस फाइनेंशियल ईयर में इनफ्लेशन घटकर 2.8 फीसदी पर आ सकता है। लेकिन, अगले वित वर्ष में यह बढ़कर 4 फीसदी तक जा सकता है। इस रिपोर्ट में फिस्कल मोर्चे पर इंडिया में आए इम्प्रूवमेंट की तारीफ की गई है। लेकिन, सरकार को कंसॉलिडेशन के लिहाज से ज्यादा महत्वाकांक्षी टारगेट तय करने की सलाह दी गई है।
डेफिसिट कम करने पर सरकार का फोकस
इस वैश्विक संगठन ने माना है कि भारत ने खर्च के मामले में अनुशासन बरता है। सरकार का फोकस डेफिसिट को कम करने पर बना हुआ है। आईएमएफ ने अपनी सलाह में कहा है कि भारत को फिस्कल कंसॉलिडेशन के अपने रोडमैप का विस्तार करना चाहिए। साथ ही मीडियम टर्म के लिए ज्यादा एग्रेसिव टारगेट तय करना चाहिए। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि हाई पब्लिक डेट और ग्लोबल अनिश्चितता को देखते हुए स्ट्रॉन्ग बफर बनाने की जरूरत है।
सरकार बढ़ा सकती है रिफॉर्म्स की रफ्तार
आईएमएफ ने भारत के नए ट्रेड एग्रीमेंट्स करने और स्ट्रक्चरल रिफॉर्म्स की रफ्तार बढ़ाने की संभावना जताई है। इससे एक्सपोर्ट, प्राइवेट इनवेस्टमेंट और एप्लॉयमेंट बढ़ेगा। हालांकि, उसने आगाह किया है कि जियोइकोनॉमिक स्थितियां खराब होने से ग्लोबल फाइनेंशियल कंडिशंस पर दबाव बन सकता है। इससे इनपुट कॉस्ट बढ़ सकती है, एफडीआई और ग्रोथ में कमी आ सकती है।