Madhya Pradesh Polls 2023: क्या अलग-अलग है मध्य प्रदेश के सभी 6 क्षेत्रों का चुनावी मिजाज?
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में नामांकन करने की आखिरी तारीख ( 30 अक्टूबर) नजदीक है और दोनों पार्टियों ने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी है। कांग्रेस ने सभी 230 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि बीजेपी ने 228 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा की है। मध्य प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों का मिजाज अलग-अलग है और सर्वे में भी ऐसा देखने को मिल रहा है
MP Elections 2023: मध्य प्रदेश को 6 क्षेत्रों में बांटा जा सकता है-बघेलखंड, ग्वालियर-चंबल, मालवा, भोपाल, महाकौशल और निमाड़।
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में नामांकन करने की आखिरी तारीख ( 30 अक्टूबर) नजदीक है और दोनों पार्टियों ने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी है। कांग्रेस ने सभी 230 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि बीजेपी ने 228 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा की है। दोनों पार्टियों में बगावत भी देखने को मिल रही है और कई बागी नेता बीएसपी या अन्य छोटी पार्टी ज्वाइन कर रहे हैं या निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर रहे हैं। इन गतिविधियों की वजह से कांग्रेस को सात सीटों पर अपने उम्मीदवार बदलने पड़े हैं।
मध्य प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों का मिजाज अलग-अलग है और सर्वे में भी ऐसा देखने को मिल रहा है। मध्य प्रदेश को 6 क्षेत्रों में बांटा जा सकता है-बघेलखंड, ग्वालियर-चंबल, मालवा, भोपाल, महाकौशल और निमाड़। बघेलखंड में बुंदेलखंज और विंध्य प्रदेश शामिल है। बघेलखंड राज्य का सबसे बड़ा क्षेत्र है और इसमें कुल 56 सीटें हैं, जबकि भोपाल सबसे छोटा इलाका है, जहां 25 सीटें हैं।
कुछ राजनीतिक विश्लेषक मालवा-निमाड़ को एक क्षेत्र मानते हैं, जबकि बुंदेलखंड और विंध्य को अलग-अलग रखते हैं। कुछ विश्लेषकों द्वारा भोपाल को मध्य भारत भी कहा जाता है। पिछली बार यानी 2018 में कांग्रेस को चंबल, महाकौशल और निमाड़ क्षेत्र में अच्छी बढ़त मिली थी और 114 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। कुल मिलाकर कहा जाए, तो किसी भी पार्टी को राज्य के सभी क्षेत्रों में बढ़त नहीं थी। ओपनियन पोल के मुताबिक, इस बार भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति है।
बुंदलेखंड: जल संकट, जाति की चुनौतियां, बीजेपी का गढ़ (56 सीटें)
पिछले तीन विधानसभा चुनावों (2008-2018) में बीजेपी ने बुंदेलखंड क्षेत्र की दो तिहाई सीटों पर जीत हासिल की है। बुंदलेखंड के कई इलाकों में पानी की समस्या बड़ा मुद्दा है, जिसका सीधा असर लोगों की आजीविका और कृषि पर पड़ता है। बेरोजगारी और अलग राज्य की मांग यहां बज़े मुद्दे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान विंध्य इलाके में सवर्ण आंदोलन बड़ा मुद्दा था। फिलहाल, बेरोजगारी यहां बड़ा मुद्दा है। विंध्य में सवर्ण आबादी ज्यादा है, जबकि बुंदेलखंड में ओबीसी और दलित ज्यादा हैं। कुछ जिलों में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) का भी प्रभाव है। सी-वोटर ( C-Voter) के सर्वे के मुताबिक, इस विधानसभा चुनाव में यहां कांग्रेस की परफॉर्मेंस काफी बेहतर रहने की उम्मीद है।
भोपाल: शहरी, बीजेपी (25 सीटें)
यह बीजेपी का दूसरा मजबूत क्षेत्र है। पार्टी ने पिछले तीन चुनावों में यहां पर लगातार जीत हासिल की है। यह शहरी और अर्द्ध-शहरी इलाका है, जहां हिंदुत्व और ध्रुवीकरण की राजनीति अहम भूमिका निभाती है। भोपाल के शहरी इलाकों में अल्पसंख्यकों की तादाद 15 पर्सेंट है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस के दो मुस्लिम उम्मीदवार इस क्षेत्र से आते हैं।
महाकौशल: कौन-सा कमल खिलेगा? (42 सीटें)
इस क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति समुदाय की संख्या सबसे ज्यादा है। इसके बाद सवर्ण वोटर हैं। साल 2013 तक इस क्षेत्र में बीजेपी का पलड़ा भारी थी। 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस इस क्षेत्र में आगे निकल गई, क्योंकि यह कमलनाथ के प्रभाव वाला क्षेत्र है। रानी दुर्गावती की मूर्ति यहां भावनात्मक मुद्दा है। 2018 में अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार कानून यहां बड़ा मुद्दा था। प्रधानमंत्री ने जबलपुर में 'वीरांगना रानी दुर्गावती स्मारक और उद्यान' की आधारशिला रखी है। बीएसपी के साथ गठबंधन करने वाली गणतंत्र पार्टी की यहां अच्छी-खासी मौजूदगी है।
ग्वालियर-चंबल: सिंधिया फैक्टर (34 सीटें)
ग्वालियर का राजघराना इस क्षेत्र में काफी प्रभावशाली है। 2018 के विधानसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में थे और इस दौरान पार्टी ने इस क्षेत्र की सभी 26 सीटों पर जीत हासिल की थी। यह क्षेत्र सवर्ण आंदोलन और अनुसूचित जाति के विरोध-प्रदर्शनों का ठिकाना रहा है। सिंधिया अब बीजेपी में हैं। ऐसे में क्या बीजेपी इस क्षेत्र में वापसी करेगी? हालांकि, सर्वे में कुछ अलग ट्रेंड दिखर रहा है, जिसमें सिंधिया की पकड़ ढीली नजर आ रही है।
मालवा: किसानों का मुद्दा (45 सीटें)
मालवा मध्य प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है और यहां बीजेपी की पकड़ मजबूत है। उज्जैन में विश्व प्रसिद्ध महाकाल मंदिर है। यह क्षेत्र कृषि संकट का भी केंद्र है। 2018 में इसी इलाके के मंदसौर में फायरिंग हुई थी, जिसमें 6 किसान मारे गए थे। कर्जमाफी यहां बड़ा मुद्दा है। राज्य में बड़ी संख्या में किसानों की खुदकुशी के मामले सामने आए हैं।
निमाड़: अनुसूचित जनजाति का गढ़ (28 सीटें)
निमाड़ मध्य प्रदेश का जनजातीय इलाका है। अनुसूचित जनजाति समुदाय के लिए राज्य में सुरक्षित 47 विधानसभा सीटों में से 19 इसी क्षेत्र में हैं। पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को बड़ी सफलता मिली थी।
पिछले तीन चुनावों के दौरान बीजेपी बघेलखंड, भोपाल और मालवा में आगे रही है , जबकि 2018 में चंबल (सिंधिया का क्षेत्र), महाकौशल (कमलनाथ का क्षेत्र) और निमाड़ (अनुसूचित जनजाति क्षेत्र) में कांग्रेस की परफॉर्मेंस बेहतर रही।