मध्य प्रदेश में इस बार Congress और BJP के बीच कांटे की लड़ाई है। राज्य की 230 विधानसभा सीटों पर 17 नवबंर को वोटिंग होगी। दोनों पार्टियां इन चुनावों को बहुत गंभीरता से ले रही हैं। 2018 के विधानसभा चुनावों में भी मुख्य मुकाबला इन्हीं दो दलों बीच हुआ था। तब कांग्रेस को भाजपा से ज्यादा सीटे मिली थीं, जिससे कमलनाथ (Kamal Nath) की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार बनी थी। लेकिन, यह सरकार ज्यादा दिन चल नहीं पाई। कांग्रेस के कुछ विधायकों के पाला बदलने से कांग्रेस की सरकार गिर गई थी। फिर, शिवराज सिंह की अगुवाई में भाजपा ने सरकार बनाई थी। इस बार जिन इलाकों पर राजनीति पंडितों की नजरें हैं, उनमें मालवा-निमार बेल्ट शामिल हैं। अक्सर कहा जाता है कि जिस पार्टी ने इस इलाके को जीत लिया, उसका सरकार बनाना पक्का है। इस इलाके में सबसे ज्यादा चर्चा इंदौर 1 सीट की है। इस सीट से कैलाश विजयवर्गीय चुनाव लड़ रहे हैं। उन्हें भाजपा का बड़ा नेता माना जाता है। उधर, कांग्रेस ने इंदौर की राऊ सीट से जीतू पटवारी को टिकट दिया है।
भाजपा ने हाई प्रोफाइल नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा
भाजपा ने इंदौर से कैलाश विजयवर्गीय को चुनावी मैदान में उतारकार चौंकाया है। यहां तक कि खुद विजयवर्गीय को उम्मीद नहीं थी कि पार्टी उन्हें चुनावी मैदान में उतारेगी। वह लंबे समय से इंदौर से जुड़े रहे हैं। लेकिन, वह जिस इंदौर 1 सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, उसे कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। यहां से कांग्रेस के संजय शुक्ला चुनाव जीतते आ रहे हैं। उनके विजयवर्गीय से अच्छे रिश्ते रहे हैं। दरअसल, भाजपा मध्य प्रदेश के चुनावों को बहुत गंभीरता से ले रही है। यही वजह है कि उसने कई सासंदों को भी इस बार विधानसभा चुनावों में उतारा है। BJP का मानना है कि सासंदों के विधानसभा चुनाव लड़ने से मामला हाई-प्रोफाइल हो जाता है। इससे न सिर्फ वह सीट खास हो जाती है बल्कि इसका उसर आसपास की सीटों पर भी पड़ता है।
इस बार इंदौर की सीटों पर रहेंगी खास नजरें
विजयवर्गीय ने कहा, "मैं चुनाव नहीं लड़ना चाहता था। लेकिन, जब मेरी पार्टी ने मुझे ऐसा कहा है तो मैंने आगे बढ़ने का फैसला किया है। मैं हनुमान की तरह हूं... मैं एक हनुमान भक्त हूं। इसलिए जो भी बेहतर होगा, मैं अपनी पार्टी के लिए करूंगा।" भाजपा इस बार इस तथ्य पर दांव लगा रही है कि इस इलाके में पहली बार वोट डालने वाले मतदाताओं की ज्यादा संख्या है। उनका भरोसा हासिल करने से चुनाव जीतने में मदद मिल सकती है। इंदौर मध्य प्रदेश के बड़े शहरों में से एक है। पिछले कई सालों से यह देश में सबसे स्वच्छ शहर का खिताब हासिल करता आया है।
गुना-ग्वालियर इलाके में सिंधिया का इम्तहान
गुना-ग्वालियर इलाके में भी भाजपा और कांग्रेस के बीच दिलचस्प लड़ाई दिख रही है। इस इलाके में विधानसभा की करीब 3 दर्जन सीटे हैं। 2020 में कांग्रेस की सरकार गिराने में इस इलाके के विधायकों की बड़ी भूमिका थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया इस इलाके के कांग्रेसी विधायकों के साथ 2020 में भाजपा में शामिल हो गए थे। इससे कमलनाथ की सरकार बनने के सिर्फ 15 महीने बाद गिर गई थी। इस बार इस इलाके की सीटों पर भाजपा को जीताने की बड़ी जिम्मेदारी ज्योतिरादित्य सिंधिया पर है। भाजपा के कार्यकर्ता भी सावधानी बरत रहे हैं। कई कार्यकर्ताओं का यह भी मानना है कि ज्योतिरादित्य लंबे समय तक कांग्रेस के नेता रहे हैं। अब उन्हें भाजपा में ज्यादा महत्व मिल रहा है।
भाजपा में मुख्यमंत्री ने नाम को लेकर तस्वीर साफ नहीं
गुना-ग्वालियर इलाके के 34 सीटों में से 26 सीटे 2018 में कांग्रेस के खाते में गई थी। राघोगढ़ भी इसी इलाके में आता है, जिसे दिग्विजय सिंह का इलाका माना जाता है। सिंह और सिंधिया की प्रतिद्वंद्विता पुरानी है। इस बार दोनों अलग-अलग दलों की ओर से चुनावी मैदान में अपनी ताकत आजमाने जा रहे हैं। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल मुख्यमंत्री के नाम को लेकर है। शिवराज सिंह चौहान कह चुके हैं कि उन्हें इस बात की परवाह नहीं कि इस बार भाजपा किसे मुख्यमंत्री बनाती है। हालांकि, उनका कहना है कि लाडली बहना योजना जैसी स्कीमों की बदौलत इस बार मतदाता भाजपा को सरकार बनाने का मौका देंगे।
कांग्रेस कमलनाथ को दोबारा बना सकती है सीएम
इस बार भी भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ना चाहती है। माना जा रहा है कि राज्य में मोदी की कई रैलियां होंगी। इस बार भाजपा के पोस्टर पर न सिर्फ शिवराज सिंह चौहान बल्कि कई दूसरे नेताओं को भी जगह दी गई है। इनमें नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाख विजयवर्गीय, प्रह्लाद पटेल, कविता पाटिदार जैसे नेता शामिल हैं। उधर, कांग्रेस में यह तय है कि पार्टी के चुनाव जीतने पर कमलनाथ मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन, दिग्जविजय सिंह की भी अनदेखी नहीं की जा सकती। सिंह राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। लेकिन, कांग्रेस दोनों के बीच में प्रतिद्वंद्विता नहीं पैदा करना चाहती।