Sitaare Zameen Par Review: कितनी खास है आमिर खान की ये फिल्म, जानें कैसा रहा 'मिस्टर परफेक्शनिस्ट' का कमबैक
Sitaare Zameen Par Review: आमिर खान की नई फिल्म सितारे ज़मीन पर में एक ब्लॉकबस्टर बनने के सारे जरूरी एलिमेंट मौजूद हैं। यह फिल्म पहले आई 'तारे जमीन पर' की तरह ही शानदार सीक्वल है। 'सितारे जमीन पर आपके दिल को छू जाती है। आपके सोचने के तरीके को सवाल करती है। ये आपको हंसाती है, रुलाती है और उम्मीद भी दे जाती है
Sitaare Zameen Par Review: बॉलीवुड के मिस्टर परफेक्शनिस्ट आमिर खान ने तीन साल बाद बड़ा पर्दे पर वापसी की है।
बॉलीवुड के मिस्टर परफेक्शनिस्ट आमिर खान ने तीन साल बाद बड़ा पर्दे पर वापसी की है। उनकी फिल्म ‘सितारे जमीन पर’ सिनेमाघरों में दस्तक दे दी है। इससे पहले 2022 में आमिर खान फिल्म 'लाल सिंह चड्ढा' आई थी जो फ्लॉप रही थी, जिसके बाद अब उन्होंने कमबैक किया है। तीन साल बाद सिल्वर स्क्रीन पर वापसी कर रहे आमिर खान कितना कमाल कर पाए हैं और ये फिल्म दर्शकों पर मिस्टर परफेक्शनिस्ट के बाकी फिल्मों की तरह जादू दिखा पा रही है...इस सारे सवालों का जवाब जान लें इस फिल्म के रिव्यू में। आइए जानते हैं कैसी है ये फिल्म।
'तारे जमीन पर' से अलग है ये फिल्म!
आमिर खान की नई फिल्म सितारे ज़मीन पर में एक ब्लॉकबस्टर बनने के सारे जरूरी एलिमेंट मौजूद हैं। यह फिल्म पहले आई 'तारे जमीन पर' की तरह ही शानदार सीक्वल है। फिल्म एक जरूरी सोशल मैसेज देती है और इसे हल्के-फुल्के ह्यूमर और सकारात्मक भावनाओं के साथ पेश किया गया है। 'सितारे जमीन पर आपके दिल को छू जाती है। आपके सोचने के तरीके को सवाल करती है। ये आपको हंसाती है, रुलाती है और उम्मीद भी दे जाती है।
स्पेनिश फिल्म का शानदार रीमेक
हालांकि यह फिल्म स्पेनिश फिल्म कैंपियन्स की रीमेक है, फिर भी इसे भारतीय दर्शकों के हिसाब से ढालने की अच्छी कोशिश की गई है। लेकिन कहीं न कहीं, फिल्म उस स्तर तक नहीं पहुंच पाती, जहां यह वाकई एक यादगार फिल्म बन सके। फिल्म के निर्देशक आर.एस. प्रसन्ना हैं और कहानी एक सहायक बास्केटबॉल कोच गुलशन के इर्द-गिर्द घूमती है।
बास्केटबॉल कोच की कहानी
दिल्ली में एक टूर्नामेंट के दौरान, वह अपने मुख्य कोच को घूंसा मार देता है क्योंकि वह उसे ‘टिंगू’ कहकर चिढ़ाता है। इस संवाद में ह्यूमर भी देखने को मिलता है, जो कहानी को और दिलचस्प बनाता है। गुस्से में आकर गुलशन शराब पी लेता है और गलती से एक पुलिस वैन को टक्कर मार देता है। इसके बाद वह पहले लॉकअप पहुंचता है और फिर कोर्ट में पेश होता है। शराब पीकर गाड़ी चलाने (DUI) के इस मामले में उसे जुर्माना भरना पड़ता है। खासतौर पर इसलिए भी क्योंकि उसने डिसेबल लोगों को 'पागल' कहा था।
इन खास किरदारों से खास बनती फिल्म
