जस्टिस यशवंत वर्मा ने शनिवार 5 अप्रैल को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज के रूप में शपथ ग्रहण ली। हालांकि नोट बरामदगी मामले में घिरे होने के कारण उन्हें जांच पूरी होने तक कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा जाएगा। यह कदम सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर उठाया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया था कि जब तक नोट बरामदगी मामले की जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक जस्टिस वर्मा को कोई भी न्यायिक जिम्मेदारी न दी जाए। जस्टिस यशवंत वर्मा को नोट बरामदगी मामले में घिरने के बाद दिल्ली हाई कोर्ट से ट्रांसफर करके भेजा गया है।
जस्टिस वर्मा तब सुर्खियों में आए, जब दिल्ली स्थित उनके सरकारी आवास में आग लगने की घटना के बाद वहां से जली हुई नकदी के ढेर के बरामद होने की खबरें सामने आईं। यह घटना 14 मार्च 2025 को हुई और कैश की बरामदगी उनके मुख्य आवास से अलग बने एक कमरे में हुई।
हालांकि जस्टिस वर्मा ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए इसे उनके खिलाफ साजिश करार दिया है। उनके मुताबिक, जिस कमरे में नकदी मिली, वह मुख्य आवास से अलग था और कई लोगों की पहुंच में था। इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक आंतरिक जांच शुरू की, जिसके लिए तीन जजों का एक पैनल गठित किया गया है।
दिल्ली हाई कोर्ट को सौंपे अपने विस्तृत जवाब में जस्टिस वर्मा ने कहा कि 14 मार्च को उनके स्टोर रूम में आग लग गई थी, जिसके बाद घर के सभी सदस्यों को बाहर निकालना पड़ा। आग बुझने के बाद जब वे वापस लौटे तो वहां कोई नकदी नहीं मिली।
उन्होंने कहा, "जब आधी रात के आसपास आग लगी, तो मेरी बेटी और मेरे निजी सचिव ने फायर ब्रिगेड को इसकी सूचना दी, और इसकी रिकॉर्डिंग संबंधित एजेंसियों के पास होनी चाहिए। आग बुझाने की कोशिशों के दौरान, सुरक्षा चिंताओं के कारण मेरे घर के सभी सदस्यों और सभी कर्मचारियों को घटनास्थल से दूर जाने के लिए कहा गया। आग बुझने के बाद जब वे घटनास्थल पर वापस आए, तो वहां पर कोई नकदी नहीं मिली।"
जस्टिस वर्मा के अनुसार, यह कमरा एक प्रकार से खुला क्षेत्र था, जहां सुरक्षा या प्राइवेसी जैसी कोई चीज नहीं थी, और वहां पर कौन क्या रख गया, यह निश्चित कर पाना कठिन है।