Bihar Assembly Elections 2025: बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर 6 और 11 नवंबर को मतदान होने हैं, जिसको देखते हुए राजनीतिक पार्टियां जनता से कई नए-नए वादे कर रही हैं। साथ ही राज्य में बहुमत प्राप्त सरकार बनाने का भी दावा कर रही हैं। वहीं दूसरी तरफ चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने और जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि आगामी बिहार विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी को या तो 10 से कम वोट मिलेंगे या 150 से ज्यादा।
NDTV के बिहार पावर प्ले कॉन्क्लेव में प्रशांत किशोर ने कहा, "हम दावेदारों को चुनाव लड़ा रहे हैं। बस फर्क इतना है कि हमने इसे अंजाम देने के लिए एक नया स्वरूप तैयार किया है। अगर हम 2014 में प्रधानमंत्री मोदी के चुनाव प्रचार अभियान (जिसका मैंने जिम्मा संभाला था) को देखें, तो वह एक नया स्वरूप था क्योंकि एक राज्य का मुख्यमंत्री राष्ट्रीय नेता बन जाता था। इसमें कोई बड़ा अंतर नहीं है।"
रिस्क तो रहता ही है- प्रशांत किशोर
उन्होंने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के अपने बीजेपी के 100 से नीचे वाली बात की याद दिलाते हुए कहा कि रिस्क तो रहता ही है। मैं जो देख रहा हूं अभी कि जिन्हें 20 साल से विकल्प की आवश्यकता थी, उन्हें विकल्प मिल गया है। अब जनता को वोट करना है। इस चुनाव में या तो 10 से नीचे या 150 सीटों से ऊपर हम रहेंगे।
प्रशांत किशोर ने कहा कि 243 सीटों पर हमने उम्मीदवार उतारे थे, 4 लोग बीजेपी में चले गए। 1 और चले गए। फिलहाल हम 238 सीटों पर लड़ रहे हैं। इनमें से 160 से 170 सीटों पर त्रिकोणीय लड़ाई होगी। ये तय मान लीजिए।
जातीवाद पर बोले प्रशांत किशोर
प्रशांत किशोर ने खुद के अपर कास्ट होने पर कहा कि लोग सबसे बड़ी गलती ये मान लेते हैं कि बिहार में जातिवाद बाकी राज्यों से ज्यादा है। उन्होंने कहा, “1984 में जब कांग्रेस को भारी सफलता मिली, तो बिहार में भी वही नतीजे दिखे। 1989 में वी.पी. सिंह जीते, तब भी बिहार ने साथ दिया। 2014 में मोदी जी की लहर चली, और 2019 में पुलवामा के नाम पर भी जीत हुई। जब-जब लहर उठी है तो बिहार में भी वो दिखा है। तो बिहार में उतना ही जातिवाद है जितना महाराष्ट्र, कर्नाटक या आंध्र प्रदेश में है, इससे ज्यादा नहीं। ये केवल एक पूर्वाग्रह है।”
उन्होंने आगे कहा, “अगर एक तरफ MY (मुस्लिम-यादव) और दूसरी तरफ ‘सबका साथ’ की बात की जाती है, तो फिर ये सोचिए कि वो 26 प्रतिशत लोग कौन हैं जिन्होंने इन दोनों को वोट नहीं दिया? अगर सारे MY वोट लालू जी को ही मिले होते, तो उनका वोट प्रतिशत कहीं ज्यादा होता।”
किशोर ने कहा कि जाति की राजनीति को समझना और जाति की राजनीति को करना दो अलग-अलग बाते हैं। जन सुराज के उम्मीदवार भी किसी न किसी जाति से आते हैं, लेकिन कोई ये नहीं कह रहा कि जन सुराज का नेतृत्व अगड़ा, पिछड़ा या ओबीसी वर्ग का है। हमारे लिए चुनाव का आधार मेरिट है।”
अति पिछड़ा वर्ग को बड़ी संख्या में टिकट मिला
उन्होंने आगे कहा, “1000 लोगों लोगों में से केवल 243 ही चुनकर विधानसभा तक पहुंचेंगे। हमारा उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जब ये प्रतिनिधि जीतकर आएं, तो हर समुदाय की समान और न्यायपूर्ण भागीदारी हो। जन सुराज ने पहली बार इतिहास में अति पिछड़ा वर्ग को इतनी बड़ी संख्या में टिकट देकर नई मिसाल कायम की है। मुसलमानों को भी बराबर का प्रतिनिधित्व दिया गया है।”
गठबंधन से ऊबे हुए लोग हमारा वोटबैंक हैं- किशोर
प्रशांत किशोर ने कहा कि हमारा वोटबैंक वो लोग हैं जो दोनों गठबंधनों से ऊब गए हैं। ये वो लोग हैं, जो बदलाव चाहते हैं। इनकी जाति हो सकती है, लेकिन कॉमन बात ये है कि ये बदलाव चाहते हैं।