BJP ने फिर से दिखाई ताकत, ब्रांड मोदी की चमक बढ़ी, ये हैं हरियाणा-जम्मू कश्मीर चुनावों के 5 सबसे बड़े संदेश
हरियाणा में विधानसभा चुनावों के नतीजों ने चौंकाया है। लोकसभा चुनावों में कम सीटें हासिल करने बाद BJP एक बार फिर से ताकत दिखाने में सफल रही है। एक बार फिर ब्रांड मोदी की ताकत दिखी है। जम्मू-कश्मीर में भी बीजेपी सबसे बड़ी राष्ट्रीय दल के रूप में सामने आई है। उसका वोट शेयर सबसे ज्यादा है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरियाणा में 27 रैलियां की थी। इसके उलट कांग्रेस को उन ज्यादातर सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है, जहां राहुल गांधी ने रैलियां की थीं।
लोकसभा चुनावों में बीजेपी की कम सीटों को कुछ लोगों ने नरेंद्र मोदी के प्रभाव में कमी का संकेत माना था। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के नतीजों से जाहिर है कि तब कुछ एक्सपर्ट्स ने अनुमान लगाने में जल्दबाजी कर दी थी। हरियाणा में लगातार तीसरी बार जीत और जम्मू-कश्मीर में सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के रूप में बीजेपी का उभरना राजनीति के लिए बड़े मायने रखता है। इससे राष्ट्रीय राजनीति में आने वाले बदलाव की निम्नलिखित पांच वजहें हैं:
1. हरियाणा के नतीजे बताते हैं कि हिंदी बेल्ट में BJP का असर नहीं घटा है
लोकसभा चुनावों में BJP को अपने दम पर सरकार बनाने लायक सीटें नहीं मिली थीं। इसकी बड़ी वजह हिन्दी भाषी कुछ राज्यों में इसका खराब प्रदर्शन था। यूपी में बीजेपी के हाथ से कई सीटें निकल गईं। हरियाणा में इसने करीब आधी सीटें गंवाई थीं। राजस्थान में भी इसे नुकसान उठाना पड़ा था। इसमें कुछ दलित और पार्टी मतदाताओं के पार्टी से दूरी बना लेने का बड़ा हाथ था।
लोकसभा चुनावों के नतीजों के ठीक तीन महीने बाद हरियाणा में लगातार तीसरी बार भाजपा के सत्ता में लौटने से यह साफ हो गया है कि लोकसभा चुनावों के नतीजों में लोकल और अस्थायी मसलों का बड़ा हाथ था न कि वे किसी बदलाव के संकेत थे।
इसके तीन कारण हैं:
-बीजेपी ओबीसी सीटें जीतने में सफल रही है: BJP हरियाणा की ओबीसी बहुत 25 सीटों में से 20 जीतने में सफल रही है। 2014 के बाद बीजेपी के उभार में हिन्दी भाषी राज्यों की उन ओबीसी जातियों के समथर्न का बड़ा हाथ था, जो ताकतवर नहीं मानी जाती हैं। लोकसभा चुनावों में इनमें से कुछ जातियों खासकर यूपी में गैर-यादवों का बीजेपी से दूर होने को पार्टी को हुए नुकसान की वजह माना गया। इस ट्रेंड पर ब्रेक लग गया है या यह बदल गया है।
-जाट वोटों का बिखराव: यह अनुमान कि किसान आंदोलन और पहलवानों के विरोध के बाद जाट भाजपा से दूर हो गए हैं, सही साबित नहीं हुआ है। जाट वोटों का कांग्रेस और भाजपा के पक्ष में एकसमान विभाजन हुआ है। दोनों दलों ने जाट-बहुल 30 सीटों में से 14-14 सीटें जीतने में सफल रही हैं। खासकर करीब 50 फीसदी जाट मतदाता बीजीपी के साथ बने हुए हैं।
-दलित वोटर्स की वापसी: जून में लोकसभा चुनावों में बीजेपी की सीटों में कमी की एक बड़ी वजह दलित मतदाताओं का कम सपोर्ट माना गया था। कई दलित वोटरों ने संविधान बदले जाने और आरक्षण खत्म किए जाने की आशंका की वजह से अपना समर्थन वापस ले लिया था। इनमें से कई दलित वोटर्स बीजेपी के पास लौट आए हैं। हरियाणा में SC के लिए रिजर्व 17 सीटों में से बीजेपी ने 9 जीती हैं, जबकि कांग्रेस 8 जीत सकी है।
