भारत सरकार ने पहलगाम आतंकी हमले के पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाए हैं। पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) की बैठक में पांच बड़े फैसले लिए गए। इसमें सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित करने का फैसला भी शामिल है। भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि जब तक पाकिस्तान सीमापार आतंकवाद को समर्थन देना पूरी तरह खत्म नहीं करता, तब तक यह संधि स्थगित रहेगी।
सिंधु नदी पाकिस्तान की कृषि के लिए जीवनरेखा है। खासकर पंजाब और सिंध क्षेत्रों के लिए, जहां देश की अधिकांश खेती होती है।
1960 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने ऐतिहासिक सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किया था। इस संधि के तहत भारत को पूर्व की तीन नदियों- रावी, व्यास और सतलुज के पानी का पूरा इस्तेमाल अधिकार मिला। वहीं, पाकिस्तान को पश्चिम की तीन नदियों- सिंधु, झेलम और चेनाब का पानी मिलता है।
भारत को पश्चिमी नदियों पर कुछ सीमित जलविद्युत परियोजनाएं विकसित करने की अनुमति है, लेकिन यह शर्त रखी गई है कि इससे पानी के प्राकृतिक प्रवाह में कोई स्थायी परिवर्तन न हो। इसी शर्त को लेकर विवाद होता है।
जम्मू-कश्मीर में परियोजनाओं को लेकर विवाद
जम्मू-कश्मीर में भारत की दो प्रमुख परियोजनाएं- चेनाब नदी पर बगलिहार हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट और झेलम पर किशनगंगा परियोजना- संधि को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद का केंद्र बनी हुई हैं। पाकिस्तान का आरोप है कि ये प्रोजेक्ट पश्चिमी नदियों पर उसके हिस्से के पानी की आपूर्ति को प्रभावित कर सकते हैं। हालांकि, भारत उसके आरोपों को यह कहते हुए खारिज करता है कि ये परियोजनाएं संधि की शर्तों का पूरी तरह पालन करती हैं।
संधि के तहत विवाद निपटारे की प्रक्रिया
सिंधु जल संधि में विवाद निपटाने के लिए दो तरह की व्यवस्था निर्धारित है। सबसे पहले दोनों देशों के जल आयुक्त आपसी बातचीत के जरिए मुद्दा सुलझाने की कोशिश करते हैं। अगर इससे विवाद नहीं सुलझता तो मामला एक तटस्थ विशेषज्ञ के पास भेजा जा सकता है, जिसे विश्व बैंक नियुक्त करता है।
क्या सिंधु जल संधि को खत्म करना मुश्किल है?
1960 में हुई सिंधु जल संधि भारत, पाकिस्तान और विश्व बैंक की मध्यस्थता में बनी थी। इसके अनुच्छेद XII (3) के मुताबिक, सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए बाध्यकारी रहेगी, चाहे कोई भी राजनीतिक परिवर्तन क्यों न हो। इस संधि के प्रावधान तब तक प्रभावी रहेंगे जब तक कि दोनों सरकारें आपसी सहमति से इसे समाप्त न कर दें।