शिवाजी के ‘हिंदवी स्वराज’ से मोदी-योगी के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ तक…जब महाराष्ट्र से दिया गया हिंदुत्व का नया संदेश

जिस शिवाजी को अपमानस्वरूप मुगल शासक औरंगजेब माउंटेन रैट या फिर पहाड़ी चूहा कहते थे उन्हीं शिवाजी के एक खत और उनके विचारों को लेकर 450 सालों से ज्यादा वक्त से चली आ रही बहस अब भी मौंजू है। कभी उसका इस्तेमाल गांधी करते हैं तो कभी नैरोजी करते हैं तो फिर तिलक से लेकर वर्तमान समय में केजरीवाल तक, चर्चा और बहस जारी है

अपडेटेड Nov 26, 2024 पर 8:11 PM
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शिवाजी के ‘हिंदवी स्वराज’ से मोदी-योगी के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ तक…जब महाराष्ट्र से दिया गया हिंदुत्व का नया संदेश

17 अप्रैल 1645 छत्रपति शिवाजी महाराज ने भविष्य के भारत को लेकर एक ऐसा खत लिखा था जिसकी चर्चा आज तक होती है। पहली बार 'हिंदवी स्वराज' टर्म का इस्तेमाल शिवाजी ने अपने इस खत में किया था। यह खत को उन्होंने दादाजी नारस प्रभु देशपांडे को लिखा था जिसमें मराठों की जीत का जिक्र कर भगवान रोहिरेश्वर को धन्यवाद दिया गया था और हिंदवी स्वराज्य की कामना की गई थी। हालांकि इस खत की प्रामाणिकता पर इतिहास के कई जानकारों ने सवाल भी खड़े किए हैं। दूसरी तरफ हिंदवी स्वराज्य टर्म की स्कॉलर अलग अलग तरीके से व्याख्या करते हैं। विलियम जैकसन इसे 'हिंदुओं का शासन' बताते हैं तो वहीं विलफ्रेड कांटवेल स्मिथ ने इसे 'विदेशी शासन से भारतीय स्वतंत्रता' के रूप में परिभाषित किया है।

आधुनिक वक्त में दादाभाई नैरोजी को यह श्रेय जाता है कि वो स्वराज को राजनीतिक शब्दकोश में फिर से लेकर आए। स्वराज को बाल गंगाधर तिलक ने भी खूब इस्तेमाल किया। महात्मा गांधी ने 1909 में हिंद स्वराज नाम की किताब लिखी जिसमें उन्होंने स्वराज की व्याख्या अपने तरीके से की। बेहद आधुनिक संदर्भ में पहले सामाजिक कार्यकर्ता रहे और अब नेता बन चुके दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी स्वराज नाम की एक किताब लिखी। आप कभी महाराष्ट्र के दिग्गज नेता शरद पवार का फेसबुक अकाउंट खोलेंगे तो कवर पिक्चर पर मराठी में कुछ ये लिखा है-'दिल्लीच्या तख्तासमोर महाराष्ट्र झुकत नाही, हा इतिहास आहे'

हिंदी में इसका अर्थ है कि 'दिल्ली के तख्त के सामने महाराष्ट्र कभी झुकता नहीं है, इसका इतिहास गवाह है'। दरअसल शरद पवार के इस वाक्य में भी शिवाजी और मराठा साम्राज्य का संदेश ही छुपा हुआ है। जिस शिवाजी को अपमानस्वरूप मुगल शासक औरंगजेब माउंटेन रैट या फिर पहाड़ी चूहा कहते थे उन्हीं शिवाजी के एक खत और उनके विचारों को लेकर 450 सालों से ज्यादा वक्त से चली आ रही बहस अब भी मौंजू है। कभी उसका इस्तेमाल गांधी करते हैं तो कभी नैरोजी करते हैं तो फिर तिलक से लेकर वर्तमान समय में केजरीवाल तक, चर्चा और बहस जारी है। सभी अपने तरह परिभाषित करते हैं लेकिन चर्चा जरूर करते हैं।


