दिल्ली की हवा क्यों होती है इतनी जहरीली, ठंड में क्यों बढ़ जाता है प्रदूषण? ये है इसका असली कारण

Delhi Air Pollution: आसमान छोटा हो जाता है सर्दियों की समस्या यह नहीं है कि दिल्ली अचानक नवंबर में नया प्रदूषण पैदा करने लगती है। समस्या यह है कि वातावरण एक 'छोटे डिब्बे' जैसा बन जाता है। दिल्ली की हवा सिर्फ दिल्ली की सीमाओं तक सीमित नहीं है। पूरा उत्तर भारत घनी आबादी और इंडस्ट्रियल एरिया है

अपडेटेड Dec 20, 2025 पर 7:05 PM
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दिल्ली की हवा क्यों होती है इतनी जहरीली, ठंड में क्यों बढ़ जाता प्रदूषण? ये है इसका असली कारण

आम तौर पर शहर प्रदूषण फैलाते हैं और वातावरण उसे धीरे-धीरे साफ कर देता है। लेकिन दिल्ली-NCR में सर्दियों के दौरान पर्यावरण यह काम करना बंद कर देता है। यही कारण है कि यहां का प्रदूषण इतना खतरनाक हो जाता है। प्रदूषण रातों-रात नहीं बदलता, लेकिन आसमान बदल जाता है।

आसमान छोटा हो जाता है सर्दियों की समस्या यह नहीं है कि दिल्ली अचानक नवंबर में नया प्रदूषण पैदा करने लगती है। समस्या यह है कि वातावरण एक 'छोटे डिब्बे' जैसा बन जाता है।

इसके दो मुख्य कारण हैं:

तापमान का उलटना: आमतौर पर जमीन के पास की गर्म हवा ऊपर उठती है और अपने साथ प्रदूषण ले जाती है। लेकिन सर्दियों में उल्टा होता है: ठंडी हवा जमीन के पास जम जाती है और ऊपर की गर्म हवा एक 'ढक्कन' की तरह उसे दबा देती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह ढक्कन प्रदूषण को हमारी सांस लेने वाली ऊंचाई पर ही रोक देता है।

कम ऊंचाई: हवा के आपस में मिलने की ऊंचाई सर्दियों में बहुत कम हो जाती है। रात के समय यह 100 मीटर से भी नीचे गिर सकती है। जब हवा के फैलने की जगह कम होगी, तो प्रदूषण की मात्रा बहुत ज्यादा खतरनाक हो जाएगी।


दिल्ली सिर्फ प्रदूषण का स्रोत नहीं, उसका केंद्र भी है

दिल्ली की हवा सिर्फ दिल्ली की सीमाओं तक सीमित नहीं है। पूरा उत्तर भारत घनी आबादी और इंडस्ट्रियल एरिया है। सर्दियों में हवा की रफ्तार धीमी होने के कारण पूरे इलाके का प्रदूषण दिल्ली के आसपास जमा हो जाता है।

पराली का सच: यह जरूरी है, पर पूरी कहानी नहीं

पराली जलाना एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन जाता है, क्योंकि इसे सैटेलाइट से देखा जा सकता है। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि औसतन पराली का योगदान लगभग 22% (कभी-कभी 35% से ज्यादा) रहता है।

आसान शब्दों में कहें तो कुछ दिनों के लिए पराली का धुआं आग में घी का काम करता है। लेकिन बाकी दिनों में दिल्ली अपनी ही गाड़ियों, धूल, फैक्ट्रियों और कूड़े के धुएं में घुटती है। अगर पराली जलना बंद भी हो जाए, तो भी दिल्ली की हवा साल भर के प्रदूषण के कारण खराब ही रहेगी।

मुंबई और दिल्ली में क्या अंतर है?

मुंबई की हवा भी खराब होती है, लेकिन वहां एक ऐसी चीज है, जो दिल्ली के पास नहीं है: समुद्र की हवा। मुंबई में समुद्र की ओर से चलने वाली हवाएं हर रोज प्रदूषण को उड़ा ले जाती हैं और हवा को ताजा कर देती हैं। दिल्ली चारों तरफ से जमीन से घिरी है, इसलिए यहां प्रदूषण 'फंस' जाता है। दिल्ली की हवा ऐसी है, जैसे वातावरण प्रदूषण लेकर बैठ गया हो और उसे जाने ही न दे।

सरकार क्या कर रही है और लोग परेशान क्यों हैं?

सरकार GRAP (Graded Response Action Plan) लागू करती है। जब AQI 450 के पार जाता है, तो निर्माण कार्य रोकना, गाड़ियों पर पाबंदी और वर्क-फ्रॉम-होम जैसे कदम उठाए जाते हैं। जैसे अभी दिसंबर 2025 में प्रदूषण बढ़ने पर कड़े नियम लागू किए गए।

फिर भी समाधान क्यों नहीं निकलता? क्योंकि ये कदम सिर्फ 'इमरजेंसी' के लिए हैं। GRAP एक आग बुझाने वाले यंत्र की तरह है, लेकिन हमें आग न लगे इसके लिए बिल्डिंग कोड (पक्के नियम) चाहिए। निर्माण पर बैन या सड़कों पर पानी छिड़कना थोड़े समय के लिए राहत दे सकता है, लेकिन यह मुख्य समस्याओं को हल नहीं करता जैसे:

  • सड़कों की धूल का सही मैनेजमेंट
  • पुरानी गाड़ियों को हटाना और माल ढोने वाले ट्रकों के लिए बेहतर इंतज़ाम
  • पूरे NCR इलाके में एक जैसी सख्ती

असल समाधान क्या है?

अगर ईमानदारी से कहा जाए तो दिल्ली को सिर्फ सर्दियों के लिए नहीं, बल्कि पूरे साल के लिए ठोस बदलावों की रूरत है। इसका मतलब है:

धूल का इलाज: सड़कों के किनारे पक्के करना और वैक्यूम से सफाई करना।

गाड़ियों पर कंट्रोल: केवल स्टीकर या बैन नहीं, बल्कि बसों और मेट्रो को इतना बेहतर बनाना कि लोग अपनी गाड़ी छोड़ सकें।

दिल्ली की हवा सिर्फ 'प्रदूषित' नहीं होती, बल्कि वह एक 'जेल' में बंद हो जाती है। हम हर साल इसे एक 'मौसम के सरप्राइज' की तरह देखते हैं, जबकि यह एक ऐसी समस्या है, जिसका समाधान साल भर काम करने से ही निकलेगा।

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