महाराष्ट्र की प्रचंड जीत पर खुशियां मना रही बीजेपी के लिए झारखंड के नतीजे हैरान करने वाले हैं। झारखंड ऐसा राज्य है जिसकी जिम्मेदारी बीजेपी ने अपने फायरब्रांड नेता और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा के हाथों में सौंपी थी। हिमंता बीजेपी के रणनीतिकार नेताओं में माने जाते हैं और झारखंड में पार्टी को जीत की पूरी उम्मीद थी। जीत का एक और कारण यह भी है कि सन 2000 में झारखंड बनने के बाद अब तक शासन लगभग 14-15 वर्षों तक बीजेपी के हाथ में रहा है। माना जा रहा था कि हेमंत सोरेन की सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों का असर होगा और राज्य में बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार बनेगी। लेकिन सारी कयासबाजी और प्लान धरे के धरे रह गए। बीजेपी की हार के तीन सबसे अहम कारण दिखते हैं।
झारखंड में भारतीय जनता पार्टी की हार के कई कारण हो सकते हैं लेकिन एक सबसे अहम है। वह मुद्दा बांग्लादेशी अप्रवासियों का। दरअसल पूरे झारखंड में 24 जिले हैं जो पांच प्रमंडल के अंतर्गत आते हैं। ये प्रमंडल हैं- दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल, उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल, संथाल परगना प्रमंडल, कोल्हान प्रमंडल, पलामू प्रमंडल। अब अगर बात करें अप्रवासियों के मुद्दे की तो ये प्रमुख समस्या के रूप में संथाल परगना में है।
बीजेपी ने एक परगना से संबंधित मुद्दे को पूरे राज्य में अहम मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ा। यानी अन्य प्रमंडलों के मुद्दे पीछे छूट गए। झारखंड ऐसा राज्य है जहां चुनाव में स्थानीय मुद्दों का जोर चलता रहा है। निर्दलीय विधायक बड़ी पार्टी के नेताओं को पटखनी देते आए हैं। निर्दलीय नेता रहे मधु कोड़ा राज्य के मुख्यमंत्री तक बन गए थे। संभव है कि अप्रवासियों के खिलाफ मुद्दा बीजेपी की दूरगामी प्लानिंग का हिस्सा हो लेकिन यह झारखंड में बुरी तरह फेल होता दिखा है।
अप्रवासियों के मुद्दे पर बीजेपी जबरदस्त रूप से आक्रामक रही। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और इंडिया गठबंधन पर जमकर निशाने साधे गए। आदिवासी बहुल राज्य में बीजेपी अप्रवासियों के मुद्दे को इस रूप में पेश कर रही थी कि इससे आदिवासी समाज का नुकसान हो रहा है। हिमंता बिस्व सरमा ने कहा था-जिस तरह आदिवासियों की संख्या कम होती जा रही है, आज अगर नया परिसीमन होता है तो संथाल में कितनी आदिवासी सीटें बचेंगी। सब कुछ आदिवासियों के हाथ से निकल जाएगा। पार्टी का यह कार्ड चुनाव में बिल्कुल धराशायी हो गया।
कल्पना सोरेन का प्रचार और मंईयां योजना
झारखंड में मुख्यमंत्री रहते हुए हेमंत सोरेन पर आरोप लगे और उन्हें जेल तक जाना पड़ा। चंपाई सोरेन के सीएम बनने और उसके बाद के पूरे प्रकरण में हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने भी लोगों के बीच भावनात्मक रूप से प्रचार किया। हेमंत सोरेन के जेल में रहने के दौरान कल्पना सोरेन ने मजबूती से पार्टी की कमान संभाले रखी। वह लगातार लोगों के बीच इस बात को पहुंचाने में कामयाब रहीं कि उनके पति को गलत आरोपों में फंसाया गया है।
इसके अलावा हेमंत सरकार की एक योजना का जीत में बेहद अहम माना जा रहा है। चुनाव से पहले मंईयां योजना की घोषणा करके हेमंत सोरेन ने महिला वोटर्स को अपने पाले में रखने का बड़ा कार्ड खेला था। इस योजना के तहत प्रदेश की महिलाओं को हर महीने 1000 रुपये देने की शुरुआत हुई। चुनाव से ठीक पहले इसे 2500 रुपए कर दिया गया।
अभी तक दो तीन राज्यों में इस तरह योजनाओं का चुनावी जीत पर सीधा असर देखा गया है। इसमें मध्य प्रदेश में बीजेपी की प्रचंड जीत के बाद अब महाराष्ट्र जैसे राज्य भी शामिल हैं। हेमंत सोरेन को भी इसका फायदा मिला है। कर्नाटक में कांग्रेस भी इसी तरह की योजनाओं का वादा कर प्रचंड चुनावी जीत हासिल कर चुकी है।
चुनाव में बीजेपी की तरफ से कोई चेहरा नहीं होना
झारखंड के चुनाव में भी बीजेपी ने सीएम फेस का ऐलान न करने की रणनीति अपनाई थी। दूसरी तरफ विपक्ष के पास हेमंत सोरेन के रूप में एक लोकप्रिय चेहरा था जिसके पास शीबू सोरेन की बड़ी राजनीतिक विरासत थी। हालांकि झारखंड में बीजेपी के पास कई बड़े दिग्गज नेता हैं लेकिन किसी को भी चेहरा नहीं बनाया गया। इंडिया अलायंस के सामने यह चुनौती नहीं थी। चुनाव से पहले चंपाई सोरेन को अपने खेमे में लाकर बीजेपी ने आदिवासी वोटर्स पर पकड़ बनाने की कोशिश की थी। लेकिन चंपाई के चेहरे का भी पार्टी को कोई खास लाभ होता नहीं दिखा।