RBI MPC meet : भारतीय रिजर्व बैंक की मॉनीटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) ब्याज दरों पर करीबी से नजर रखने का निर्णय ले सकती है। कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि ग्रोथ को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच आरबीआई ब्याज दरों में कटौती पर कुछ समय के लिए विराम लगाने का फैसला ले सकता है।
एसबीआई रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि आज से शुरू होने वाली आरबीआई की नीति बैठक में ब्याज दरों में कटौती होने की उम्मीद है। लेकिन इसके लिए सोच-समझकर फैसला लेने की जरूरत होगी। एसबीआई रिसर्च ने आगे कहा कि जून के बाद ब्याज दरों में कटौती की संभावनाएं और भी बढ़ जाएंगी। हालांकि, इस नीति बैठक 25 में भी 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती हो सकती है।
एसबीआई रिसर्च ने एक नोट में कहा है कि अभी दरों में कटौती न करके टाइप II की गलती दोहराने का कोई मतलब नहीं है। वित्त वर्ष 2027 में रिटेल महंगाई 4 फीसदी या उससे कम रहने का अनुमान है। इसके अलावा जीएसटी में कटौती करने से अक्टूबर की रिटेल महंगाई दर 1.1 फीसदी के करीब हो सकती है,जो 2004 के बाद सबसे कम है।
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ऐसे समय में जब ग्लोबल यील्ड में गिरावट आ रही है, आरबीआई समय से कटौती करते हुए एक "दूरदर्शी केंद्रीय बैंक" के रूप में अपनी पहचान मजबूत कर सकता है।
वहीं, दूसरी तरफ आईडीएफसी फर्स्ट बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि आरबीआई इस बार अपनी दरों में कोई बदलाव नहीं करेगा। उसने आगे कहा है कि कटौती की आवश्यकता इस बात पर निर्भर करेगी कि विकास को लेकर कितनी बड़ी दिक्कतें हैं।
इस रिपोर्ट में कहा गया है "वास्तविक दरों के नज़रिए से, कटौती की गुंजाइश है,लेकिन इसकी ज़रूरत ग्रोथ से जुड़े जोखिमों पर निर्भर करेगी। जीएसटी में कटौती से जीडीपी में 0.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती,लेकिन अमेरिका में बढ़ते ट्रेड तनाव से इसमें 1 फीसदी तक की कमी आ सकती है। अगर गिरावट का जोखिम बना रहता है,तो आरबीआई त्योहारी सीज़न के बाद स्थितियों में स्पष्टता आने का इंतज़ार कर सकता है और दिसंबर में कटौती कर सकता है।
मनीकंट्रोल ने 16 सितंबर को ही बताया था कि बैंकरों ने आगामी मॉनीटरी पॉलिसी रिव्यू में ब्याज दरों में कटौती की संभावना से इनकार किया है, लेकिन उन्हें चालू वित्त वर्ष में एक और कटौती की उम्मीद है।
आरबीआई की मॉनीटरी पॉलिसी कमेटी की बैठक 29 सितंबर से 1 अक्टूबर तक होगी।
अगर इस बैठक में दरों में कटौती नहीं होती है तो अगस्त की नीति के बाद यह दूसरा विराम होगा। आरबीआी ने अगस्त में विराम लेने से पहले फरवरी से अब तक रेपो रेट में 100 बेसिस प्वाइंट की कटौती की है।
दरों में तत्काल कटौती के समर्थकों का कहना है कि दरों में कटौती में देरी से "भविष्य में लागत बढ़ सकती है", खासकर जब महंगाई पहले से ही 2.05 फीसदी पर है और जीएसटी कटौती के कारण ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंचने की ओर बढ़ रही है। हालाँकि,कुछ लोग कटौती के लिए दिसंबर तक इंतज़ार करने में ही भलाई समझते हैं। उनका कहना है कि त्योहारी मांग में तेज़ी आने और टैरिफ़ पर स्पष्टता आने से ग्रोथ का सही अंदाजा लगाया जा सकेगा। इसके बाद ही दरों में कटौती का फैसला लेना चाहिए।