CG Election 2023: 1977 से कांग्रेस का अभेद्य किला रही खरसिया विधानसभा सीट, क्या इस बार BJP कर पाएगी कमाल?
CG Election 2023: छत्तीसगढ़ के मध्य प्रदेश से अलग होने से पहले, रायगढ़ जिले की ये विधानसभा 1988 में सुर्खियों में आई था, जब कांग्रेस के दिग्गज नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने यहां से सफलतापूर्वक उपचुनाव लड़ा था। सिंह को छोड़कर, इस सीट का प्रतिनिधित्व हमेशा अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) समुदाय पटेल (अघरिया) ने किया है, जो इस निर्वाचन क्षेत्र की आबादी का लगभग 25 प्रतिशत है
CG Election 2023: 1977 से कांग्रेस का अभेद्य किला रही खरसिया विधानसभा सीट
CG Election 2023: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) की खरसिया विधानसभा सीट (Kharsia assembly seat) की स्थापना 1977 में हुई थी। ये सीट पहले मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में आती थी, लेकिन राज्य विभाजन के बाद ये छत्तीसगढ़ में आ गई। शुरुआत से ही ये विधानसभा सीट कांग्रेस (Congress) का एक अभेद्य किला रही। एक उपचुनाव समेत 11 चुनावों के बावजूद, BJP अभी तक इसका तोड़ नहीं निकाल पाई है। छत्तीसगढ़ के मध्य प्रदेश से अलग होने से पहले, रायगढ़ जिले की ये विधानसभा 1988 में सुर्खियों में आई था, जब कांग्रेस के दिग्गज नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने यहां से सफलतापूर्वक उपचुनाव लड़ा था।
सिंह को छोड़कर, इस सीट का प्रतिनिधित्व हमेशा अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) समुदाय पटेल (अघरिया) ने किया है, जो इस निर्वाचन क्षेत्र की आबादी का लगभग 25 प्रतिशत है।
ये सीट वर्तमान में छत्तीसगढ़ के उच्च शिक्षा मंत्री उमेश पटेल के पास है। अगले महीने होने वाले चुनाव में भी कांग्रेस ने उन पर ही भरोसा जताया है। इस बार, BJP ने एक दूसरे प्रमुख ओबीसी समुदाय से आने वाले महेश साहू पर अपनी उम्मीदें लगाई हैं। साहू तेली समाज से आते हैं।
90 सदस्यों वाली छत्तीसगढ़ विधानसभा के लिए 7 और 17 नवंबर को दो चरणों में मतदान होगा।
चुनाव विशेषज्ञों का मानना है कि BJP के लिए कांग्रेस के इस गढ़ को जीतना आसान नहीं होगा, क्योंकि दिलीप सिंह जूदेव और लखीराम अग्रवाल जैसे उसके दिग्गज भी खरसिया से जीत नहीं सके।
खरसिया सीट का इतिहास
1977 में, खरसिया को रायगढ़ जिला बनाया गया था, जिसमें रायगढ़ और धरमजयगढ़ क्षेत्रों के कुछ हिस्से शामिल थे। तब ये मध्य प्रदेश का हिस्सा था। छत्तीसगढ़ का गठन 2000 में हुआ था।
1977 में जनता पार्टी की लहर होने के बावजूद कांग्रेस के लक्ष्मी प्रसाद पटेल ने ये सीट जीती और उसके बाद 1980 और 1985 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में भी जीत हासिल की।
लक्ष्मी प्रसाद ने अर्जुन सिंह के लिए अपनी सीट खाली कर दी, जिन्होंने 1988 में लोकसभा सांसद के रूप में इस्तीफा दे दिया और मध्य प्रदेश की राजनीति में लौट आए। उस समय पिछड़ा क्षेत्र खरसिया सिंह के लिए सुरक्षित सीट मानी जाती थी, जिन्होंने उपचुनाव में BJP के दिलीप सिंह जूदेव को 8,658 सीटों के अंतर से हराया था।
चुनाव विश्लेषक आर कृष्ण दास ने कहा, ये देखते हुए कि लक्ष्मी प्रसाद ने 1985 में 21,279 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी, ये साफ हो गया कि जूदेव ने उपचुनाव में सिंह को कड़ी टक्कर दी थी।
ऐसा कहा जाता है कि जूदेव को नंदेली और उसके आसपास के गांवों को छोड़कर विधानसभा क्षेत्र के अलग-अलग इलाकों से अच्छा समर्थन मिला था। यही सबसे बड़ा कारण था कि अर्जुन सिंह ने 1990 के विधानसभा चुनाव में खरसिया से चुनाव लड़ने के लिए नंदेली गांव के तत्कालीन सरपंच नंद कुमार पटेल को टिकट दिया था।
पांच बार लगातार जीते नंद कुमार पटेल
नंद कुमार पटेल ने इस सीट से पांच बार - 1990, 1993, 1998, 2003 और 2008 - जीत हासिल की और अविभाजित मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों में बतौर गृह मंत्री काम किया। 1990 में उन्होंने खरसिया क्षेत्र के रहने वाले बीजेपी के दिग्गज नेता लाखी राम अग्रवाल को हराया था।
मई 2013 में, कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार पटेल और उनके बड़े बेटे की मौत हो गई थी। जब बस्तर जिले की झीरम घाटी में विधानसभा चुनाव से पहले उनकी पार्टी की 'परिवर्तन' रैली पर नक्सलियों ने हमला कर दिया था।
तब कांग्रेस ने इस सीट से नंद कुमार के छोटे बेटे उमेश पटेल को मैदान में उतारा और वह 2013 और 2018 में दो बार चुनाव जीते।
उमेश पटेल, जिन्हें 2018 में कांग्रेस की जीत के बाद भूपेश बघेल कैबिनेट में उच्च शिक्षा मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था, अब अगले महीने के चुनाव में खरसिया से अपना तीसरा कार्यकाल चाह रहे हैं।
2018 के चुनावों में, उमेश ने BJP के ओपी चौधरी को हराया, जो भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) छोड़ने के बाद पार्टी में शामिल हुए थे। चौधरी, अघरिया समुदाय से आते हैं। उन्हें इस बार BJP ने नजदीकी रायगढ़ सीट से मैदान में उतारा है।
खरसिया सीट पर 2,15,223 मतदाताओं में से लगभग 88 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं और OBC सीट की आबादी लगभग 40 प्रतिशत है।
दास ने कहा कि BJP ने पहली बार एक साहू उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। यहां उनके समुदाय की आबादी लगभग 15 प्रतिशत है। बीजेपी अपने 12वें प्रयास में पासा पलटने की कोशिश कर रही है, क्योंकि वो पहले ही यहां से 11 चुनाव हार चुकी है।
उन्होंने कहा, इस सीट पर पटेल अघरिया समुदाय को चुनाव परिणाम का निर्णायक माना जाता है। हालांकि, बीजेपी की नजर अनुसूचित जाति के वोटों पर है, जो आबादी का लगभग 26 प्रतिशत हैं।
दास ने कहा कि क्या उमेश अपनी सरकार के विकास कार्यों और कल्याणकारी योजनाओं पर आधारित अपने परिवार की विरासत को जारी रखने में सफल होंगे या BJP कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाने में सक्षम होगी, ये तो 3 दिसंबर को ही पता चलेगा। खरसिया उन 70 निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है, जहां 17 नवंबर को दूसरे चरण में मतदान होगा।