सजा के तौर पर कोर्ट उसे सामुदायिक सेवा करने का आदेश देता है। इसके तहत उसे एक हॉस्टल में भेजा जाता है, जहां इंटेलेक्चुअल डिसेबल लोगों के एक ग्रुप को बास्केटबॉल टूर्नामेंट के लिए ट्रेनिंग देनी होती है। यहीं उसकी मुलाकात होती है कुछ खास किरदारों से — सुनील, राजू, शर्माजी, करीम, बंटू, लोटस, हरगोविंद, सतबीर और फिर गोलू से। ये लोग उसे धीरे-धीरे सिखाते हैं कि असली जीत सिर्फ ट्रॉफी जीतने में नहीं, बल्कि समझदारी, अपनापन और इज्जत कमाने में होती है।
फिल्म में जिन लोगों को गुलशन ट्रेन करता है, वे अलग-अलग मानसिक स्थितियों से जूझ रहे हैं, जैसे - ऑटिज्म, अदृश्य ऑटिज्म, डाउन सिंड्रोम और फ्रैजाइल एक्स सिंड्रोम। लेकिन इन सबके बावजूद, उनके जीवन के प्रति जोश और जज़्बा कमाल का है। गुलशन खुद भी एक मुश्किल दौर से गुजर रहा है। उसकी शादी ठीक नहीं चल रही। उसकी पत्नी सुनीता बच्चा चाहती है, लेकिन गुलशन इसके लिए तैयार नहीं। बहस से बचने के लिए वह अपनी मां के घर चला जाता है।
काफी खास है ये फिल्म
शुरुआत में वह इन बच्चों के साथ सहज नहीं होता, लेकिन धीरे-धीरे वह उनके साथ घुलने-मिलने लगता है। टूर्नामेंट के करीब आते-आते वे गुलशन के दिल के बहुत करीब आ जाते हैं। इस सफर से उसे अपनी पत्नी के साथ रिश्ते सुधारने की भी प्रेरणा मिलती है। कहानी सीधी-सादी लग सकती है और है भी – लेकिन इसकी खासियत यह है कि यह न्यूरोडाइवर्जेंस को संवेदनशील और ईमानदार तरीके से दिखाती है। बॉलीवुड में ऐसा कम ही देखने को मिलता है। ‘सितारे ज़मीन पर’ इस मायने में एक सही और सशक्त उदाहरण पेश करती है।
फिल्म के कलाकारों की कास्टिंग के लिए निर्माताओं की सराहना करनी होगी। ऐसी कहानियों में स्पेक्ट्रम पर मौजूद किरदारों को सही तरीके से दिखाना अक्सर मुश्किल होता है, लेकिन इस फिल्म ने इस दिशा में एक नई मिसाल कायम की है। 'सितारे ज़मीन पर' ने वाकई पुराने सोच को तोड़ा है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि फिल्म का ह्यूमर इसका सबसे मजबूत हिस्सा बनकर सामने आता है। आमतौर पर न्यूरोडाइवर्जेंट किरदारों को लेकर कहानी में गंभीरता ही दिखाई जाती है, लेकिन यहां भावनाओं के साथ-साथ हंसी का भी संतुलन बनाए रखा गया है।
निर्देशक आरएस प्रसन्ना ने बड़ी सादगी और समझदारी से इन जटिल पहलुओं को दिखाया है। यही वजह है कि जब ये खास बच्चे गुलशन की बात नहीं मानते, गलती से उसे गेंद मार देते हैं, बेहोश हो जाते हैं, प्लेन देखकर समय का अंदाज़ा नहीं लगा पाते या पानी से डर की वजह से कई दिन तक नहीं नहातेतो ये पल सिर्फ मजेदार नहीं, बल्कि दिल से जुड़ने वाले भी बन जाते हैं।
क्यों देखें इस फिल्म को?
'सितारे ज़मीन पर' न्यूरोडाइवर्सिटी यानी मानसिक रूप से अलग तरह से सोचने वाले लोगों की खासियतों को सेलिब्रेट करता है। यह शामिल करने वाली सोच को बढ़ावा देता है, इससे जुड़े झिझक और भेदभाव को तोड़ता है और आपको यह सोचने पर मजबूर करता है कि "सामान्य" आखिर है क्या। आज जब ज़्यादातर फिल्में या तो एक्शन से भरी होती हैं या ज़बरदस्त देशभक्ति पर केंद्रित होती हैं, ऐसे में ये फिल्म ताजगी भरी लगती है।