बच्चों का मूडी होना, खाना खाने में नखरे करना सामान्य सी बात है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि उसके इस बर्ताव के पीछे एक ऐसा कारण छिपा हो सकता है, जो उसके पूरे जीवन पर असर डाल सकता है? नहीं न। आजकल बाल रोग विशेषज्ञ यानी चाइल्ड स्पेशलिस्ट बच्चों के इस बर्ताव को नजरअंदाज न करने की सलाह देते हैं। इनका मानना है कि बच्चे का हर समय का ऐसा व्यवहार उसकी पेट की समस्या का संकेत हो सकता है। हाल के वर्षों में, विज्ञान ने आंत और मस्तिष्क के बीच गहरे संबंध का पता लगाया है। यह आंत-मस्तिष्क अक्ष के माध्यम से जुड़ा हुआ है। यह एक दो-तरफा कम्युनिकेशन सिस्टम है जहां एक की सेहत दूसरे अंग पर सीधे तौर से असर डाल सकती है।
कानपुर स्थित अपोलो स्पेक्ट्रा अस्पताल में पेडियाट्रिक्स ऐंड नीयोनेटोलॉजी सलाहकार, डॉ. शशांक त्रिवेदी ने मनीकंट्रोल को बताया, ‘बच्चे की आंत में खरबों सूक्ष्मजीव होते हैं जो न केवल पाचन में मदद करते हैं, बल्कि सेरोटोनिन जैसे प्रमुख मस्तिष्क रसायन भी उत्पन्न करते हैं।’ वे आगे कहते हैं, ‘सेरोटोनिन मूड नियंत्रण, नींद और यहां तक कि एकाग्रता में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।’
जब आंत में कोई समस्या होती है, तो ये सूक्ष्मजीव असंतुलित हो जाते हैं। ये चाहे वह प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों से भरपूर खाने, बार-बार एंटीबायोटिक दवाओं, या पर्याप्त फाइबर की कमी जैसी किसी भी वजह से हो सकती है। इसके कारण बच्चों के मिजाज में उतार-चढ़ाव, चिंता, बेचैनी या यहां तक कि नींद न आने के लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
जिन बच्चों को बार-बार पेट की समस्या होती है, वे अधिक चिड़चिड़े या भावनात्मक रूप से अशांत होते हैं। डॉ. त्रिवेदी के अनुसार, पेट की लगातार बनी रहने वाली समस्या बच्चे के बर्ताव में बदलाव ला सकती है। वह कहते हैं, ‘अक्सर हम देखते हैं कि आंत संबंधी समस्याओं का समाधान करने के बाद भावनात्मक लक्षण ठीक हो जाते हैं।’ उनके अनुसार, इसका समाधान फलों, सब्जियों, साबुत अनाज और प्रोबायोटिक्स से भरपूर संतुलित आहार में है। प्रोबायोटिक्स आपको दही या फर्मेंटेड फूड में मिलते हैं। डॉ. त्रिवेदी कहते हैं, ‘और हां, पानी पीना न भूलें। आंतों और दिमाग को सुचारू रूप से चलाने में हाइड्रेशन की अहम भूमिका होती है।’
एक स्वस्थ पाचन बच्चों को न सिर्फ दोपहर का खाना पचाने में मदद करता है, बल्कि यह बेहतर नींद, ध्यान और मन की शांति की चाबी भी हो सकता है। डॉ. त्रिवेदी के मुताबिक, ‘जब हम बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य की बात करते हैं, तो अक्सर आंतों की सेहत को नजरअंदाज कर दिया जाता है। लेकिन ये सिर्फ शारीरिक विकास में ही नहीं, बल्कि भावनात्मक स्थिरता में भी मददगार हो सकता है।’ इसलिए अगली बार जब आपका बच्चा चिड़चिड़ा या मूडी लगे, तो सबसे पहले उसके खानपान पर ध्यान दें। इसके बाद भी अगर दिक्कत बनी रहती है, तो डॉक्टर की सलाह जरूर लें।