इन सभी बातों पर गौर करने से पता चलता है कि बीजेपी पिछले तीन महीनों में हरियाणा में अपना सामाजिक आधार दुरुस्त करने में सफल रही है, जो मुख्यत: गैर-जाट ओबीसी, दलित और सवर्ण जातियों पर आधारित है। साथ ही इसने ज्यादातर जाटों का समर्थन भी अपने साथ बनाए रखा है। इससे हिंदी भाषी राज्यों में फिर से अपनी जमीन हासिल करने की पार्टी की क्षमता का पता चलता है। हरियाणा में बीजेपी की सफलता की दर 57.3 फीसदी रही है, जबकि कांग्रेस की 38.2 फीसदी रही है। इससे यह पता चलता है कि कैसे कांग्रेस से कांटे की लड़ाई में इसे कांग्रेस के मुकाबले बढ़त हासिल है।
2. ब्रांड मोदी का बढ़ता असर
यह ध्यान में रखना जरूरी है कि हरियाणा बीजेपी के लिए गुजरात और मध्यप्रदेश की तरह पुराना किला नहीं रहा है। 2014 से पहले बीजेपी इस राज्य में कभी सत्ता में नहीं आ पाई थी। 2014 में पहली बार राज्य में इसका वोट शेयर 30 फीसदी पहुंचा था। कांग्रेस के भूपिंदर सिंह हुड्डा की तरह बीजेपी के पास हरियाणा में कोई बड़ा नेता नहीं रहा है। 2019 में जेजेपी के सहयोग से यह किसी तरह सरकार बनाने में सफल रही थी। इस बार सत्ता-विरोधी लहर से निपटने के लिए इसने मनोहर सिंह खट्टर को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया था।
इस तरह एक बार फिर से ब्रांड मोदी की ताकत का पता चलता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरियाणा में 27 रैलियां की थी। इसके उलट कांग्रेस को उन ज्यादातर सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है, जहां राहुल गांधी ने रैलियां की थीं। लोकसभा चुनावों के बाद कांग्रेस का आत्मविश्वास बढ़ा है लेकिन हरियाणा चुनाव के नतीजों ने एक बार फिर यह साफ कर दिया है कि चुनावी राजनीति के लिहाज से दोनों दलों की बीच कितना ज्यादा फर्क है।
जम्मू-कश्मीर में बीजेपी ने इससे पहले कभी इतनी सीटें नहीं जीती थी। इसका वोट शेयर 25.73 फीसदी पहुंच गया है, जबकि कांग्रेस का सिर्फ 12 फीसदी है। दरअसल, जम्मू इलाके में कांग्रेस का सफाया हो गया है। इस इलाके में इसके सीटों की सख्या डबल डिजिट में भी नहीं पहुंच पाई हैं।
3. संघ कार्यकर्ताओं की वापसी
एक बार फिर से संघ के कार्यकर्ताओं ने पूरी ताकत से पार्टी की मदद की। लोकसभा चुनावों में कई उत्तरी राज्यों में संघ और बीजेपी कार्यकर्ताओं का पूरा समर्थन नहीं मिलने की खबरें आई थीं। ऐसा लगता है कि उससे सबक लेकर इस बार दोनों ने पूरी ताकत के साथ बीजेपी की मदद की है। जम्मू और हरियाणा दोनों ही इलाकों में संघ का कार्यकर्ताओं ने जिस तरह से मेहनत की है, उससे पार्टी को मजबूत मिली है।
4. राज्यों में सत्ता में बने रहने की कला
हरियाणा में लगातार तीसरी बार सत्ता में आने से यह जाहिर होता है कि नई इलाकों में एक बार मतदाताओं का भरोसा हासिल करने के बाद बीजेपी को फिर से सत्ता में लौटने में दिक्कत नहीं आती है। कांग्रेस पिछले कुछ सालों में किसी हिंदी भाषी राज्य में दोबारा सत्ता में आने में नाकाम रही है। पिछले एक दशक में उसने राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ में बीजेपी को हराया है, लेकिन दोबारा वह इनमें से किसी राज्य में सत्ता में आने में नाकाम रही है।
5. महाराष्ट्र में चुनाव पर असर
हरियामा और जम्मी-कश्मीर के चुनावी नतीजों ने एग्जिट पोल को गलत साबित किया है। इससे राष्ट्रीय राजनीतिक बहस काफी बदल जाएगी। हरियाणा में हार की आशंकाओं के बीच तीसरी बार चुनाव जीत कर बीजेपी ने इस साल महाराष्ट्र और झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए माहौल गरमा दिया है। इससे बीजेपी के कार्यकर्ताओं का आत्मविश्वास बढ़ा है। पार्टी के नेतृत्व में उनकी निष्ठा बढ़ी है।
नरेंद्र मोदी की नई बीजेपी ने हरियाणा में जीत के साथ एक बार फिर से घड़ी की सुई की दिशा बदल दी है। आगे राहुल गांधी की कांग्रेस के साथ जोरदार टकराव के लिए मैदान तैयार दिख रहा है।