इंडिया और पाकिस्तान के बीच टकराव बढ़ गया है। 8 मई को देर शाम पाकिस्तान के हमलों के जवाब में भारत ने इस्लामाबाद, लाहौर और सियालकोट को निशान बनाया। इससे पहले भारत ने कई शहरों पर पाकिस्तान के हमलों को नाकाम कर दिया। पाकिस्तान ने जम्मू, जैसलमेर और पठानकोट सहित कई भारतीय शहरों को एक साथ निशाना बनाने की कोशिश की थी। हमला होते ही जम्मू-कश्मीर, पंजाब, गुजरात और राजस्थान के कई शहर ब्लैकआउफट की वजह से अंधेरे में डूब गए। राजस्थान के सीमावर्ती जिलों में रेड अलर्ट घोषित हो गया। सवाल है कि क्या दोनों देशों के बीच लड़ाई शुरू हो गई है या वे सिर्फ लड़ाई के करीब है?
पहलगाम में आतंकी हमलों के बाद इंडिया का धैर्य टूट गया
इन हमलों और जवाबी हमलों की शुरुआत 7 मई को पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर इंडिया की कार्रवाई के बाद हुई। इंडिया ने करीब 25 मिनट तक चले ऑपरेशन सिंदूर (operation sindoor) में पाकिस्तान के 9 आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूत कर दिया था। भारत ने यह साफ कर दिया था कि 22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकी हमले को अंजाम देने वालों को सबक सिखाने के लिए उसने यह कार्रवाई की गई है। पहलगाम हमले में 26 निर्दोष पर्यटकों की मौत हो गई थी।
युद्ध का मतलब और परिभाषा क्या है?
दो या दो से ज्यादा देशों के बीच हिंसात्मक टकराव को लड़ाई माना जाता है। इस लड़ाई की कई वजहें हो सकती हैं। आम तौर पर कोई देश आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक वजहों से लड़ाई करता है। यहां वॉर (war) और टकराव (Conflict) के बीच के फर्क को समझना जरूरी है। वॉर आम तौर पर व्यापक होता है और लंबे समय तक चलता है। टकराव का मतलब दो देशों के बीच होने वाले छिटपुट झड़प से है। किसी मसले पर मतभेद की वजह से दो देशों में झड़प हो सकती है।
संविधान में युद्ध के बारे में क्या कहा गया है?
भारत के संविधान में 'युद्ध की घोषणा' के बारे में अलग से कोई आर्टिकल नहीं है। सिर्फ 'राष्ट्रीय आपातकाल' का उल्लेख है। युद्ध की स्थिति में सरकार आर्टिकल 352 के तहत नेशनल इमर्जेंसी घोषित करती है। हालांकि, संविधान में यह कहा गया है कि युद्ध घोषित करने का अधिकार राष्ट्रपति को है। लेकिन, राष्ट्रपति ऐसा प्रधानमंत्री की अगुवाई में मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही करता है। डिफेंस फोर्सेज की कमान भी राष्ट्रपति के पास होती है। यह स्पष्ट है कि सिर्फ केंद्रीय कैबिनेट की सलाह पर ही राष्ट्रपति युद्ध की घोषणा करता है।
युद्ध घोषित करने की क्या है प्रक्रिया?
केंद्रीय कैबिनेट को युद्ध घोषित करने की सलाह देने में रक्षा मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बड़ी भूमिका होती है। कैबिनेट अलग-अलग सेनाओं के प्रमुखों से भी इस बारे में सलाह लेती है। वह खुफिया एजेंसियों की राय भी लेती है। फिर, प्रधानमंत्री की अगुवाई में कैबिनेट की बैठक में इस बारे में अंतिम फैसला लिया जाता है। संविधान के 44वें अमेंडमेंट एक्ट, 1978 के मुताबिक, राष्ट्रपति सिर्फ केंद्रीय कैबिनेट की लिखित सिफारिश के बाद युद्ध का ऐलान कर सकता है।
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युद्ध की घोषणा में संसद की भूमिका क्या है?
संविधान के प्रावधानों के मुताबिक, संसद सैन्य कार्रवाई पर चर्चा कर सकती है। वह इसके लिए सरकार को जिम्मेदार ठहरा सकती है। युद्ध लंबा चलने पर सरकार से यह उम्मीद की जाती है कि वह संसद को इसके बारे में व्यापक जानकारी देगी। हालांकि, राष्ट्रपति के युद्ध की घोषणा करने के बाद इस प्रस्ताव को एप्रूवल के लिए लोकसभा और राज्यसभा में पेश किया जाता है। दोनों सदनों से विशेष बहुमत के साथ एक महीने के अंदर पारित नहीं होने पर युद्ध की घोषणा प्रभावी नहीं रह जाती है। संसद से पारित होने के बाद छह महीने तक आपातकाल की स्थिति बनी रहती है।