चुनावी राज्य मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमान दो बुजुर्गों के हाथ में है, जहां सीनियर पार्टनर ने अपनी पावर ऑफ अटॉर्नी जूनियर पार्टनर को सौंप दी है, ताकि वह पार्टी के उन कार्यकर्ताओं और नेताओं की नाराजगी का सामना कर सकें, जो इन दोनों बुजुर्ग नेताओं के फैसले के कारण प्रभावित हुए हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ (77) अपने सहयोगी दिग्विजय सिंह (76) से महज 4 महीने बड़े हैं। पार्टी का घोषणात्र जारी करने के मौके पर कमलनाथ ने भी दिग्विजय सिंह के साथ इस तालमेल की पुष्टि की थी।
कमलनाथ-दिग्विजय सिंह का सदाबहार रिश्ता
मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ की इस टिप्पणी से पहले एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वह टिकट की चाह रखने वाले नाराज समर्थक को टिकट नहीं मिलने पर दिग्विजय सिंह के कपड़े फाड़ने को कह रहे थे। इस पर दिग्विजय सिंह ने विनोद भरे अंदाज में कहा कि बेशक उनके पास 'पावर ऑफ एटॉर्नी' है, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते पार्टी के सभी फैसलों पर कमलनाथ के हस्ताक्षर होते हैं। कांग्रेस के दो बड़े नेताओं के बीच इस हंसी-मजाक की गूंज अब भी चुनाव प्रचार अभियान में बनी हुई है, लेकिन दोनों नेता 'पारिवारिक मामला' बताकर इस पर हंस देते हैं।
कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का साथ 1980 से है और पिछले चार दशक में राजनीतिक संकट के वक्त ये नेता हमेशा एक-दूसरे के साथ खड़े नजर आए हैं। 1993 में दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनाने में कमलनाथ का समर्थन काफी अहम था। दिग्विजय सिंह ने बदले में छिंदवारा के सासंद कमलनाथ को महाकौशल क्षेत्र में 10 साल तक मुख्यमंत्री की तरह ही काम करने की खुली छूट दी।
2017 के बाद और मजबूत हुए रिश्ते
कमलनाथ जब 2017 में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बने, तो दोनों की मित्रता और गहरी हो गई। दिग्विजय सिंह को भलीभांति यह पता था कि उनके मित्र का राज्य की राजनीतिक में लौटने का एकमात्र मकसद राज्य का मुख्यमंत्री बनना है। हालांकि, ज्योतिरादित्य सिंधिया भी इस पद के लिए कोशिशें कर रहे थे। हालांकि, कांग्रेस के दोनों वरिष्ठ नेताओं ने मिलकर प्रदेश के संगठन पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली। इसके बाद से अब तक कांग्रेस की मध्य प्रदेश इकाई में इन दोनों नेताओं का दबदबा कायम है। माना जा रहा था कि 2018 में राज्य में कांग्रेस की सत्ता में वापसी के बाद राघोघढ़ के राजा (दिग्विजय सिंह) ही पर्दे के पीछे से सरकार चला रहे थे।
सरकार गिरने के बाद बाद भी कमलनाथ और राहुल का भरोसा कायम
अगर कांग्रेस को सत्ता में लाने और सरकार का चलाने का श्रेय दिग्विजय सिंह को मिला, तो सरकार के गिरने के लिए पूरी तरह से उन्हें ही जिम्मेदार ठहराया गया। मार्च 2020 में 22 विधायकों और ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से पार्टी में पैदा हुए राजनीतिक उथल-पुथल के लिए पूरी तरह तरह से सिंह को दोषी ठहराया गया। यहां तक कि कमलनाथ ने भी दिग्विजय सिंह को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि उन्हें इस मामले में अंधेरे में रखा गया। हालांकि, समय के साथ वह पार्टी के अंदर और बाहर की राजनीतिक चुनौतियों से निपटने में सफल रहे। बीजेपी की 'सांप्रदायिक राजनीति' के खिलाफ उनका हमला पहले की तरह ही तीखा बना रहा।
भारत जोड़ा यात्रा उनके लिए वरदान साबित हुई और वह राहुल गांधी का भरोसा जीतने में सफल रहे। वह यात्रा के प्रमुख आयोजनकर्ताओं में से एक थे और उन्होंने इसे सफलतापूर्वक अंजाम दिया। राहुल गांधी के साथ लंबी पद यात्रा ने उनमें इतनी स्फूर्ति भर दी कि उन्होंने कैलाश विजयवर्गीय को अपने साथ चलने की चुनौती दे डाली। दरअसल, विजयवर्गीय ने दिग्विजय सिंह को बूढ़ा कहा था। मध्य प्रदेश के मौजूदा विधानसभा चुनावों में दिग्विजय सिंह ने बीजेपी से उन 66 सीटों को छीनने की चुनौती स्वीकार की है, जहां पार्टी पिछले 30 साल से लगातार जीत हासिल कर रही है।