Vice President Election: देश के अगले उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए आज, 9 सितंबर मतदान हो रहा है। सत्तारूढ़ NDA ने महाराष्ट्र के राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन को मैदान में उतारा है, जबकि विपक्ष की तरफ से के बी सुदर्शन रेड्डी मैदान में हैं। यह चुनाव पूरी तरह से संविधान में तय की गई प्रक्रिया के तहत होता है, जिसकी जानकारी हर नागरिक को होनी चाहिए। आइए आपको बताते हैं उपराष्ट्रपति चुनाव की क्या होती है पूरी प्रक्रिया।
उपराष्ट्रपति का पद और संवैधानिक भूमिका
भारत के संविधान का अनुच्छेद 63 कहता है कि भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा। अनुच्छेद 64 के अनुसार, उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। इसके अलावा, राष्ट्रपति के पद खाली होने (मृत्यु या इस्तीफे के कारण) या उनके बीमार होने पर, उपराष्ट्रपति ही राष्ट्रपति के तौर पर कार्यभार संभालते हैं। इस दौरान उन्हें राष्ट्रपति की शक्तियां और सभी विशेषाधिकार मिलते हैं। उपराष्ट्रपति का पद भारत का दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद है।
कैसे होता है उपराष्ट्रपति का चुनाव?
अनुच्छेद 66 के तहत, उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों से मिलकर बने एक 'इलेक्टोरल कॉलेज' द्वारा होता है। इस चुनाव में विधानसभाओं या विधान परिषदों के सदस्य शामिल नहीं होते हैं।
मतदान की प्रणाली: मतदान 'आनुपातिक प्रतिनिधित्व' (Proportional Representation) की प्रणाली के जरिए 'एकल संक्रमणीय वोट' (Single Transferable Vote) से होता है।
गुप्त मतदान: वोटिंग गुप्त मतदान के रूप में होती है, जिसमें मतदाता अपनी पसंद के उम्मीदवारों को क्रम (जैसे- 1, 2, 3) में वरीयता देते हैं। पहली वरीयता देना अनिवार्य होता है, जबकि बाकी वरीयताएं देना मतदाता की इच्छा पर निर्भर करता है।
इलेक्टोरल कॉलेज: वर्तमान में इसमें 782 सदस्य हैं। 542 लोकसभा और 240 राज्यसभा में। जीत के लिए उम्मीदवार को 50% से ज्यादा वोट हासिल करने होते हैं। यानी इस बार के चुनाव में जीतने के लिए 391 से ज्यादा वोट हासिल करने होंगे।
उम्मीदवारों के लिए योग्यताएं और कार्यकाल
उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पांच साल का होता है। वे राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा देकर पद छोड़ सकते हैं, या फिर उन्हें राज्यसभा के सदस्यों के बहुमत से पारित प्रस्ताव और लोकसभा की सहमति से हटाया भी जा सकता है।
अगर चुनाव में विवाद हो जाए तो क्या होता है?
संविधान का अनुच्छेद 71 कहता है कि अगर उपराष्ट्रपति चुनाव में कोई भी विवाद या शंका होती है, तो उसे सिर्फ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही अंतिम माना जाता है। हालांकि, अगर सुप्रीम कोर्ट चुनाव को अमान्य घोषित कर भी दे, तो भी उसके फैसले से पहले उपराष्ट्रपति द्वारा किए गए काम अमान्य नहीं होंगे।