पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। TMC से निलंबित और जनता उन्नयन पार्टी (JUP) के सूत्रधार हुमायूं कबीर की नई पार्टी में टिकट को लेकर बड़ा विवाद सामने आया है। उन्होंने जिस उम्मीदवार को मंच से टिकट दिया, उसका टिकट महज़ 24 घंटे के भीतर वापस ले लिया गया। यह उम्मीदवार थीं सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर निशा चटर्जी।
दरअसल, सोमवार को मुर्शिदाबाद में कबीर अपनी JUP पार्टी का ऐलान करते समय निशा चटर्जी को बल्लीगंज विधानसभा सीट से उम्मीदवार घोषित किया था। मंच पर खड़े होकर उन्होंने निशा के नाम की औपचारिक घोषणा भी की। लेकिन अगले ही दिन हुमायूं कबीर ने अपना फैसला बदलते हुए उनका टिकट वापस ले लिया। इस फैसले के बाद राजनीतिक हलकों में सवाल उठने लगे हैं।
निशा चटर्जी ने टिकट वापस लिए जाने के बाद खुलकर अपनी नाराज़गी जाहिर की है। उन्होंने दावा किया कि उनका नाम इसलिए हटाया गया क्योंकि वह हिंदू ब्राह्मण समुदाय से आती हैं। निशा ने कहा, "अगर मेरे बारे में कोई आपत्ति थी तो मुझे मंच पर क्यों बुलाया गया? अगर जांच-पड़ताल नहीं की गई थी, तो टिकट क्यों दिया गया?" उन्होंने आरोप लगाया कि हुमायूं कबीर के फैसले ने उनके करियर को नुकसान पहुंचाया है।
वहीं दूसरी ओर, हुमायूं कबीर ने टिकट वापस लेने को सही ठहराया है। उन्होंने कहा कि उन्हें बाद में निशा चटर्जी की कुछ निजी गतिविधियों और सोशल मीडिया तस्वीरों के बारे में जानकारी मिली, जिनसे पार्टी की छवि पर सवाल उठ सकते थे। हुमायूं ने कहा, "मुझे यह जानकारी थी कि वह एक सेलिब्रिटी हैं। हाल ही में बार में ड्रिंक करते हुए उनकी एक तस्वीर सामने आई, जिसके बाद उनके निजी जीवन और गतिविधियों को लेकर सवाल उठने लगे हैं। जब जानकारी सामने आई तो मैंने 24 घंटे के भीतर फैसला बदल दिया।"
हालांकि निशा चटर्जी ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है। उन्होंने कहा कि उनके निजी जीवन पर सवाल उठाना गलत है । निशा ने यह भी कहा कि फिलहाल उनका किसी दूसरी पार्टी में जाने का कोई इरादा नहीं है, लेकिन भविष्य में राजनीतिक विकल्प खुले रखे जाएंगे।
बता दे कि हुमायूं कबीर हाल के महीनों में लगातार सुर्खियों में रहे हैं, चाहे बाबरी मस्जिद निर्माण का मुद्दा हो या नई पार्टी का गठन। उन्होंने पहले ही ऐलान किया है कि उनकी पार्टी कई विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी और वे खुद दो सीटों से चुनाव लड़ेंगे।
आगामी 2026 विधानसभा चुनाव से पहले यह विवाद हुमायूं कबीर की नई पार्टी की रणनीति और विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर रहा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ऐसे फैसले नई पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकते हैं, खासकर तब जब बंगाल की राजनीति पहले से ही बेहद संवेदनशील दौर से गुजर रही है।