MP Election 2023: राजनीति में भाग्यशाली रहे शिवराज की ओर लौट रही BJP, क्या वोटर्स को प्रभावित कर पाएगी उनकी किस्मत

MP Election 2023: उस वक्त शिवराज चौहान निश्चित रूप से इस पद के लिए BJP आलाकमान के पसंदीदा नहीं थे। क्योंकि 15 महीने पहले ही उनके नेतृत्व में BJP विधानसभा चुनाव हार गई थी। लेकिन पार्टी के पास इतना समय नहीं था कि वो किसी दूसरे विकल्प पर विचार कर सके। अगले दिन, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को Covid-19 के चलते देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा करनी थी

अपडेटेड Nov 08, 2023 पर 6:03 PM
Story continues below Advertisement
MP Election 2023: राजनीति में भाग्यशाली रहे शिवराज की ओर लौट रही BJP

लेखक- राकेश दीक्षित

MP Election 2023: 'हम शिवराज से तो लड़ सकते हैं, लेकिन उनके भाग्य से नहीं' ये बात 23 मार्च, 2020 को कांग्रेस (Congress) के एक अनुभवी नेता ने बड़े ही उदास मन से कही थी। उन्होंने ये बात तब कही जब शिवराज चौहान (Shivraj Chouhan) कमलनाथ (Kamal Nath) की 15 महीने की सरकार गिरने के बाद चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले थे। ये सब तब हुआ, जब ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के नेतृत्‍व में 22 कांग्रेस विधायकों ने बगावत कर दी थी।

उस वक्त शिवराज चौहान निश्चित रूप से इस पद के लिए BJP आलाकमान के पसंदीदा नहीं थे। क्योंकि 15 महीने पहले ही उनके नेतृत्व में BJP विधानसभा चुनाव हार गई थी। लेकिन पार्टी के पास इतना समय नहीं था कि वो किसी दूसरे विकल्प पर विचार कर सके। अगले दिन, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को Covid-19 के चलते देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा करनी थी।


MP Election 2023: 'जब मेरा तीसरा कार्यकाल शुरू होगा...' MP में PM मोदी ने किया ये बड़ा वादा, कांग्रेस से सावधान रहने को भी कहा

शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक जीवन में आए उतार चढ़ाव पर एक नजर डालने से भी ये पता चलता है कि कांग्रेस के दिग्गज नेता की वो टिप्पणी एकदम सटीक थी।

1990 में उन्होंने पहली बार बुदनी से राज्य विधानसभा में प्रवेश किया, तब से लेकर अब तक, 64 साल के नेता का नसीब काफी चमकदार रहा है। उनके पास बीजेपी के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले नेता का एक शानदार रिकॉर्ड है।

जैसा कि सभी जानते हैं कि अगर बीजेपी मध्य प्रदेश में सत्ता बरकरार रखती है, तो वह पांचवीं बार भी भाग्यशाली हो सकते हैं, और अपनी पारी लंबी खींच सकते हैं।

2023 अभियान की मुश्किल शुरुआत

एक महीने पहले तक, अगले मुख्यमंत्री के रूप में चौहान की किस्मत पक्की लग रही थी। बीजेपी आलाकमान ने मध्य प्रदेश में चुनाव प्रचार की कमान अपने हाथ में ले ली थी। सीएम चेहरे को लेकर पार्टी नेता टालमटोल कर रहे थे और उम्मीदवारों की पहली दो लिस्ट में चौहान को अंधेरे में रखा गया।

तीन केंद्रीय मंत्रियों और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को मैदान में उतारने के पार्टी के फैसले ने सीएम की दौड़ को और ज्यादा मुश्किल बना दिया। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य में चुनावी सभाओं में चौहान के नाम और उनकी उपलब्धियों का जिक्र तक नहीं किया।

इन घटनाक्रमों के बावजूद, शिवराज चौहान ने जनता के बीच अपना संयम नहीं खोया और प्रचार पर ध्यान केंद्रित रखा।

फिर एक तेज रिकवरी

पिछले कुछ हफ्तों में, सीएम के सितारे फिर से चमकने लगे, जब प्रधान मंत्री ने राज्य के मतदाताओं को एक खुले पत्र में उनके नेतृत्व के लिए "प्रत्यक्ष समर्थन" का आग्रह किया। पत्र में राज्य की "तस्वीर बदलने" में मुख्यमंत्री की "कड़ी मेहनत" की सराहना की गई।

