केवल बिहार चुनाव नहीं, जातीय जनगणना के पीछे ये है BJP की रणनीति! पूरे देश में हो सकता है असर
Bihar Chunav 2025: सपा, राजद समेत अन्य विपक्षी दल भी इसे अपनी जीत बता रहे हैं। दूसरी तरफ बीजेपी के सभी बड़े नेताओं ने इस निर्णय को ऐतिहासिक करार दिया है। जबकि अभी तक जातीय जनगणना को लेकर बीजेपी का स्टैंड उलट रहा है। सवाल यह है कि जातीय जनगणना को लेकर भविष्य में राजनीति कैसा आकार लेगी
Bihar Election 2025: केवल बिहार चुनाव नहीं, जातीय जनगणना के पीछे ये है BJP की रणनीति! पूरे देश में हो सकता है असर
केंद्र की NDA सरकार देश में जातीय जनगणना कराने पर राजी हो गई है। बुधवार को इस संबंध में केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने घोषणा की कि इस बार सामान्य जनगणना के साथ ही जातीय जनगणना भी कराई जाएगी। सरकार की इस घोषणा के साथ ही कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने इसे अपनी जीत करार दिया। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस कर इसे अपनी जीत बताया है।
सपा, राजद समेत अन्य विपक्षी दल भी इसे अपनी जीत बता रहे हैं। दूसरी तरफ बीजेपी के सभी बड़े नेताओं ने इस निर्णय को ऐतिहासिक करार दिया है। जबकि अभी तक जातीय जनगणना को लेकर बीजेपी का स्टैंड उलट रहा है। सवाल यह है कि जातीय जनगणना को लेकर भविष्य में राजनीति कैसा आकार लेगी?
90 के दशक से तेज हुई जातीय जनगणना की मांग
जातीय जनगणना पर वर्तमान राजनीति समझने के पहले यह जानना जरूरी है कि इसका इतिहास क्या रहा है? ब्रिटिश काल में हुई जातीय जनगणना से इतर अगर बात करें तो इसकी मांग 90 के दशक में ओबीसी आरक्षण लागू होने के बाद तेज हुई थी। देश में संयुक्त मोर्चा की सरकार ने जातीय जनगणना कराने का फैसला किया था। जिसे बाद में NDA की वाजपेयी सरकार ने लागू नहीं किया।
2011 की जनगणना के दौरान लालू ने मुलायम सिंह यादव और शरद यादव के साथ मिलकर संसद में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। उन्होंने सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना की मांग की, जिसके लिए संसद को कई दिन ठप किया गया। बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सामाजिक-आर्थिक सर्वे का वादा किया था। हालांकि, 2011 में भी जातीय जनगणना के आंकड़ों को जारी नहीं किया गया था।
इसके बाद यह मांग लगातार उठती रही है। बिहार ऐसा राज्य है जहां के दो शीर्ष नेता जातीय जनगणना के मुद्दे पर लगातार मुखर रहे हैं। ये नेता हैं लालू यादव और नीतीश कुमार। लालू प्रसाद यादव ने जातीय जनगणना की मांग 1996-97 से शुरू की थी, जब वे जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना की मांग कम से कम 1994 से उठानी शुरू की थी, जैसा कि जदयू प्रवक्ता नीरज कुमार और अन्य स्रोतों ने दावा किया है।
नीतीश कुमार तो बिहार में जातीय सर्वेक्षण करवा भी चुके हैं। तब वो बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के साथ सत्ता में थे। हालांकि बाद में उन्होंने पाला बदल लिया और बीजेपी के साथ एनडीए का हिस्सा बन गए। बिहार में हुए जातीय सर्वेक्षण, नीतीश और लालू द्वारा जातीय जनगणना की मांग और अगले कुछ महीनों में ही प्रस्तावित बिहार चुनाव के मद्देनजर यह कयास भी लगाया जा रहा है कि केंद्र ने इसीलिए जातीय जनगणना का फैसला किया है।
खैर, कयासबाजी से इतर जातीय जनगणना का वर्तमान ये भी है कि कभी इसकी विरोधी रही कांग्रेस अब इसकी समर्थक है। लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक कांग्रेस नेता राहुल गांधी पूरी ताकत के साथ जातीय जनगणना की मांग करते रहे हैं। इस लिस्ट में सपा के अखिलेश यादव भी शामिल हैं।
जातीय राजनीति का नया अध्याय शुरू होगा?
जातीय जनगणना के इतिहास और वर्तमान में एक बात अहम है और वो बीजेपी का स्टैंड इसके खिलाफ रहा है। लेकिन अब कहानी पूरी तरह बदल चुकी है। बुधवार को हुई इस घोषणा के बाद साफ हो गया है कि जातीय गोलबंदी की राजनीति में भी बीजेपी विपक्षी दलों को वॉकओवर नहीं देने जा रही है। जातीय जनगणना को लेकर बीजेपी उत्तर प्रदेश में अपनी अपनाई गई अपनी राजनीति को आगे बढ़ा सकती है। उत्तर प्रदेश में बीजेपी की राजनीति क्या रही है?
दरअसल 2014 के बाद यूपी में बीजेपी ने ओबीसी वर्ग में गैर-यादव और दलित वर्ग में गैर-जाटव रणनीति के तहत अपना बड़ा वोटबैंक तैयार किया है। राज्य में अब कई मजबूत जातीय वर्ग तैयार हो चुके हैं, जो एनडीए के खेमे को मजबूत कर रहे हैं। यूपी में 'गैर-यादव' ओबीसी जातियों में निषाद, राजभर और कुर्मी समाज की अपनी पार्टियां मजबूत दावेदारी पेश कर रही हैं।
संभव है कि जातीय जनगणना के चौंकाने वाले फैसले के साथ बीजेपी अपनी रणनीति में किसी बड़े बदलाव की तैयारी कर रही हो। यूपी की तरह अन्य राज्यों में नए जातीय समूह और उनसे जुड़ी राजनीतिक पार्टियां दिख सकती हैं। इस रणनीति के तहत बड़े OBC समूह का एकमुश्त वोटबैंक कई हिस्सों में बंट सकता है।
2024 के नतीजों का भी असर?
जातीय जनगणना के निर्णय के पीछे 2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को लगे झटके भी अहम वजह माने जा सकते हैं। उस चुनाव में विपक्ष के 'संविधान विरोधी नैरेटिव' की वजह से बीजेपी को झटका लगा था। चुनाव में बीजेपी ने जबरदस्त तरीके से जातीय जनगणना का मुद्दा उठाया था। चुनाव के बाद भी विपक्षी दल इसकी मांग संसद के अंदर और बाहर करते रहे हैं। अब बीजेपी ने जातीय जनगणना का फैसला कर पूरी बाजी पलटने की कोशिश की है।
हालांकि, यह स्पष्ट है कि बीजेपी हिंदुत्व पर अपनी राजनीति से हटने नहीं जा रही है। लेकिन वह नई रणनीति के तहत यह प्रयास जरूर करेगी कि नए जातीय समूह उसकी तरफ आकर्षित हों। इससे बीजेपी को वोटबेस में इजाफा होगा। अब जातीय जनगणना का फैसला कर बीजेपी सीधे विपक्ष से उसी की पिच पर मुकाबला करने की रणनीति पर काम कर सकती है।