Uttarkashi Cloudburst: क्या होता है बादल फटना और पहाड़ी इलाकों में ही क्यों फटते हैं सबसे ज्यादा बादल? जानें हर सवाल का जवाब
Uttarkashi Flash Flood: तस्वीरों में देखा जा सकता है कि पहाड़ी से नीचे की ओर तेजी से सैलाब आता है और इमारतों को तहस-नहस कर देता है। जबकि आसपास खड़े लोग निवासियों को बाहर निकलने के लिए चिल्ला रहे थे। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि सरकार ने बचाव कार्यों के लिए इमरजेंसी रेस्क्यू टीमें तैनात कर दी हैं। खोज और बचाव कामों में मदद के लिए सेना भी इलाके में पहुंच गई है
Uttarkashi Cloudburst: क्या होता है बादल फटना और पहाड़ी इलाकों में ही क्यों फटते हैं सबसे ज्यादा बादल?
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में हरसिल के पास धराली गांव में मंगलवार को बादल फटने से अचानक बाढ़ आ गई, जिसमें कई घर बह गए और कई लोगों के लापता होने की आशंका है। फिलहाल इस हादसे में 4 लोगों की मौत की खबर है और कई होटल बह गए हैं। खीर गंगा नदी के बढ़ते पानी ने घरों को अपनी चपेट में ले लिया और भीषण तबाही मचाई। तस्वीरों में देखा जा सकता है कि पहाड़ी से नीचे की ओर तेजी से सैलाब आता है और इमारतों को तहस-नहस कर देता है। जबकि आसपास खड़े लोग निवासियों को बाहर निकलने के लिए चिल्ला रहे थे।
भूस्खलन दोपहर करीब 1:45 बजे धराली गांव के पास हुआ, जो हर्षिल में भारतीय सेना कैंप से मात्र 4 Km दूर है। धराली गंगोत्री जाने वाले रास्ते में एक मुख्य पड़ाव है और यहां कई होटल, रेस्टोरेंट और होमस्टे हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि खीर गंगा नदी के जलग्रहण क्षेत्र यान कैचमेंट एरिया में बादल फटने से ये विनाशकारी बाढ़ आई।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि सरकार ने बचाव कार्यों के लिए इमरजेंसी रेस्क्यू टीमें तैनात कर दी हैं। खोज और बचाव कामों में मदद के लिए सेना भी इलाके में पहुंच गई है।
ये तबाही कितनी बड़ी है, इसका पता तो रेस्क्यू और सर्च ऑपरेशन पूरा होने के बाद ही चलेगा, लेकिन इससे पहले कुछ एक सवालों के जवाब जानने भी बेहद जरूरी है, तो चालिए आज इस वीडियो में ऐसे ही सवालों का जवाब जानने की कोशिश करते हैं।
क्या होता है बादल फटना?
बादल फटना या क्लाउडबर्स्ट उसे कहते हैं, जब बहुत तेज बारिश होती है और थोड़े समय में बहुत ज्यादा पानी गिराती है, ऐसा अक्सर किसी एक छोटे इलाके में होता है। यह ज्यादातर पहाड़ी इलाकों में होती है और इसके कारण अचानक बाढ़ और भूस्खलन हो सकते हैं।
जैसा कि इसे बादल फटना कहा जाता है, लेकिन असल में इस घटना का सीधा मतलब बादल फटने से नहीं होता है, बल्कि इससे बहुत तेज बारिश होती है, जो कुमुलोनिम्बस (cumulonimbus) बादलों से होती है। कभी-कभी इसके साथ गरज या ओले भी गिर सकते हैं।
ये बड़े, घने और ऊंचे बादल होते हैं, जो गरज-चमक और भारी बारिश लाते हैं। ये बादल अक्सर तुफानी और भयंकर मौसम की शुरुआत करते हैं, जैसे कि तेज हवा, ओला गिरना, और कभी-कभी बादल फटना (क्लाउडबर्स्ट) भी इन्हीं के कारण होता है।
वैज्ञानिक तौर पर ऐसा बताया जाता है कि बादल फटने में एक घंटे के भीतर 100 mm (4 इंच) या उससे ज्यादा बारिश होती है। यह लगभग उतनी ही बारिश है, जितनी कुछ शहरों में एक महीने में होती है और वो भी 60 मिनट से भी कम समय में।
बादल कैसे फटता है?
बादल फटना तब होता है जब गर्म, नम हवा तेजी से पहाड़ों से ऊपर उठती है, ठंडी होकर भारी बारिश में बदल जाती है। इस प्रक्रिया को ऑरोग्राफिक लिफ्ट कहा जाता है, जिसके कारण हवा कम समय में भारी मात्रा में बारिश का पानी छोड़ती है।
इसके दूसरे फैक्टर जैसे गर्म और ठंडी हवा का अचानक मिक्स होना, तेज हवा का ऊपर की ओर बहना और ऊंचाई पर हवा में ज्यादा नमी भी बादल फटने का कारण बन सकती है।
पहाड़ों में ही क्यों सबसे ज्यादा बदल फटते हैं?
पहाड़ों में बादल फटने या क्लाउडबर्स्ट होने के कई वैज्ञानिक कारण होते हैं। सबसे पहले, जब गर्म और नमी वाली हवा पहाड़ी इलाकों की तरफ बढ़ती है, तो ये हवा ऊपर उठती है और ठंडी हवा से मिलती है। इससे हवा में मौजूद नमी पानी की बूंदों में बदल जाती है और बड़े बादल बन जाते हैं, जिन्हें क्यूमुलोनिम्बस बादल कहते हैं।
पहाड़ों की ऊंचाई की वजह से ये बादल ऊपर की ओर उठते हुए रुक जाते हैं और एक जगह इकट्ठे हो जाते हैं। इससे बादलों में पानी का भार बढ़ जाता है। जब ये भारी बादल अपने भारी पानी को एक साथ एक छोटे इलाके में गिराते हैं, तो तेज बारिश होती है, जिसे बादल फटना या क्लाउडबर्स्ट कहते हैं। इस बारिश की वजह से अचानक बाढ़ आ जाती है और पहाड़ियों में भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
इसके अलावा, पहाड़ी इलाकों में जलचक्र और हवाओं के चलते भी बादल फटने की घटनाएं ज्यादा होती हैं, खासकर मानसून के दौरान जब गर्म हवाएं ठंडी हवाओं से मिलती हैं। इसलिए पहाड़ों में क्लाउडबर्स्ट ज्यादा होते हैं और ये वहां ज्यादा तबाही मचा सकते हैं।
बादल फटने का असर और जोखिम
अचानक बाढ़ आना, मलबा बहना और भूस्खलन होना
घरों, सड़कों और बुनियादी ढांचों को भारी नुकसान
इससे जान-माल का भारी नुकसान होता है। असी गंगा (2012) में कम से कम 35 लोग, रुद्रप्रयाग (2012) में 69 और 2013 केदारनाथ आपदा में 4,000 से ज्यादा लोग मारे गए थे।
प्रभावित इलाकों में बिजली, पानी की सप्लाई और कम्युनिकेशन नेटवर्क बाधित हो जाता है
हजारों निवासी विस्थापित होते हैं, जिससे लंब समय की आजीविका और आर्थिक नुकसान होता है