इसके बाद चौहान के लिए पार्टी उम्मीदवारों की बाकी तीन लिस्ट के रूप में और भी अच्छी खबरें आईं। पहली दो लिस्ट के बाद, चौहान के ज्यादातर वफादारों को बाद की लिस्ट में शामिल किया गया। खुद सीएम को उनकी पारंपरिक सीट से किस्मत आजमाने का एक और मौका दिया गया।

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि चौहान को राज्य भर में प्रचार करने की हरी झंडी मिल गई है, जबकि सीएम बनने की इच्छा रखने वाले दूसरे नेता अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में अटके हुए हैं।

जहां तक ​​बुदनी का सवाल है, लगातार चुनावों में भारी अंतर से जीत हासिल करने के लिए सीएम को शायद ही एक या दो दिन से ज्यादा प्रचार करने की जरूरत पड़ी।

कुल मिलाकर, देर से हुए घटनाक्रम ने राजनीतिक पर्यवेक्षकों को इस निष्कर्ष पर पहुंचाया है कि आलाकमान ने आखिरकार ये मान लिया है कि वह चुनाव में शिवराज सिंह चौहान की गिनती करना बर्दाश्त नहीं कर सकता। मुख्यमंत्री, अपनी ओर से, नए जोश के साथ पूरे राज्य में घूम-घूम कर दूसरे उम्मीदवारों के लिए भी वोट जुटा रहे हैं।

चौहान का उदय

उनका ओबीसी से होना चौहान के लिए एक बड़ी राजनीतिक संपत्ति रही है। कांग्रेस की तरफ से जाति जनगणना का वादा करने के बाद, ओबीसी चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण कारक बन गए हैं। चौहान निर्विवाद रूप से मध्य प्रदेश में बीजेपी का सबसे प्रमुख OBC चेहरा हैं। ये आंशिक रूप से सीएम गणना में उनकी वापसी की ओर इशारा करता है।

1990 के दशक में, तत्कालीन बीजेपी संरक्षक लालकृष्ण आडवाणी ने बुदनी के युवा OBC विधायक की राजनीतिक क्षमता को पहचान लिया था।

1991 में अटल बिहारी वाजपेयी की तरफ से सीट खाली करने और लखनऊ बरकरार रखने के फैसले के बाद विधायक को 1991 में विदिशा लोकसभा उपचुनाव में मैदान में उतारा गया था। एक बार संसद में पहुंचने के बाद, चौहान ने केंद्र में पार्टी की राजनीति की बारीकियां सीख लीं।

आडवाणी के आशीर्वाद से, उनके प्रबल शिष्य ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने नई ऊंचाइयों को छुआ - भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष, फिर बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव, फिर एमपी इकाई के प्रदेश अध्यक्ष और आखिरकार नवंबर 2005 में मुख्यमंत्री बने।

मोदी युग से बचे रहना

जब तक उनके गुरु लालकृष्ण आडवाणी बीजेपी के शीर्ष पर थे, तब तक चौहान के लिए सब कुछ बहुत आसान था। 2014 में मोदी युग की शुरुआत के साथ ही मुख्यमंत्री को अपनी गद्दी के लिए परेशानियों का आभास हो गया था।

किसी और ने नहीं बल्कि खुद आडवाणी ने एक बार मुख्यमंत्री के रूप में चौहान की तुलना नरेंद्र मोदी से की थी। इस तुलना ने मोदी के प्रधान मंत्री बनने पर चौहान को अपने भविष्य के बारे में कुछ हद तक भ्रमित कर दिया।

हालांकि, नए बॉस के सामने खुद को स्थापित करने के उनके अद्वितीय कौशल ने चौहान की चिंताओं को कम कर दिया। अलग-अलग मौकों पर, उन्होंने प्रधान मंत्री को "भारत के लोगों के लिए भगवान का उपहार" और "अतिमानवीय" बताया है।

अब ये देखना बाकी है कि क्या इस चुनाव में बीजेपी के सत्ता में रहने पर उनके "भगवान" उन्हें एक और कार्यकाल का वरदान देंगे।

राकेश दीक्षित भोपाल में वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं और इसका वेबसाइट या उसके मैनेजमेंट से कोई संबंध नहीं है।

Shubham Sharma

Shubham Sharma

हिंदी में शेयर बाजार स्टॉक मार्केट न्यूज़,  बिजनेस न्यूज़,  पर्सनल फाइनेंस और अन्य देश से जुड़ी खबरें सबसे पहले मनीकंट्रोल हिंदी पर पढ़ें. डेली मार्केट अपडेट के लिए Moneycontrol App  डाउनलोड करें।