Liberian Cargo Ship: केरल के अलाप्पुझा के पास 25 मई को एक लाइबेरियाई कार्गो जहाज MSC ELSA 3 डूब गया। जहाज अलाप्पुझा के थोट्टपल्ली बंदरगाह से 14.6 समुद्री मील दूर पलट गया। जहाज के डूबने से केरल के तट और अरब सागर में भारी मात्रा में डीजल, तेल और कैल्शियम कार्बाइड जैसे रसायन के पानी में फैलने की चिंता बढ़ गई है।
बता दें कि MSC ELSA 3, 184 मीटर लंबा एक कंटेनर जहाज था जिसे 1997 में बनाया गया था। इसे भूमध्यसागरीय शिपिंग कंपनी(MSC) द्वारा संचालित किया जा रहा था। इसमें 24 लोगों का दल था, जिसमें एक रूसी (कप्तान), 20 फिलिपिनो, दो यूक्रेनी और एक जॉर्जियाई शामिल थे।
भारतीय तटरक्षक बल के अनुसार, MSC ELSA 3 नामक यह जहाज रविवार तड़के तेज़ी से डूब गया। दरअसल जहाज के माल रखने का निचला हिस्से में पानी भर गया जिसकी वजह से जहाज डूब गया। लाइबेरियाई कार्गो जहाज में 640 कंटेनर थे जिनमें से 13 में खतरनाक सामग्री थी। जहाज से अरब सागर में भारी मात्रा में डीजल और तेल के साथ-साथ कैल्शियम कार्बाइड जैसे खतरनाक रसायन भी फैल गया। हालांकि इस दुर्घटना में अच्छी बात यह रही कि जहाज पर सवार सभी चालक दल के सदस्यों को सुरक्षित बचा लिया गया।
जहाज पर क्या था जिससे बढ़ गई है चिंता?
तेल रिसाव है कितना खतरनाक?
तेल रिसाव का मतलब है कच्चे तेल, डीजल या ईंधन तेल जैसे पेट्रोलियम उत्पादों का पर्यावरण में, खासकर समुद्र, नदियों या तटीय क्षेत्रों जैसे जल निकायों में गलती से फैल जाना। जहाज दुर्घटनाएं, ऑफशोर ड्रिलिंग, पाइपलाइन का रिसाव या जहाजों से अवैध रूप से कचरा फेंकना, तेल रिसाव के मुख्य कारण होते हैं। जब तेल का पानी रिसाव होता है, तो यह तेजी से फैल जाता है। कम घनत्व के कारण, यह पानी के ऊपर एक परत बना लेता है, जिससे पानी के अंदर सूरज की रोशनी पहुंच नहीं पाती है। सूर्य के प्रकाश की अनुपस्थिति में समुद्री पौधों में प्रकाश संश्लेषण बाधित होता है जिससे उनके अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगता है।
क्या हो सकता है पर्यावरण पर प्रभाव?
पारिस्थितिकीय नुकसान: तेल समुद्री जीवन के लिए भोजन के स्रोतों को भी प्रभावित कर सकता है, जिससे उनकी कम उपलब्ध या क्वालिटी खराब हो सकती है। तेल रिसाव का मछली और समुद्री जीवों पर बहुत बुरा असर पड़ता है। तेल उनके बॉडी पर लिपट जाता है जिससे उनकी सांस लेने, हिलने-डुलने और शरीर का तापमान नियंत्रित करने में दिक्कत आती है जिससे जानवर दम घुटने से मर सकते है। अगर इसे निगल लिया जाए तो यह जहरीला होता है, जिससे अंगों और प्रजनन को नुकसान होता है।
पारिस्थितिक तंत्र: केरल के जैव विविधता से भरपूर तटों जैसे मूंगा चट्टानें, मैंग्रोव और तटीय आवासों को लंबे समय तक नुकसान हो सकता है। तेल पौधों को गला देता है और खाद्य श्रृंखला को बाधित करता है। तेल प्रजनन को प्रभावित करता है, जैसे कि तट पर पक्षियों या कछुओं के घोंसलों को प्रभावित करता है जैसे उनके बच्चों की दम घुटने से मौत हो सकती है।
तेल के अवशेष लंबे समय तक पानी के सतह पर बने रहते हैं, जिससे पानी की गुणवत्ता और जलीय पारिस्थितिक तंत्र लंबे समय तक प्रभावित होते है।
तेल रिसाव से मछलियां प्रभावित होती है जिससे मछुआरों की आजीविका पर संकट होता है। इससे केरल के मछली पकड़ने वाले समुदायों को बड़ा आर्थिक नुकसान हो सकता है। पर्यटकों की बात करें तो तेल से सने समुद्र तट पर कोई भी पर्यटक घूमना नहीं चाहेगा क्योंकि उससे उन्हें बीमारियों का खतरा होता है। तेल वाष्पों या दूषित समुद्री भोजन के संपर्क में आने से श्वसन संबंधी समस्याएं और त्वचा में जलन जैसे जोखिम होते है।
भारतीय तटरक्षक बल द्वारा डिस्पर्सेंट और बूम का उपयोग करके इसकी सफाई करने का प्रयास कर रहे है। हालांकि ये खर्चीला और समय लेने वाली प्रक्रिया होती है। कुल मिलाकर इसके गंभीर पर्यावरणीय परिणाम हो सकते है। इसीलिए इसे रोकने के लिए तत्काल और प्रभावी उपायों करने की आवश्यकता है।