RBI Rate Cut or Not: हाल ही में अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने दरों में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती की थी। अब ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों में ऐसा ही कुछ हो सकता है। हालांकि जिन अर्थशास्त्रियों और एक्सपर्ट्स से मनीकंट्रोल ने बात की, उनका कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की तरफ से फिलहाल इस रास्ते को अपनाने की संभावना नहीं है। उनका मानना है कि आरबीआई का फोकस इसकी बजाय घरेलू इंडिकेटर्स जैसे कि इंफ्लेशन और ग्रोथ के आंकड़ों पर रहेगा।
क्या कहना है जानकारों का?
एएनजेड रिसर्च के इकनॉमिस्ट और फोरेक्स स्ट्रैटेजिस्ट धीरज निम (Dhiraj Nim) का कहना है कि अमेरिका में दरों में कटौती से आरबीआई के लिए रास्ता और खुल गया है लेकिन इसका फोकस ग्रोथ और इंफ्लेशन के बीच घरेलू बैलेंस पर बना रहेगा। उन्होंने कहा कि अगले महीने अक्टूबर में मौद्रिक नीतियों की समीक्षा के दौरान अगर आरबीआई दरों को स्थिर बनाए रखता है तो मार्केट को कोई हैरानी नहीं होगी, क्योंकि अभी तत्काल किसी कटौती की उम्मीद नहीं की जा रही है।
एक्सिस सिक्योरिटीज के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट राजेश पालवीय का कहना है कि भारत में अमेरिकी फेड के फैसले से भारत में विदेशी निवेशकों का निवेश बढ़ सकता है जिससे रुपये को मजबूती मिल सकती है और सेंसेक्स-निफ्टी को भी सपोर्ट मिल सकता है।
एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज की मुख्य इकनॉमिस्ट्स माधवी अरोड़ा का कहना है कि अमेरिकी फेड के फैसले से आरबीआई की पॉलिसी फ्लेक्सिबिलिटी बढ़ी है। हालांकि लेकिन उन्होंने आगाह किया कि नियर टर्म में आरबीआई का फोकस इंफ्लेशन पर जरूरत से ज़्यादा हो सकता है। माधवी के मुताबिक वैश्विक ग्रोथ की सुस्त स्पीड, टैरिफ को लेकर अनिश्चितता और अमेरिकी डॉलर की कमजोरी के चलते उभरते देशों के केंद्रीय बैंको को फोरेक्स के मोर्चे पर फोकस कम करने की सहूलियत मिली है। माधवी के मुताबिक इसके अलावा अमेरिकी फेड ने दरों में कटौती करके आरबीआई को कटौती के लिए और समय दे दिया है।
अक्टूबर में नहीं तो फिर कब होगी दरों में कटौती?
आरबीआई के मौद्रिक नीतियों के कमेटी की बैठक 29 सितंबर से 1 अक्टूबर तक चलेगी। मार्केट एक्सपर्ट्स और इकनॉमिस्ट्स के मुताबिक इसमें दरों में कटौती की संभावना नहीं है लेकिन उन्हें चालू वित्त वर्ष 2026 में एक और कटौती की उम्मीद है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि अमेरिकी फेड ने दरों में जो कटौती की है, उससे बाहरी दिक्कतें कम होंगी लेकिन आरबीआई घरेलू मार्केट में इंफ्लेशन के आधार पर अपने रुख को बैलेंस करेगा।
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