महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाली महा विकास अघाडी (MVA) की हार का असर अब भारतीय राष्ट्रीय विकास समावेशी गठबंधन (INDIA) ब्लॉक पर साफ देखा जा रहा है। इसका पहला संकेत कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे की ओर से बुलाई गई गठबंधन की बैठक में देखने को मिला, जिसमें तृणमूल कांग्रेस (TMC) शामिल नहीं हुई। TMC ने कहा कि उसके नेता कोलकाता में अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में व्यस्त थे, लेकिन टीएमसी को संसद सत्र के पहले दिन के बारे में पता था और इसलिए उनकी अनुपस्थिति स्पष्ट थी।
CNN-News18 ने TMC के एक शीर्ष नेता के हवाले से बताया, “तृणमूल ने उन सभी छह विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की, जहां उपचुनाव हुए थे। भारतीय जनता पार्टी (BJP) के अलावा, हमें INDIA ब्लॉक की दो पार्टियों, कांग्रेस और CPM का भी सामना करना पड़ रहा था, जिन्होंने हर सीट पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे। हमारा ब्लॉक में किसी भी पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन नहीं है, इसलिए यह ऐसा सवाल नहीं है, जिसका हमें जवाब देने की जरूरत है।"
लेकिन मामले ने तब गंभीर मोड़ ले लिया, जब टीएमसी के कल्याण बनर्जी ने कहा कि टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी को INDIA ब्लॉक का नेता बनाया जाना चाहिए।
क्या थीं राहुल की वो तीन गलतियां?
सवाल ये है कि INDIA गुट के दल गुस्सा किस बात को लेकर है? महाराष्ट्र चुनाव में क्या गलत हुआ और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ओर से ऐसी क्या बड़ी गलतियां की गईं, जिनका सहयोगी दलों पर असर पड़ा हैं? आइए जानते हैं,
वीर सावरकर और उन पर राहुल गांधी के हमले: यह कुछ ऐसा है, जिससे सेना UBT प्रमुख उद्धव ठाकरे और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) गुट के प्रमुख शरद पवार दोनों को समस्या थी। अब साथी दलों को लगता है कि इससे उन्हें चुनावों में नुकसान हुआ और इससे BJP को "बटोगे तो काटोगे" के एजेंडे में मदद मिली। लेकिन उनका कहना है कि गांधी ने इस पर ध्यान नहीं दिया और इस चेतावनी के बावजूद कि इससे नुकसान होगा, ऐसे करते रहे।
जाति जनगणना: सहयोगी दलों में से कई लोगों को लगा कि कांग्रेस BJP के उस कथन का मुकाबला करने में असमर्थ है कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो आरक्षण खत्म कर देगी। इस कथा की आग दूसरे राज्यों के चुनावों से पहले TMC, समाजवादी पार्टी (SP) और आम आदमी पार्टी (AAP) जैसे सहयोगियों को झुलसा देगी।
PM मोदी पर साठगांठ वाले पूंजीवाद में शामिल होने का आरोप: कई सहयोगियों का मानना था कि यह काम नहीं करेगा। उन्होंने गांधी से इस कहानी को आगे न बढ़ाने के लिए कहा था, लेकिन उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया।
असल में, सूत्रों का कहना है कि गांधी के समूह के भीतर भी कुछ लोगों ने उन्हें "संविधान खतरे में" के खिलाफ सलाह दी थी। लेकिन गांधी ने इसे मुख्य मुद्दा मानते हुए हार मानने से इनकार कर दिया।
यही वह चीज है, जिसे कई लोग "जिद्दीपन" कहते हैं, जिसने अब सहयोगियों को आहत किया है।