Vice-President polls 2025: सीपी राधाकृष्णन BJP के लिए खोलेंगे दक्षिण के द्वार! NDA ने बनाया है उपराष्ट्रपति कैंडिडेट
CP Radhakrishnan News: उपराष्ट्रपति का पद खाली होने के बाद बड़े कयास लगाए जा रहे थे कि कौन होगा एनडीए का उम्मीदवार। संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद जब सीपी राधाकृष्णन के नाम का ऐलान हुआ तो साफ हो गया कि ये बीजेपी की एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है
CP Radhakrishnan News: पीएम मोदी से राधाकृष्णन ने दिल्ली में मुलाकात की
महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की ओर से उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया है। सोमवार (17 अगस्त) शाम राधाकृष्णन दिल्ली पहुंचे जहां उनके स्वागत के लिए मोदी सरकार के मंत्रियों समेत दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता भी मौजुद थीं। पीएम मोदी से भी राधाकृष्णन ने मुलाकात की। उपराष्ट्रपति का पद खाली होने के बाद बड़े कयास लगाए जा रहे थे कि कौन होगा एनडीए का उम्मीदवार। संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद जब सीपी राधाकृष्णन के नाम का ऐलान हुआ तो साफ हो गया कि ये बीजेपी की एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है।
इसमें चुनावी गणित और गहरी क्षेत्रीय रणनीति समाहित है। सीपी राधाकृष्णन के नाम का ऐलान सिर्फ व्यक्तिगत रूप से संघ और जनसंघ से उनके जुडाव का इनाम नहीं है। बल्कि यह तमिलनाडु और दक्षिणी राज्यों में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए बीजेपी के नए प्रयास का संकेत है। आलाकमाना ये जानता है कि कर्नाटक से आगे बीजेपी को अपनी पकड़ बनाने के लिए खासा संघर्ष करना पड़ रहा है।
संघ से जुड़ाव, बीजेपी खांचे में फिट राधाकृष्णन
राधाकृष्णन को चुनने का एक कारण उनकी सियासी पृष्ठभूमि भी है। असल में वो लंबे समय तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के साथ जुड़े हुए थे। बीजेपी ने उन्हें आगे कर संघ को भी संकेत दिया है। पिछले कुछ महीनों में कई ऐसे मौके आए जब संघ और बीजेपी में दरार की खबरें आईं। बीजेपी जानती है कि दक्षिण में विस्तार के लिए अभी भी संघ का संगठन बहुत जरूरी है। ऐसे में ये उम्मीदवारी संघ को भी संतुष्ट कर सकती है। पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की सियासी पृष्ठभूमि समाजवादी और कांग्रेस की रही है।
वह बाद में भाजपाई हुए। जबकि राधाकृष्णन बीजेपी के वैचारिक मार्गदर्शक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा से उपजे नेता हैं। राधाकृष्णन का 17 साल की उम्र से ही आरएसएस और जनसंघ से जुड़ाव रहा है। जगदीप धनखड़ से उलट राधाकृष्णन पर कोई राजनीतिक बोझ भी नहीं है। उन्हें आम सहमति बनाने वाले संभावित उम्मीदवार के रूप में ज्यादा देखा जाता है। खास बात ये कि अब संघ और बीजेपी आलाकमान को यकीन हो गया है कि ऐसे स्थानों पर अपने काडर की नियुक्ति हो तो ही भला होगा।
बीजेपी के लिए तमिलनाडु में अपनी उपस्थिति को और ज्यादा मजबूत करना कई सालों का सपना है। पार्टी ने सुधार जरूर किया है। संगठन भी खड़ा हो चुका है। लेकिन अभी भी उम्मीद के मुताबिक समर्थन नहीं मिल रहा है। कर्नाटक को छोड़कर बीजेपी अभी तक दक्षिण भारत के राज्यों में अपने पैर नहीं जमा पाई है। तमिलनाडु में करीब डेढ़ साल बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। सीपी राधाकृष्णन के नाम का विरोध भी कई विपक्षी पार्टियां नहीं कर पाएंगी। 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों में तमिलनाडु में डीएमके-कांग्रेस गठबंधन ने शानदार प्रदर्शन किया।
2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने तमिलनाडु में कुछ सीटों पर बेहतर प्रदर्शन किया। लेकिन वह डीएमके और एआईएडीएमके के मुकाबले काफी कम रहा। अगर वोट शेयर की बात करें तो बीजेपी को 2024 के लोकसभा चुनाव में 11.24 फीसदी वोट मिले थे जबकि डीएमके को 26.93% और एआईएडीएमके को 20.46 फीसदी वोट प्राप्त हुए थे।
