Notorious Maoist Madvi Hidma: छत्तीसगढ़ में पिछले दो दशकों में हुए बड़े नक्सली हमलों का मास्टरमाइंड और प्रतिबंधित माओवादी संगठन का सबसे खूंखार कमांडर माडवी हिडमा मंगलवार को पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में एक मुठभेड़ में मारा गया। पुलिस अधिकारियों ने बताया कि ऐसे समय में हिडमा का मारा जाना माओवादी आंतक के 'ताबूत में आखिरी कील' के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि बस्तर क्षेत्र में माओवादी गतिविधियां कम होने लगी हैं।
बस्तर के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि हिडमा और उसकी पत्नी राजे मंगलवार सुबह पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीतारामराजू जिले के मरेदुमिल्ली के जंगल में आंध्र प्रदेश के सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए छह नक्सलियों में शामिल हैं।
छत्तीसगढ़ के उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा ने रायपुर में पत्रकारों को बताया, "हमें जानकारी मिली है कि आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ सीमा पर मारे गए माओवादी कार्यकर्ताओं में माओवादी नेता माडवी हिड़मा भी शामिल है। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटनाक्रम है।" शर्मा राज्य का गृह विभाग भी संभालते हैं।
सुकमा जिले के पूवर्ती गांव के मूल निवासी माडवी हिडमा की उम्र और रूप-रंग सुरक्षा एजेंसियों के बीच लंबे समय तक अटकलों का विषय रहे हैं। यह सिलसिला इस वर्ष की शुरुआत में उसकी तस्वीर सामने आने तक जारी रहा। हिड़मा ने कई वर्षों तक माओवादियों की पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) बटालियन नंबर एक का नेतृत्व किया। यह बटालियन दंडकारण्य में माओवादी संगठन का सबसे मजबूत सैन्य दस्ता है।
दंडकारण्य छत्तीसगढ़ के बस्तर के अलावा आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, तेलंगाना और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में फैला हुआ है। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, हिड़मा को पिछले वर्ष माओवादियों की केंद्रीय समिति में प्रमोट किया गया था। वह दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी (डीकेएसजेडसी) का भी सदस्य रहा है, जिसने दक्षिण बस्तर में कई घातक हमलों को अंजाम दिया है।
हिडमा के संबंध में मिली जानकारी के अनुसार, वह 1990 के दशक के अंत में एक जमीनी स्तर के कार्यकर्ता के रूप में प्रतिबंधित संगठन में शामिल हुआ। फिर 2010 में हुए ताड़मेटला हमले के बाद पहली बार सुरक्षा एजेंसियों की नजर में आया। इस हमले में 76 जवान मारे गए थे। उसने तब हमले को अंजाम देने में एक अन्य शीर्ष माओवादी कमांडर पापा राव की सहायता की थी।
तब से बस्तर में सुरक्षाबलों पर हुए हर बड़े हमले के बाद हिड़मा का नाम बार-बार सामने आया। गुरिल्ला युद्ध में ट्रेनिंग, हिडमा एके-47 राइफल रखने के लिए जाना जाता था। उसकी टुकड़ी में कई सौ जवान आधुनिक हथियारों से लैस थे। जंगलों के अंदर उसके चार-स्तरीय सुरक्षा घेरे के कारण कथित तौर पर वह वर्षों तक सुरक्षाबलों की पहुंच से दूर रहा।
पुलिस के मुताबिक, पिछले दो वर्षों में तेज हुए नक्सल-विरोधी अभियानों ने उसके सुरक्षा घेरे को कमजोर कर दिया। इससे उसे छत्तीसगढ़-तेलंगाना और छत्तीसगढ़-आंध्र प्रदेश सीमा पर स्थित जंगलों में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षाबलों द्वारा निरंतर चलाए जा रहे अभियानों ने हिड़मा सहित वरिष्ठ नेताओं पर काफ़ी दबाव डाला था।
बड़े नक्सली हमलों में शामिल था हिडमा
माडवी हिडमा जिन बड़े नक्सली हमलों में शामिल था, उनमें 2013 में बस्तर के दरभा क्षेत्र का झीरम घाटी हमला भी शामिल है। इस हमले में महेंद्र कर्मा, नंद कुमार पटेल और विद्याचरण शुक्ल जैसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मारे गए थे। वह 2017 में बुरकापाल में हुए हमले का भी आरोपी है, जिसमें सीआरपीएफ के 24 जवान शहीद हो गए थे।
पुलिस के मुताबिक उनकी पत्नी राजे भी उसी बटालियन में सक्रिय थी और कथित तौर पर लगभग हर बड़े माओवादी हमले में शामिल थी। आंध्र प्रदेश में हुई इस मुठभेड़ के साथ ही छत्तीसगढ़, झारखंड और आंध्र प्रदेश में अलग-अलग मुठभेड़ों में माओवादियों की केंद्रीय समिति के नौ सदस्य मारे गए हैं।
प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के महासचिव और शीर्ष कार्यकर्ता नंबला केशव राव उर्फ बसवराजू (70) और केंद्रीय समिति के पांच सदस्य छत्तीसगढ़ में अलग-अलग मुठभेड़ों में मारे गए। पुलिस अधिकारियों ने बताया कि झारखंड में दो केंद्रीय समिति सदस्य मारे गए, जबकि इस साल आंध्र प्रदेश में भी कई अन्य नक्सली मारे गए।