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Assembly Elections 2023: राजनीतिक दलों के लिए क्यों अहम है महिला ट्रांसफर स्कीम?

भारत और अन्य देशों में कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के अमल में आने के साथ उन योजनाओं पर फोकस बढ़ा है, जहां महिलाएं केंद्र में हों। महिलाएं बड़े पैमाने पर कल्याणकारी योजनाओं की लाभार्थी रही हैं, क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति आम तौर पर पुरुषों के मुकाबले कमजोर होती है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, 'महिलाएं दुनिया की गरीब आबादी हैं'

अपडेटेड Nov 09, 2023 पर 7:15 PM
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महिलाएं बड़े पैमाने पर कल्याणकारी योजनाओं की लाभार्थी रही हैं, क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति आम तौर पर पुरुषों के मुकाबले कमजोर होती है।

भारत और अन्य देशों में कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के अमल में आने के साथ उन योजनाओं पर फोकस बढ़ा है, जहां महिलाएं केंद्र में हों। महिलाएं बड़े पैमाने पर कल्याणकारी योजनाओं की लाभार्थी रही हैं, क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति आम तौर पर पुरुषों के मुकाबले कमजोर होती है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, 'महिलाएं दुनिया की गरीब आबादी हैं।'

कोरोना ने महिलाओं को और गरीब बना दिया है। ऐसे में इस बात को समझा जा सकता है कि मौजूदा विधानसभा चुनावों में महिलाओं को कैश ट्रांसफर का ट्रेंड क्यों उभरकर सामने आया है। मध्य प्रदेश और कर्नाटक में ऐसा देखने को मिला, जबकि राजस्थान में चुनावी ऑफर के तहत इसका वादा किया गया है, ताकि राजनीतिक पार्टियां महिलाओं को अपनी तरफ आकर्षित कर सकें।

पित्तृसत्तात्मक व्यवस्था में लाभार्थी के तौर पर महिलाएं


मध्य प्रदेश में इस साल 'लाडली बहना योजना' की शुरुआत की गई है, जिसके तहत 2.5 लाख रुपये सालाना से कम आय वाली महिलाओं को 1,250 रुपये प्रति महीना कैश ट्रांसफर किया जाता है। कर्नाटक में 'गृह लक्ष्मी स्कीम' के तहत परिवारों की महिला प्रमुख को 2,000 रुपये प्रति महीना दिया जाता है और राज्य के चुनाव नतीजों में इसकी अहम भूमिका हो सकती है। राजस्थान की मौजूदा सरकार ने ऐलान किया है कि दोबारा सत्ता में आने पर वह परिवार की महिला प्रमुख को 10,000 रुपये सालाना देगी। तमिलनाडु में भी हाल में एक स्कीम लॉन्च की गई है, जिसके तहत 21 साल से ऊपर की उन सभी महिलाओं को 1,000 रुपये प्रति महीना दिया जा रहा है, जिनकी इनकम 2.5 लाख रुपये सालाना से कम है।

'लाडली बहना' और 'गृह लक्ष्मी' जैसे नाम जानबूझकर रखे गए और ये पितृसत्तात्मक कल्याणकारी राज्य का संकेत देते हैं, जहां महिलाओं को 'लाभार्थी' समझा जाता है। इस बात में कोई शक नहीं है कि भारत में महिलाओं के पास रोजगार के अवसर नहीं हैं।

कोविड के बाद कैश ट्रांसफर का एक्सपैंशन

कोरोना की शुरुआत के बाद अप्रैल से जून 2020 के दौरान केंद्र सरकार ने देश में 20.6 करोड़ महिला लाभार्थियों को 500 रुपये प्रति महीना कैश ट्रांसफर किया। इसके जरिये सरकार ने यह दिखाने का प्रयास किया कि वह आर्थिक संकट की स्थिति में घरेलू स्तर पर मदद मुहैया करा सकती है और महिला नागरिकों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में शामिल कर सकती है।

केंद्र सरकार के अनुभव से सबक लेते हुए असम ने भी 2020 में महिलाओं के लिए कैश ट्रांसफर स्कीम की शुरुआत की थी, जिसके तहत महिला लाभार्थियों को दवा, दाल, फल और सब्जी जैसे जरूरी आइटम खरीदने के लिए 1,250 रुपये प्रति महीने दिए जाते हैं। पश्चिम बंगाल की लक्ष्मी भंडार स्कीम के तहत सामान्य वर्ग की महिलाओं को 500 रुपये महीना, जबकि अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं को 1,000 रुपये प्रति महीना भत्ता दिया जाता है। राज्य में यह स्कीम 2021 में शुरू हुई थी और जानकारों के मुताबिक इसका लाभ राजनीतिक स्तर पर भी मिला है।

महिला वोटरों का बढ़ती ताकत

भारत में ये सभी ट्रेंड इस अहम तथ्य की तरफ इशारा करते हैं कि महिलाएं एक समूह के तौर पर अहम वोट बैंक बन चुकी हैं। भारत के दो-तिहाई विधानसभा चुनावों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से ज्यादा रहा है। भारत में ज्यादा से ज्यादा महिलाएं शिक्षित और सामाजिक रूप से सशक्त हो रही हैं। आंकड़ों की पड़ताल से पता चलता है कि आने चुनावों में महिलाओं वोटरों की ताकत बढ़ेगी। मध्य प्रदेश में 1962 में महिलाओं की वोटिंग 29.1 पर्सेंट थी, जो 2018 में बढ़कर 74.1 पर्सेंट हो गई थी। राजस्थान के कुल 5.26 करोड़ वोटरों में 2.51 करोड़ वोटर महिलाएं हैं।

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