तमिलानाडु में सत्तारूढ़ DMK को 22 सीटों पर जीत मिली थी। जबकि बीजेपी का खाता भी नहीं खुला था। इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में डीएमके को 33.2%, एआईएडीएमके को 18.7 वोट मिले। जबकि बीजेपी को 3.7 फीसदी वोट मिले थे। कुल मिलाकर देखा जाए को 2024 में बीजेपी के वोट प्रतिशत में करीब 8 फीसदी का इजाफा हुआ। इसलिए अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से बीजेपी को काफी उम्मीदें हैं।
बीजेपी का ओबीसी कार्ड-डीएमके का धर्मसंकट
तमिलनाडु में 32 सांसदों वाली और सबसे बड़ी पार्टी द्रमुक के सामने सबसे बड़ा सवाल यही होगा कि क्या उसे अपने राज्य से आने वाले उम्मीदवार का समर्थन करना चाहिए या नहीं? खासकर ऐसे वक्त पर जब अगले साल तमिलनाडु में चुनाव होने वाले हैं। अगर राधाकृष्णन निर्वाचित होते हैं, तो वे उपराष्ट्रपति बनने वाले तमिलनाडु के तीसरे नेता बन जाएंगे।
बीजेपी ने सीपी राधाकृष्णन को आगे कर एक बड़ा दांव खेल दिया है। राधाकृष्णन गाउंटर (कोंगु वेल्लालर) समुदाय से आते हैं। इसे तमिलनाडु की राजनीति का अहम वोट बैंक माना जाता है। राज्य की पश्चिमी बेल्ट में तो यह वोटबैंक और ज्यादा निर्णायक साबित होता है। ऐसे में ये ओबीसी कार्ड डीएमके की मुश्किलें बढा सकता है। ऊपर से तमिलनाडू के उम्मीदवार को वोट नहीं देकर डीएमके अपने वोट बैंक को छिटकाना नहीं चाहती।
'इंडिया' गठबंधन की मुश्किल
सीपी राधाकृष्णन का उप राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाने के दांव से 'इंडिया' गठबंधन में दरार तक पड़ सकती है। यहां भी सबसे बड़ा खतरा तो डीएमके को लेकर है जिसके कुल 32 सांसद हैं। असल असल में कुछ साल पहले ही एक डीएमके नेता ने राधाकृष्णन को लेकर कहा था कि वे एक अच्छे इंसान हैं। लेकिन उन्होंने पार्टी गलत चुन रखी है।
कुछ दूसरे डीएमके नेताओं ने भी निजी तौर पर राधाकृष्णन को पसंद किया है। ऐसे में उनका विरोध करना डीएमके लिए भी आसान नहीं होगा। अगर ऐसा होता है तो विपक्ष में दरार पड़ सकती है। तभी तो डीएमके तमिलनाडू के ही किसी नेता को इंडिया गठबंधन का उम्मीदवार बनाने की कोशिश में लग गई है। उधर ममता बैनर्जी की टीएमसी ने एक गैर राजनीतिक व्यक्ति को उम्मीदवार बनाने का संकेत देकर कांग्रेस आलाकमान की मुश्किलें बढा दी हैं।
अब क्या करेगी डीएमके?
तमिलनाडु की DMK का सीपी राधाकृष्णन को लेकर रुख क्या होगा? इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं। जब राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के नामों को लेकर विपक्ष में दरार पड़ चुकी है। द्रमुक के प्रवक्ता टीकेएस एलंगोवन ने भी एनडीए की ओर से उपराष्ट्रपति पद के लिए चुने गए उम्मीदवार को एक अच्छा फैसला बताया। हालांकि, उन्होंने कहा कि द्रमुक विपक्षी गठबंधन का हिस्सा है और वह गठबंधन के फैसले का पालन करेगी।
पहले भी जब यूपीए ने राष्ट्रपति पद के लिए प्रतिभा पाटिल को अपना उम्मीदवार बनाया था, तब शिवसेना ने एनडीए का हिस्सा होने के बावजूद उनका समर्थन किया था, क्योंकि वह महाराष्ट्र से थीं। इसी तरह जब यूपीए ने प्रणब मुखर्जी को नामित किया, तो एनडीए में होने के बावजूद शिवसेना और जदयू दोनों ने अपना समर्थन दिया। ऐसे ही जब एनडीए ने रामनाथ कोविंद का नाम प्रस्तावित किया तो जदयू ने विपक्ष में होने के बावजूद उनका समर्थन किया, क्योंकि वे बिहार के राज्यपाल थे।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष,मल्लिकार्जुन खड़गे, तमिलनाडू के सीएम स्टालिन, ओडिशा के पूर्व सीएम नवीन पटनायक समत विपक्ष के कई नेताओं से बात कर एनडीए उम्मीदवार के लिए समर्थन मांगा है। मंगलवार को एनडीए के संसदीय दल की बैठक में पीएम मोदी वीपी उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन का परिचय सभी सांसदों से करवाएंगे। नंबरों के खेल में एनडीए कहीं आगे है। लेकिन फिर भी एनडीए के नेता कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। सभी एनडीए के मुख्यमंत्री 21 को राधाकृष्णन के नामांकन के दौरान बीजेपी के आला नेताओं के साथ मौजुद रहेंगे।