अब ये लगभग पूरी तरह साफ हो चुका है कि पिछले साल 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले जब INDIA एक साथ आया था, अब वो बहुत कमजोर पड़ गया है। गर्मजोशी की जगह अब खटास भरे संबंधों ने ले ली है। हालांकि, ज्यादातर लोगों को एकसाथ आए इन विपक्षी दलों का अब अलग-अलग होना हैरान नहीं कर रहा है। इस बिगड़ते पेस के पीछे का एक बड़ा कारण दिल्ली विधानसभा चुनाव है, जिसमें तृणमूल कांग्रेस (TMC), शिवसेना (UBT) और समाजवादी पार्टी (SP) ने कांग्रेस के बजाय आम आदमी पार्टी (AAP) को अपना समर्थन देने का वादा किया था।
इन पार्टियों ने ये साफ कर दिया कि उनकी पसंद अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी है और वे इसे एक अच्छा पार्टनर समझते हैं। TMC के सूत्रों ने CNN-News18 को बताया, "पश्चिम बंगाल में AAP ने कितनी सीटों पर चुनाव लड़ा? जीरो। लेकिन, कांग्रेस और लेफ्ट ने मिलकर छह सीटों पर चुनाव लड़ा, जबकि उन्हें इससे दूर रहना चाहिए था। इसलिए, हम जानते हैं कि किस पर भरोसा करना है।"
'अगर कोई भाजपा को टक्कर दे रहा है, तो वो AAP है'
शिवसेना (UBT) नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने साफ किया कि उनकी पार्टी AAP का समर्थन करेगी। उन्होंने कहा, "हमें लगता है कि अगर कोई भाजपा को कड़ी टक्कर दे रहा है, तो वो AAP है। इसलिए हम दिल्ली चुनाव में उनका समर्थन करेंगे।"
लेकिन, इसके पीछे की वजह महाराष्ट्र है, जहां उद्धव ठाकरे अभी भी कांग्रेस से नाराज हैं। उन्होंने राज्य चुनाव के दौरान महा विकास अघाड़ी के भीतर ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए कड़ी मेहनत की थी।
राहुल गांधी और उनकी पार्टी से हिंदुत्व विचारक वीडी सावरकर पर हमला न करने की अपील करने के बावजूद देश की सबसे पुरानी पार्टी ने उनकी बात सुनने से इनकार कर दिया। क्योंकि इससे NCP (SP) के साथ-साथ उनकी अपनी पार्टी दोनों को नुकसान होता।
लेकिन कांग्रेस के लिए सबसे बुरा संकेत राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की ओर से मिल रहे हैं, जहां तेजस्वी यादव ने कहा है कि विपक्षी मोर्चा केवल आम चुनावों के लिए है।
बिहार के लिए तेजस्वी ने कांग्रेस को दिया मैसेज
तेजस्वी के इस बयान को आगामी बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के लिए एक मैसेज के तौर पर लिया जा रहा है कि यहां वो बड़ी खिलाड़ी नहीं होगी। RJD के मृत्युंजय तिवारी ने कहा, "कांग्रेस को बिहार की सभी 243 सीटों पर लड़ने की तैयारी करनी चाहिए।"
ऐसी संभावना है कि दिल्ली चुनाव के बाद INDIA ब्लॉक की बैठक होने की संभावना है। इस बैठक में जिस बड़े मुद्दे पर चर्चा हो सकती है, वो यह है कि गठबंधन का चेहरा कौन होगा। फिलहाल ऐसा लगता है कि कोई भी नहीं चाहता कि कांग्रेस चेहरा बने।
इससे पार्टी अलग-थलग पड़ रही है और गठबंधन बिखर रहा है, जबकि लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में राहुल गांधी की स्थिति उन सभी को एक साथ बांधने में असमर्थ है।