राष्ट्रीय संदेशों की जमीन महाराष्ट्र

महाराष्ट्र संदेशों की भूमि रही है जहां से कभी दुनिया के सबसे ताकतवर साम्राज्यों में से एक मुगल शासन को समाप्त करने वाले मराठा साम्राज्य का उदय हुआ तो कभी ज्योतिराव फूले, कभी भीमराव आंबेडकर जैसे विचारक निकले जिन्होंने दलितों की स्थिति को लेकर पूरे देश को झिंझोड़कर रख दिया। महाराष्ट्र से ही आजादी के बाद बाल ठाकरे जैसे नेता का उदय हुआ जो मराठी अस्मिता की बात करते-करते हिंदू हृदय सम्राट में तब्दील हो गए जिन्हें उत्तर भारत में भी जबरदस्त लोकप्रियता मिली। जबकि एक वक्त में शिवसेना पर उत्तर भारतीयों के खिलाफ अभियान चलाने के आरोप लगे थे।

दो राज्यों में चुनाव, राष्ट्रीय संदेश सिर्फ महाराष्ट्र से क्यों?

अब अगर महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव देखें तो इसमें महाराष्ट्र एक नए नारे के जरिए संदेश देता दिखता है। चुनाव के दौरान सबसे पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 'बंटेंगे तो कटेंगे' का नारा दिया। बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे अलग स्वरूप में 'एक हैं तो सेफ हैं' कहा। यह नारा महाराष्ट्र में काम कर गया लेकिन झारखंड में नहीं चला! अब विश्लेषक कह रहे हैं कि 'बंटेंगे तो कटेंगे' का नारा झारखंड में इसलिए नहीं चला क्योंकि वहां के स्थानीय मुद्दे अलग हैं। क्या महाराष्ट्र में स्थानीय मुद्दे नहीं हैं? तो फिर यह नारा सिर्फ महाराष्ट्र में ही क्यों चला? जिस नारे पर झारखंड में हार मिली उसी पर महाराष्ट्र में रिकार्डतोड़ जीत कैसे मिली? और ये नारा ऐसा चला कि चुनावी जीत के बाद भी पार्टी कार्यकर्ताओं को अपने संबोधन में पीएम मोदी ने 'एक हैं तो सेफ हैं' जैसी बात दोहराई। उन्होंने यहां तक कहा-'एक हैं तो सेफ हैं का नारा आज देश का महामंत्र बन चुका है.'

नारे पर बहस जारी

हालांकि 'बंटेंगे तो कटेंगे' पर बहस जारी है। विपक्षी इसे समाज को बांटने वाला बताते हैं तो बीजेपी के नेता इसे समाज को जोड़ने वाला बता रहे हैं। अमित शाह ने कहा था-कांग्रेस लोगों को बांटती है, जात‍ियों में बांटती है। समाज को बांटती है। सबसे ज्यादा दंगे महाव‍िकास अघाड़ी और कांग्रेस के शासनकाल में हुए हैं। कांग्रेस के समय सबसे ज्‍यादा आतंकी हमले हुए हैं। पीएम मोदी महाराष्‍ट्र की जनता को इसी वजह से आगाह कर रहे हैं।

बीजेपी टॉप लीडरशिप का फोकस

अमित शाह इस वक्त देश के गृह मंत्री हैं और उन्होंने भी इस नारे का बचाव किया है। चुनावी जीत के बाद पीएम मोदी ने कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए फिर इसका इस्तेमाल किया है। बीजेपी के सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्रियों में से एक योगी आदित्यनाथ ने इस नारे का सबसे शुरुआती इस्तेमाल किया। इससे एक बात तो साफ है कि बंटेंगे तो कटेंगे अभी आगे भी बीजेपी का मुख्य नारा रहने वाला है। इसका इस्तेमाल आगामी चुनावों में भी देखने को जरूर मिलेगा, इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए। लेकिन सबसे अहम बात ये है कि इसका संदेश महाराष्ट्र से गया है। संदशों की भूमि!

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Arun Tiwari

Arun Tiwari

First Published: Nov 26, 2024 8:11 PM

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