यह साल 2013 की बात है जब मॉर्गन स्टैनली के एक प्रमुख फाइनेंशियल एनालिस्ट ने एक विवादित शब्द 'फ्रैजल फाइव' दिया था। इसका मतलब उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों-तुर्की, ब्राजील, इंडिया, दक्षिण अफ्रीका और इंडोनेशिया से था। इन्हें कमजोर देश माना गया था।
यह साल 2013 की बात है जब मॉर्गन स्टैनली के एक प्रमुख फाइनेंशियल एनालिस्ट ने एक विवादित शब्द 'फ्रैजल फाइव' दिया था। इसका मतलब उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों-तुर्की, ब्राजील, इंडिया, दक्षिण अफ्रीका और इंडोनेशिया से था। इन्हें कमजोर देश माना गया था।
फ्रैजल फाइव शब्द इस धारणा पर आधारित था कि करंट अकाउंट डेफिसिट को पूरा करने और महत्वाकांक्षी ग्रोथ प्रोजेक्ट्स के लिए ये देश विदेशी पोर्टफोलियो इनवेस्टमेंट पर काफी ज्यादा निर्भर हैं, जिसमें उतारचढ़ाव होता रहता है। इससे इनके लिए वैश्विक वित्तीय झटकों और कैपिटल आउटफ्लो का खतरा बन रहता है।
सिर्फ 10 साल बाद 2023 तक इंडिया ने अपनी इकोनॉमी में नाटकीय बदलाव किया। यह दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी बन गया। अब इंडिया यूनाइटेड किंग्डम से आगे निकल गया है, जिसका कभी इंडिया पर राज था। इसमें डोमेक्सिटक कंजम्प्शन, बढ़ते डिजिटाइजेशन और PLI जैसी मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने वाली स्कीमों का हाथ है।
आगे हालात में और नाटकीय बदलाव के आसार दिखते हैं। इसके बावजूद 30 जुलाई, 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इंडियन गु्ड्स पर 25 फीसदी का टैरिफ लगाने का ऐलान कर दिया। उन्होंने भारत के बढ़ते प्रभाव को रोकने के मकसद से इसे 'मृत' अर्थव्यवस्था तक कह दिया।
हालांकि, इंडिया का सफर जारी रहेगा। अनुमान बताते हैं कि 2028 तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे अर्थव्यवस्था बन जाएगा। तब अमेरिका में नए राष्ट्रपति के चुनाव के लिए तैयारी चल रही होगी। भारत के बाहर में जो धारणा है और भारत के अंदर की जो ताकत है उसके बीच काफी फर्क है और यह भारत के आर्थिक रूप से प्रगति करने का प्रतीक है।
इसमें संदेह नहीं कि अमेरिका के टैरिफ लगाने के ऐलान से इंडिया के एक्सपोर्ट की प्रतिस्पर्धी क्षमता को लेकर रिस्क बढ़ा है। लेकिन, यह बाहरी दबाव जहां एक तरफ चुनौतीपूर्ण है वही दूसरी तरफ इसने स्ट्रेटेजिक और बड़े रिफॉर्म्स का रास्ता खोला है।
ऐतिहासिक रूप से इंडिया में सबसे बड़े और पॉलिसी में सबसे असरदार आर्थिक रिफॉर्म्स तब हुए है जब स्थिति चुनौतीपूर्ण थी या किसी तरह का बाहरी दबाव था। तब चुनौतियों की वजह से बदलाव के रास्ते खुले। मौजूदा स्थिति पहले के बड़े बदलावों की याद दिलाती है। इस बार भी वैसा ही मौका है।
उथलपुथल के इस मौके का इस्तेमाल आत्म निर्भरता बढ़ाने, डोमेस्टिक इंडस्ट्रीज को मजबूत करने और इकोनॉमी की कुल क्षमता बढ़ाने के लिए किया जा सकता है। यह अफसरशाही और लालाफीताशाही की बाधा को खत्म करने और घरेलू और विदेशी निवेशकों और आंत्रप्रेन्योर्स के लिए इंडिया का अट्रैक्शन बढ़ाने का मौका है। इससे ईज ऑफ डूइंग बिजनेस बढ़ेगा और ज्यादा गतिशील आर्थिक माहौल तैयार होगा।
इनकम टैक्स बिल, 2025 टैक्स के नियमों को आसान बनाने और डायरेक्ट टैक्स का नया स्ट्रक्चर बनाने की दिशा में बड़ा कदम है। इससे सरकार की मंशा का पता चलता है, जो छोटे-बड़े सभी बिजनेसेज पर कंप्लायंस का बोझ घटाने में मददगार होगा। न्याय की गति बढ़ाने की भी जरूरत है। व्यावसायिक मामलों का जल्द निपटारा जरूरी है। लंबित पड़े मामलों के निपटारे से बिजनेस के कुल माहौल में इम्प्रूवमेंट आएगा। इससे निवेशकों का आत्मविश्वास बढ़ेगा।
इंडिया में बेहतर होता इंफ्रास्ट्रक्चर बड़े बदलाव का संकेत बना है। मुंबई में शानदार ट्रांस-हार्बर रोड से लेकर ब्रह्मपुत्र पर धोला-सादिया ब्रिज और पोर्ट और एयरपोर्ट पर लगने वाले कम समय की वजह इंडिया की छवि ऐसे देश की बनी है, जो आज हाईवेज का हॉटस्पॉट बन गया है। ऐसे प्रोजेक्ट्स इकोनॉमी की रफ्तार बढ़ाने, लॉजिस्टिक्स कॉस्ट कम करने और इंडिया की प्रतिस्पर्धी क्षमता बढ़ाने का काम करते हैं।
इंडिया ग्रोथ के बड़े मौकों के रास्ते खोलने जा रहा है। बाहरी झटकों के रिस्क को यह कम करने जा रहा है। घरेलू खपत और ग्रोथ को बढ़ाने वाले ड्राइवर्स टैरिफ जैसे बाहरी दबाव को कम करने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। अगर इंडिया नियमों को आसान बनाकर और रिफॉर्म्स के जरिए इकोनॉमी के नॉन-एक्सपोर्ट सेक्टर्स में 9 फीसदी का ग्रोथ रेट हासिल कर सकता है तो इंटरनेशनल ट्रेड बैरियर्स काफी हद तक घट जाएंगे।
यह जियोपॉलिटिकल और इकोनॉमिक बदलाव इंडिया को न सिर्फ चुनौतियों का सामना करने का सही मौका उपलब्ध कराता है बल्कि यह दुनिया में बड़ी आर्थिक शक्ति के रूप में इसकी स्थिति मजबूत करता है। तब इसके लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक संबंध रिस्क नहीं रह जाएंगे और फोकस भारत की अपनी ताकत पर होगा।
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