सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सरकार को बड़ा झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें राज्य में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से अधिक करने की अनुमति मांगी गई थी। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने स्पष्ट किया कि जाति आधारित आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी ही रहनी चाहिए और इसे पार नहीं किया जा सकता। बता दें तेलंगाना सरकार के इस फैसले को पहले हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया था। इसके खिलाफ मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन शीर्ष अदालत ने भी राहत देने से इनकार कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज
राज्य सरकार ने अपने पक्ष में दलील दी कि स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी को 42 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला एक नीतिगत निर्णय है। राज्य की ओर से सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि विधानसभा में यह प्रस्ताव सभी दलों के समर्थन से पारित हुआ था, ऐसे में बिना किसी विस्तृत सुनवाई के इस पर रोक लगाना उचित नहीं है। हालांकि, अदालत ने सरकार की इन दलीलों को स्वीकार नहीं किया और याचिका खारिज कर दी। हाई कोर्ट ने इसी आधार पर ओबीसी कोटा बढ़ाने के प्रस्ताव को पहले ही रद्द कर दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने भी वही रुख अपनाते हुए इस फैसले पर अंतरिम रोक को बरकरार रखा है।
अदालत ने स्पष्ट किया कि फिलहाल आरक्षण बढ़ाने के आदेश पर लगी रोक अगले निर्देश तक जारी रहेगी। गौरतलब है कि 9 अक्टूबर को हुई पिछली सुनवाई में हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से चार हफ्तों में जवाब दाखिल करने को कहा था।
तेलंगाना की रेवंत रेड्डी सरकार ने हाल ही में ओबीसी समुदाय के लिए आरक्षण बढ़ाकर 50 फीसदी करने का प्रस्ताव विधानसभा में पेश किया था, जिसे सदन से मंजूरी भी मिल गई। लेकिन कांग्रेस सरकार के इस कदम को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की गई, जिसमें आरक्षण सीमा बढ़ाने को असंवैधानिक बताया गया। मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने राज्य सरकार की अर्जी खारिज कर दी और स्पष्ट किया कि जाति आधारित आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकती। बता दें 1992 के इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में जातिगत आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी तय की थी।