Bihar election 2025: किसने मारी बाजी, कौन हुआ फेल; समझिए NDA की बड़ी जीत के पीछे छिपी असली कहानी
Bihar election 2025: बिहार चुनाव में एनडीए ने 200 से ज्यादा सीटों पर बढ़त बनाकर शानदार जीत दर्ज की। नीतीश-मोदी की जोड़ी ने फिर कमाल किया, जबकि तेजस्वी यादव, राहुल गांधी और प्रशांत किशोर जैसे दावेदार बुरी तरह फ्लॉप रहे। जानिए इस हार-जीत के पीछे छिपी असली कहानी।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस चुनाव के सबसे बड़े विजेता हैं।
Bihar election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में नतीजे साफ हो चुके हैं। एनडीए (NDA) ने शानदार जीत दर्ज की है और 200 से ज्यादा सीटों पर बढ़त बनाई है। लेकिन इन बड़े आंकड़ों के पीछे कई दिलचस्प कहानियां छिपी हैं। कुछ नेताओं ने उम्मीदों से बढ़कर प्रदर्शन किया, तो कुछ पूरी तरह फ्लॉप साबित हुए।
सबसे बड़े विजेता कौन?
नीतीश कुमार: सुशासन बाबू की फिर जीत
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस चुनाव के सबसे बड़े विजेता हैं। उन्होंने हर चुनौती को मात दी है। फिर चाहे वो एंटी-इनकंबेंसी हो या फिर सेहत की परेशानी, राजनीतिक पलटवार और एनडीए में बीजेपी का दबदबा।
20 साल से सत्ता में टिके रहने के बाद भी उन्होंने अपनी पकड़ बनाए रखी है। उनकी पार्टी जेडीयू (JD-U) इस बार 43 से बढ़कर 80 से ज्यादा सीटों की ओर बढ़ रही है। यह बताता है कि बिहार अभी भी अपने 'सुशासन बाबू' को नकारने के लिए तैयार नहीं है।
नरेंद्र मोदी: हर चुनाव में भरोसे का चेहरा
एक बार फिर, बिहार के वोटरों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भरोसा जताया है। मोदी ने इस चुनाव में बिहार में 15 रैलियां और एक बड़ा रोड शो किया, जहां उन्होंने ‘डबल इंजन सरकार’ और विकास के वादे पर जोर दिया। बीजेपी के पास कोई स्थानीय बड़ा चेहरा नहीं था, इसलिए हर सीट पर असल में मोदी ही चेहरा बने और उन्होंने फिर कमाल कर दिखाया।
चिराग पासवान: युवा नेता की बड़ी छलांग
लोजपा (रामविलास) के नेता चिराग पासवान इस चुनाव के बड़े सरप्राइज पैकेज बने हैं। अपने पिता रामविलास पासवान की विरासत को आगे बढ़ाते हुए, उन्होंने लगातार दूसरे चुनाव में एनडीए को मजबूत किया है।
लोकसभा में जहां उनकी पार्टी ने 5 में से 5 सीटें जीती थीं, वहीं इस बार बिहार विधानसभा में 29 में से 22 सीटों पर जीत की राह पर है। इस प्रदर्शन से चिराग एनडीए में एक बड़े चेहरे के रूप में उभर रहे हैं।
एनडीए के छोटे सहयोगी: सीट शेयरिंग फॉर्मूला हुआ हिट
एनडीए के छोटे दलों ने भी इस बार बेहतरीन प्रदर्शन किया है। जीतन राम मांझी की हम (सेक्युलर) ने 6 में से 5 सीटें जीतीं, जबकि उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) ने 6 में से 4 सीटों पर जीत दर्ज की। ये नतीजे दिखाते हैं कि एनडीए का सीट शेयरिंग फॉर्मूला बिल्कुल सटीक बैठा।
वोटर्स: स्पष्ट जनादेश के सच्चे विजेता
