सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार दोपहर कहा कि बिहार के मतदाता, जो इस साल के आखिर में होने वाले चुनाव से पहले वोटर लिस्ट से अपने नाम को बाहर रखे जाने को चुनौती दे रहे हैं, वे निवास के प्रमाण के रूप में आधार कार्ड पेश कर सकते हैं। न्यायालय ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह सरकार की ओर से जारी पहचान पत्र को 11 अन्य पहचान पत्रों की लिस्ट में शामिल करे। साथ ही शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग के बिहार में वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) कार्यक्रम में बदलाव करने से इनकार कर दिया और कहा कि भारी प्रतिक्रिया मिलने पर चुनाव आयोग समयसीमा बढ़ाने पर विचार कर सकता है।
बिहार में वोटर लिस्ट के 'विशेष गहन पुनरीक्षण' (SIR) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि नाम फिर से शामिल करने के लिए आवेदन इन 11 में से किसी एक या आधार के साथ पेश किया जा सकता है।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने बिहार के 12 मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों से कहा कि वे अपने बूथ स्तर के एजेंटों को निर्देश दें कि वे अपने-अपने बूथों पर लोगों को फॉर्म जमा करने में मदद करें और 8 सितंबर तक स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करें।
कोर्ट ने बिहार की राजनीतिक पार्टियों पर कड़ा रुख अपनाते हुए सवाल किया कि जब 65 लाख से ज्यादा मतदाताओं के नाम लिस्ट से हटाए गए, तब उन्होंने मदद क्यों नहीं की। कई पार्टियां इस संशोधन का विरोध कर रही थीं और कह रही थीं कि यह प्रक्रिया खास समुदायों को वोट देने से वंचित करने के लिए की गई है, जो परंपरागत रूप से उन्हें वोट देते हैं। लेकिन कोर्ट ने साफ कहा कि अगर यह चिंता सच थी, तो पार्टियों ने समय रहते इन मतदाताओं की मदद क्यों नहीं की।
अदालत ने कहा, "राजनीतिक दल अपना काम नहीं कर रहे हैं।" अदालत ने चुनाव आयोग की इस टिप्पणी को दोहराते हुए कहा कि आपत्तियां व्यक्तिगत राजनेताओं, यानी सांसदों और विधायकों की ओर से दर्ज की गई थीं, न कि राजनीतिक दलों की तरफ से।