क्योंकि सास भी कभी बहू थी 2 ने भारतीय टेलीविजन को एक बार फिर से पारिवारिक राह पर मोड़ दिया है। सभी प्लेटफार्मों पर हुए दर्शकों पर हुए सर्वे के बाद ये सामने आया कि इस सीरियल को 5 करोड़ यूनिक व्यूअर मिले। इनमें 3.5 करोड़ साप्ताहिक और 1.5 करोड़ हर रोज देखने वाले दर्शक शामिल हैं। ओटीटी प्लेटफार्म की बात करें तो जियो-हॉटस्टार पर इस शो को दर्शकों ने हफ्ते भर में औसतन 104 मिनट देखा। इसे सिर्फ स्मृति ईरानी का कमबैक यानि वापसी ही नहीं माना जा रहा है बल्कि ये जता कर रहा है कि हमारी पारिवारिक संस्कृति में दो दशकों पहले एक पीढ़ी ने इस सास बहू सीरियल को पलकों पर बिठाया था और आज की पीढ़ी भी परिवार के साथ इसे देख रही है। यानि भारतीय परंपरा और संस्कृति की धूम पीढ़ी दर पीढ़ी जारी रहेगी।
दो दशकों से ज्यादा के राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन में स्मृति ईरानी ने बतौर केंद्रीय मंत्री अपनी छाप छोड़ी। संसद के पटल से लेकर प्रवक्ता और स्टार प्रचारक के तौर पर पार्टी की एक अनुशासित सिपाही रहीं। 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद स्मृति ईरानी ने ये फैसला कर लिया कि अब उन्हें वापस वहीं जाना है जहां से पूरे देश के साथ उनका एक भावनात्मक जुड़ाव हुआ था। क्योंकि सास भी कभी बहू थी के पहले हिस्से में बहू तुलसी और उसके किरदार हर घर में और हर दिल में ऐसे समा गए परिवार का हर सदस्य खुद को उन किरदारों में ढालने लगा। क्योंकि सास भी कभी बहू थी पार्ट 2 में एक बार फिर स्मृति ईरानी ने जेन जी और पुरानी पीढ़ी को साथ जोड़ कर दिखा दिया है कि ये एक नयी कहानी भी जन जन की कहानी ही है जिसमें मध्य वर्ग के बनते बिगड़ते पलों को साकार रुप दिया गया है।
जो कंस्यूमर गुड्स ब्रांड भारत में गृहिणियों पर आधारित घरेलू अर्थव्यवस्था को अपना बाजार मानते हैं, उनके लिए तो क्योंकि सास भी कभी बहू थी -2 एक खजाना ही है क्योंकि इसमें प्रचार की असीमित संभावनाएं हैं। बहू तुलसी का ऐसा किरदार है जिसे हर परिवार पहचानता है। सीरियल ने साबित कर दिया है कि बतौर मंत्री, विपक्ष की तेज तर्रार नेता रहने के बावजूद स्मृति ईरानी भले ही अब सांसद नहीं हैं लेकिन उनकी जनता के बीच पहुंच और पकड़ बरकरार है। किसी भी नेता के लिए हफ्ते दर हफ्ते लोगों के बीच रहना और भारतीय संस्कृति के हिसाब से खुद को ढालने का संदेश देना जनता से उसका सीधा कनेक्ट ही साबित करता है।
बीते समय में वापस जाकर पन्ने पलटें तो याद ये भी आता है कि बतौर केंद्रीय मंत्री भी वो सब्जी बाजार जाकर मोल भाव करती नजर आ जाती थीं। सीरियल शुरु होने के पहले जब मैं उनसे मिलने उनके घर गया तो वो लगी थीं फोन सब्जी और फलों का ऑर्डर देने में। मैंने कहा आप इतनी बड़ी नेता और मोल भाव में क्यों लगी हैं तो तपाक से जवाब आया कि ईरानी परिवार की रसोई से लेकर बाजार से सामान लाने का जिम्मा भी उन्हीं का होता है। यानि तुलसी स्मृति ईरानी के परदे का किरदार उनके आम जीवन की ही दिनचर्या को दर्शाता है। यही कारण है कि एक सामान्य मध्य वर्ग की महिला खुद को बहू तुलसी से जोड़ती नजर आ रही है।
कहानी पुरानी है, लेकिन उसमें दिखाए और सिखाए जा रहे भारतीय मूल्यों और नई पीढ़ी से टकराव को नजरअंदाज नहीं किया गया है। तभी तो कहा जा रहा है कि स्क्रीन का काम सिर्फ मनोरंजन करना ही नहीं है बल्कि लोगों को सही राह पर चलने के लिए प्रेरित भी करना है। विरोधी लाख सवाल उठाएं लेकिन स्मृति तुलसी ईरानी के छोटे पर्दे पर वापसी ने साबित कर दिया है कि चुनावी राजनीति से भले ही ताकत आती हो लेकिन लोगों से भावनात्मक जुड़ाव लोगों के घरों में सीधे पहुंच कर भी कायम रखा जा सकता है।