MP Election 2023: इंदौर-1 सीट पर जातीय समीकरण होगा अहम, विजयवर्गीय की एंट्री के बाद कांग्रेस ने बदली चुनावी रणनीति
MP Election 2023: BJP के इस कदम ने मौजूदा विधायक और कांग्रेस उम्मीदवार संजय शुक्ला (Sanjay Shukla) को इस सीट को बरकरार रखने के लिए अपनी चुनावी रणनीति पर फिर से काम करने के लिए मजबूर दिय। ऐसा माना जा रहा है कि आगामी मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस सीट पर जातिगत समीकरण एक अहम भूमिका निभा सकता है
MP Election 2023: इंदौर-1 में कैलाश विजयवर्गीय की एंट्री के बाद कांग्रेस ने बदली चुनावी रणनीति
MP Election 2023: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव (MP Assembly Election) में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के कई दिग्गजों को टिकट दिए जाने के बाद से उन सीटों पर कांग्रेस (Congress) के उम्मीदवारों को अपनी रणनीति में कई बड़े बदलाव करने पड़े हैं। ऐसी ही सीट इंदौर-1 है, जहां BJP ने पार्टी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय (Kailash Vijayvargiya) को मैदान में उतारा है। BJP के इस कदम ने मौजूदा विधायक और कांग्रेस उम्मीदवार संजय शुक्ला (Sanjay Shukla) को इस सीट को बरकरार रखने के लिए अपनी चुनावी रणनीति पर फिर से काम करने के लिए मजबूर दिय। ऐसा माना जा रहा है कि आगामी मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस सीट पर जातिगत समीकरण एक अहम भूमिका निभा सकता है।
वैश्य समुदाय और इंदौर-2 से आने वाले 67 साल के पूर्व राज्य मंत्री विजयवर्गीय को 10 साल के लंबे अंतराल के बाद सत्तारूढ़ BJP ने टिकट दिया है। विपक्षी कांग्रेस ने ब्राह्मण समुदाय से आने वाले 47 साल के शुक्ला पर दूसरी बार भरोसा जताया है और उन्हें उनके पैतृक इलाके इंदौर-1 से मैदान में उतारा है।
क्या कहता है जातीय समीकरण?
इंदौर-1 विधानसभा सीट पर चुनाव परिणाम तय करने में ब्राह्मण और यादव समुदाय के सदस्यों की भूमिका महत्वपूर्ण होने की उम्मीद है, जिसमें 3.64 लाख मतदाता शामिल हैं।
BJP के दिग्गज नेता विजयवर्गीय के चुनावी मैदान में उतरने से शुक्ला को सीट बरकरार रखने के लिए अपनी चुनावी रणनीति बदलनी पड़ी है।
न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक, शुक्ला के करीबी सूत्रों ने कहा कि इस विधानसभा क्षेत्र में जातिगत समीकरणों को संतुलित करने के लिए कांग्रेस की तरफ से एक नई योजना तैयार की जा रही है। इसके साथ ही विपक्षी दल के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की सिलसिलेवार बैठकों की भी तैयारी की जा रही है।
वरिष्ठ पत्रकार सत्यप्रकाश शर्मा ने कहा कि मध्य प्रदेश में जातिवाद की राजनीति खासतौर से तीन क्षेत्रों में देखी जाती है- ग्वालियर चंबल, रीवा और बुंदेलखंड। मालवा में जातीय फैक्टर ज्यादा अहमियत नहीं रखता। लेकिन फिर भी आज कल इसका चलन ज्यादा हो गया है। क्योंकि लोग कहीं न कहीं अपनी जाति के नेता को ही वोट देना चाहते हैं और पार्टियां भी इसी के आधार पर वोट देती हैं। उन्होंने आगे कहा, "इसी को देखते हुए मेरा मानना है कि संजय शुक्ला को ब्राह्मण वोट मिलेगा।"
'इंदौर की रगों में बसा हुआ व्यक्तित्व हैं विजयवर्गीय'
चुनाव प्रचार में, शुक्ला अपने लिए "नेता नहीं, बेटा" टैग लाइन का इस्तेमाल करके और प्रतिद्वंद्वी विजयवर्गीय को "मेहमान" कहकर खुद को एक स्थानीय नेता के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं।
हालांकि, विजयवर्गीय अपने प्रतिद्वंद्वी का मुकाबला करने के लिए खुद को पूरे इंदौर के नेता के रूप में पेश कर रहे हैं। क्योंकि वह पहले इस शहर के मेयर भी रह चुके हैं।
शुक्ला के 'मेहमान' वाले बयान पर मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार सत्य प्रकाश शर्मा का कहना है कि कैलाश विजयवर्गीय कोई बाहरी व्यक्ति नहीं, बल्कि इंदौर की रगों में बसा हुआ व्यक्तित्व हैं।
उन्होंने आगे कहा, "... लेकिन ये भी सच है कि संजय शुक्ला मध्य प्रदेश में कांग्रेस के इकलौते ऐसे विधायक हैं, जिन्होंने Covid-19 के दौरान इंदौर-1 की जनता की एक बेटे की तरह ही सेवा की।" शर्मा का मानना है कि इन सब कारणों से ही इंदौरा-1 पर कड़ी टक्कर होती दिख रही है।
विजयवर्गीय इंदौर-1 के तेजी से विकास और अवैध नशीली दवाओं के व्यापार पर अंकुश लगाने के वादे के साथ मतदाताओं का विश्वास जीतने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने सार्वजनिक कार्यक्रमों में भजन गाने का भी काफी शौक है।
दूसरी ओर, पिछले पांच सालों में कई धार्मिक आयोजन और भंडारे कराने वाले शुक्ला अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के सुख-दुख में उनके साथ खड़े होने का दावा कर रहे हैं।
अपने 40 साल लंबे राजनीतिक करियर में विजयवर्गीय अब तक कोई चुनाव नहीं हारे हैं। उन्होंने 1990 से 2013 के बीच इंदौर जिले की अलग-अलग सीटों से लगातार छह बार विधानसभा चुनाव जीता।
2018 के चुनावों में, शुक्ला इंदौर के शहरी क्षेत्रों की सभी पांच सीटों में से कांग्रेस के एकमात्र विजेता उम्मीदवार थे। बाकी चार सीटें बीजेपी के खाते में गईं।
2018 के विधानसभा चुनाव में शुक्ला ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी BJP उम्मीदवार सुदर्शन गुप्ता को 8,163 वोटों से हराया।
हालांकि, 2022 में हुए पिछले नगर निगम चुनाव में मेयर पद के लिए शुक्ला को बीजेपी उम्मीदवार पुष्यमित्र भार्गव के हाथों हार का सामना करना पड़ा था।