नौकरी के नाम पर धोखाधड़ी, साइबर ठग बना रहे युवाओं के बैंक अकाउंट को मनी म्यूल

Ernakulam: साइबर धोखाधड़ी में शामिल लोग अब ऑनलाइन नौकरी की तलाश कर रहे युवाओं को निशाना बना रहे हैं, ताकि उनके बैंक अकाउंट पर कब्जा करके उन्हें साइबर अपराध के लिए म्यूल अकाउंट में बदल सकें। ठग पहले युवाओं से संपर्क करते हैं और उन्हें उच्च रिटर्न वाले ऑनलाइन ट्रेडिंग के अवसर प्रदान करते हैं।

अपडेटेड Nov 26, 2025 पर 7:55 AM
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नौकरी के नाम पर धोखाधड़ी, साइबर ठग बना रहे युवाओं के बैंक अकाउंट को मनी म्यूल

Ernakulam: साइबर धोखाधड़ी में शामिल लोग अब ऑनलाइन नौकरी की तलाश कर रहे युवाओं को निशाना बना रहे हैं, ताकि उनके बैंक अकाउंट पर कब्जा करके उन्हें साइबर अपराध के लिए म्यूल अकाउंट में बदल सकें। ठग पहले युवाओं से संपर्क करते हैं और उन्हें उच्च रिटर्न वाले ऑनलाइन ट्रेडिंग के अवसर प्रदान करते हैं। जब पीड़ित उनकी बातों में आ जाते हैं, तो ठग उनका बैंक अकाउंट लॉगिन डिटेल और फोन नंबर अपने कब्जे में ले लेते हैं।

शहर के एक पुलिस अधिकारी ने कहा, "लोग, खासकर छात्र, जिनके बैंक अकाउंट में बहुत कम लेन-देन होता है, ठगों का मुख्य निशाना होते हैं। ये ठग सोशल मीडिया पर पार्ट-टाइम ऑनलाइन जॉब खोज रहे युवाओं से टकराते हैं और उन्हें जाल में फंसा लेते हैं। अधिकारी ने कहा कि हमने युवाओं में इसके प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए एक अभियान शुरू किया है।"

कमीशन के लिए खुद बैंक खाते की जानकारी साइबर ठगों को सौंपने वालों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई के मद्देनजर यह तरीका आम हो गया है। पिछले एक महीने में जिले में 50 से ज़्यादा लोगों को अपने बैंक अकाउंट साइबर ठगों को देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। असल में, अपने अकाउंट बेचने वालों की वास्तविक संख्या इससे कई गुना ज्यादा होने का शक है।


हालांकि, साइबरस्पेस के जरिए अपना अकाउंट बेचने में 'फंसे' लोगों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि ज्यादातर लोगों से अभी भी आपराधिक नेटवर्क के जरिए संपर्क किया जाता है।

साइबर सुरक्षा फाउंडेशन के सह-संस्थापक और वकील फिरोज देसिकन के अनुसार, लगभग 80% लोग जो "मनी म्यूल" बनते हैं, उनसे ठग किसी ऐसे व्यक्ति के जरिए संपर्क करते हैं, जिसे वे पहले से जानते होते हैं।

देसिकन ने कहा, "हाल ही में हुई एक घटना में, एर्नाकुलम के एक कॉलेज छात्र को बेंगलुरु में उसके एक दोस्त ने पांच बैंक खाते खोलने को कहा और बदले में प्रत्येक खाताधारक को 25,000 रुपये देने को कहा। छात्र को बताया गया कि ये खाते उसके चचेरे भाई के हैं, जिसे विदेश से धन प्राप्त होने वाला था। बेंगलुरु में उसके दोस्त ने फिर ये खाते अपने रिश्तेदार को दे दिए और प्रत्येक खाते से 25,000 रुपये प्राप्त किए। हो सकता है कि रिश्तेदार को अपने संपर्क से, जो ज्यादातर विदेश में रहता है, कहीं ज्यादा बड़ी रकम मिली हो। ये सारे लोग भी नेटवर्क के निचले तबके का ही प्रतिनिधित्व करते हैं।"

एक बार खाता बिक जाने के बाद, कुछ ही घंटों में खाते में लाखों-करोड़ों रुपये आ जाते हैं। एर्नाकुलम रेंज के डीआईजी सतीश बिनो ने कहा, " म्यूल अकाउंट रखने वालों के खिलाफ कार्रवाई के अलावा, हम पैसे के लेन-देन की जांच कर रहे हैं और पीड़ितों का पैसे वापस दिलाने के लिए कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, जागरूकता अभियानों के बावजूद, लोग अभी भी नियमित रूप से साइबर धोखाधड़ी का शिकार हो रहे हैं। ठगों के काम करने के कई तरीके हैं। लोगों को यह समझने की जरूरत है कि आसानी से पैसा नहीं मिलता और ऑनलाइन कोई भी जानकारी साझा करते समय सावधानी बरतें।"

अधिकारियों ने बताया कि कुछ लोगों को यह कहकर उनका अकाउंट खरीदा गया कि इसे बिजनेस में आने वाले पैसों के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। जबकि कुछ लोगों को साफ-साफ बता दिया गया कि यह साइबर ठगी के काम में लगेगा। कई मामलों में, म्यूल अकाउंट वाले लोगों से पैसे निकालकर रैकेट को नकद देने के लिए भी कहा गया, जिससे वे साइबर अपराध में और भी गहराई में फंस गए।

एक सूत्र ने बताया, "जब दूसरे राज्यों की पुलिस इसमें शामिल हो जाती है, तो मामले की गंभीरता और बढ़ जाती है। ऐसे मामलों में रिमांड की संभावना बहुत ज्यादा होती है, और ज्यादातर लोग उत्तर भारतीय राज्यों की जेलों में रिमांड से बचने की पूरी कोशिश करते हैं। इसी डर के कारण अक्सर अदालत के बाहर समझौता हो जाता है, जिसमें अक्सर भारी रिश्वत शामिल होती है।"

देसिकन ने कहा कि ऐसे मामले भी सामने आए हैं जहां बैंक अपराध दर्ज होने से पहले ही खातों को म्यूल अकाउंट मानकर उन पर रोक लगा देते हैं।

उन्होंने कहा, "अगर लोगों को अपनी गलती का जल्द एहसास हो जाता है और वे रोक हटवाना चाहते हैं, तो वे अदालत का रुख कर सकते हैं। अगर ग्राहक बैंक को लेन-देन का स्पष्ट कारण बता सके, तो रोक हटाने का आदेश मिल सकता है।"

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