बिहार के मतदाताओं, खासकर महिलाओं ने, इस बार एक स्पष्ट और स्थिर जनादेश दिया है। उन्होंने एनडीए पर भरोसा जताते हुए विकास और स्थिरता को प्राथमिकता दी। फटे-फटे जनादेशों के दौर में, ऐसा क्लियर रिजल्ट खुद में एक बड़ी जीत है और असली फायदा वोटर्स को ही मिलेगा।
अब बात हारने वालों की
तेजस्वी यादव: 'MY' राजनीति का जाल
तेजस्वी यादव ने एक बार फिर नीतीश-मोदी की जोड़ी को चुनौती देने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहे। उनकी दो बड़ी कमजोरियां फिर सामने आईं। वो अब भी ‘MY’ यानी मुस्लिम-यादव वोट बैंक से बाहर नहीं निकल पाए। ‘जंगलराज’ की छवि अब भी उन्हें पीछा कर रही है, जिससे वे एक भरोसेमंद विकल्प नहीं बन पाए।
राहुल गांधी: कांग्रेस की गाड़ी फिर पटरी से उतरी
राहुल गांधी ने कांग्रेस की किस्मत पलटने की कोशिश की, लेकिन नतीजे फिर निराशाजनक रहे। 2020 में कांग्रेस ने 19 सीटें जीती थीं, जबकि इस बार सिर्फ 5 सीटों पर आगे है। राहुल ने राष्ट्रीय मुद्दों पर फोकस किया, लेकिन बिहार के स्थानीय मसलों से दूर रहे। यही उनकी सबसे बड़ी गलती रही।
प्रशांत किशोर: मास्टर स्ट्रैटेजिस्ट, लेकिन ग्राउंड पर फेल
‘जन सुराज’ पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर का डेब्यू चुनाव पूरी तरह फ्लॉप रहा। जो व्यक्ति कभी दूसरों की जीत की रणनीति बनाता था, वो खुद एक भी सीट नहीं जीत पाया। उनका 'विकास बनाम जाति' का नैरेटिव मतदाताओं को नहीं भाया और नई पार्टी होने की वजह से संगठन भी कमजोर रहा।
मुकेश सहनी: VIP पार्टी की नैया डूबी
विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के प्रमुख मुकेश सहनी भी इस चुनाव में पूरी तरह फेल रहे। उन्होंने मल्लाह और निषाद समुदाय के वोटों पर भरोसा किया, लेकिन पार्टी 15 में से एक भी सीट नहीं जीत पाई। डिप्टी सीएम बनने का उनका सपना भी यहीं खत्म होता दिख रहा है।
तेज प्रताप यादव: खुद की पार्टी, लेकिन हार अपनी सीट से
लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने अपनी नई पार्टी जनशक्ति जनता दल (JJD) बनाई और 22 सीटों पर चुनाव लड़ा। लेकिन नतीजा यह रहा कि वह महुआ सीट से तीसरे स्थान पर रहे यानी अपनी ही सीट नहीं बचा पाए।
‘वोट चोरी’ नैरेटिव: हवा में उड़ गया मुद्दा
कांग्रेस और आरजेडी ने ‘वोट चोरी’ का नारा खूब उठाया, लेकिन इसका असर जमीन पर नहीं दिखा। जिन 106 सीटों पर इस नैरेटिव का असर माना जा रहा था, उनमें से 89 NDA को मिलीं और महागठबंधन सिर्फ 14 सीटों पर सिमट गया। मतलब यह कि वोटर इस मुद्दे से पूरी तरह बेपरवाह रहे।
INDIA ब्लॉक: कमजोर एकजुटता, कमजोर प्रदर्शन
यह चुनाव INDIA गठबंधन के लिए भी बड़ा झटका साबित हुआ। लोकसभा के बाद जहां विपक्ष ने वापसी के संकेत दिए थे, वहीं अब हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली और बिहार में हार ने उनकी स्थिति कमजोर कर दी है। बिहार में NDA की यह जीत बताती है कि विपक्ष की रणनीति और तालमेल, दोनों ही कमजोर पड़ रहे हैं।