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Budget 2022: वित्त मंत्री के सामने छोटे-मंझोले कारोबारियों को आर्थिक संकट से उबारने की चुनौती

अपडेटेड Jan 15, 2022 पर 12:34 PM
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व्यापारी तबके के बीच आत्महत्या की सबसे ज्यादा घटनाएं कर्नाटक में हुईं

बजट पेश होने के तुरंत पहले के इस वक्त में जरा गौर करें कि चुनावी राजनीति के मैदान में कौन सी बड़ी खबर गूंज रही है ? केंद्र की सत्ता पर काबिज होने का रास्ता जिस उत्तरप्रदेश से खुलता है, वहां सत्ताधारी बीजेपी के मंत्रिमंडल में शामिल नेता इस्तीफा दे रहे हैं और, इस्तीफा ठेठ आर्थिक-नीति की कमियों को गिनाते हुए दिया जा रहा है।

मिसाल के लिए, याद करें यूपी के श्रम एवं रोजगार मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य का इस्तीफा। मंत्री मौर्य ने ट्वीट में लिखा कि वे `दलितों, पिछड़ों, किसानों, बेरोजगारों एवं छोटे-लघु एवं मध्यम श्रेणी के व्यापारियों के प्रति घोऱ उपेक्षात्मक रवैया अपनाये जाने के कारण योगी सरकार के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे रहे हैं।

चूंकि इस बार के बजट को चुनावमुखी ही होना है सो देश की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ट्वीट में बताये कारणों की उपेक्षा नहीं कर सकतीं। वे जानती हैं कि मंत्री मौर्या के इस्तीफे के पीछे जातियों-समुदायों के चुनावी समीकरण साधने के स्थानीय कारण या स्वयं नेताजी की निजी महत्वाकांक्षाओं का हाथ चाहे जितना हो मगर इस बात से इनकार कर पाना मुश्किल है कि इस देश के अत्यंत छोटे, मंझोले और मध्यम दर्जे के कारोबारी और उनका व्यवसाय गहरे संकट में है। बीते साल भर के समाचारों ने बार-बार इस संकट की पुष्टी की है।


व्यापारी और आत्महत्याः आंकड़े दे रहे गवाही

ग्रामीण भारत की आर्थिक बदहाली के एक साक्ष्य के रुप हाल तक समाचारों में ये गिनाया जाता रहा है कि किस साल कितने किसानों ने आत्महत्या की। देखा ये जाता था कि किसानों की आत्महत्या की संख्या में कमी आ रही है या नहीं। लेकिन बीते साल ये पूरा सीन बदल गया । गुजरे साल नवंबर में नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो(एनसीआरबी ) के हवाले से अखबारों के कोने में दबी-सिमटी सी खबर ये छपी कि साल 2020 यानी कोरोनाबंदी की मार झेलने वाले पहले साल में व्यापारी तबके के लोगों के बीच आत्महत्या के मामले साल 2019 की तुलना में 50 प्रतिशत बढ़ गये हैं और 2020 में व्यापारी तबके में शामिल लोगों ने किसानों की तुलना में कहीं ज्यादा तादाद में आत्महत्या की है।

Budget 2022: क्या इस बार का बजट किसानों के मौजूदा असंतोष को कम कर पायेगा

नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों में आया कि साल 2020 में आत्महत्या करने वाले किसानों की तादाद 10,677 रही जबकि व्यापारी-समुदाय के कुल 11,716 लोगों ने अपने हाथों अपनी जीवन-लीला समाप्त करने का घनघोर मजबूरी से उपजा जघन्य रास्ता चुना। व्यवसायी समुदाय के बीच आत्महत्या करने वाले इन लोगों में 4356 को एनसीआरबी ने ट्रेडसमैन की श्रेणी में रखा है जबकि 4226 को वेंडरस् की श्रेणी में। शेष को `अन्य व्यापारी वर्ग` में रखा गया है।

इस आंकड़े की कुछ और ज्यादा खुर्दबीनी करें तो नजर आएगा कि साल 2019 की तुलना में 2020 में ट्रेडसमेन की श्रेणी में आने वाले लोगों के बीच आत्महत्या करने वालों की संख्या 49.9 प्रतिशत (2906 से बढ़कर 4356) बढ़ी है और अगर व्यापार-जगत की सभी श्रेणियों(वेंडरस्, ट्रेडसमेन आदि) को ध्यान में रखकर सोचें तो नजर आयेगा कि एक साल के भीतर व्यापारी तबके के लोगों में आत्महत्या करने वालों की संख्या 29 प्रतिशत बढ़ी है.

व्यापारी तबके के बीच आत्महत्या की सबसे ज्यादा घटनाएं(1772) कर्नाटक में हुईं। इस सूबे में साल 2020 में व्यापारी तबके के बीच आत्महत्या करने वालों की तादाद एक साल के दरम्यान 103 प्रतिशत बढ़ी(साल 2019 में कर्नाटक में आत्महत्या करने वाले व्यापारी तबके के लोगों की संख्या 875 थी)।

दूसरे नंबर पर रहा महाराष्ट्र। कोविड की सबसे गहरी मार झेलने वाले राज्यों शुमार महाराष्ट्र में वेंडर्स, ट्रेडसमैन तथा स्मॉल बिजनेस ओनर की श्रेणी में शामिल लोगों के बीच आत्महत्या करने वालों की संख्या में 25 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे व्यापारिक तबके में शुमार कुल 1610 लोगों ने 2020 में आत्महत्या की।

व्यापारी तबके के बीच आत्महत्या का रास्ता चुनने वाले लोगों की संख्या के मामले में तमिलनाडु तीसरे नंबर पर रहा। इस सूबे में 2019 के मुकाबले 36 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी के साथ कुल 1417 व्यापारियों ने आत्महत्या की।

ध्यान रहे कि अत्यंत छोटे, मंझोले और मध्यम दर्जे के कारोबारियों की तादाद के मामले में महाराष्ट्र देश में सबसे अव्वल है। उद्योग आधार पोर्टल पर दर्ज सूचना के मुताबिक इस सूबे में रजिस्टर्ड एमएसएमई(सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम दर्जे के उद्योग) की संख्या 28 लाख 38 हजार है। रजिस्टर्ड एमएसएमई के मामले में तमिलनाडु दूसरे नंबर पर है। तमिलनाडु में रिजस्टर्ड एमएसएमई की संख्या 15 लाख 40 हजार है।

जाहिर है, फिर छोटे और मंझोले दर्जे के सबसे ज्यादा कारोबारी कोरोनाबंदी के सालों में इन्हीं राज्यों में दुर्दशा की चपेट में आये हैं।

छोटे कारोबारी और बजट की चुनौती

जैसे आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को किसानों की आर्थिक दुर्दशा के एक साक्ष्य के तौर पर गिनाया जाता है वैसे ही हम मानकर चल सकते हैं कि कोरोनाबंदी के दो सालों में सबसे गहरी आर्थिक चोट सहने वालों में छोटे और मंझोले दर्जे के व्यापारी भी शामिल हैं और इस तबके के बीच बढ़ी आत्महत्या की घटनाओं की मुख्य वजह आर्थिक है।

जैसे किसानों की दुर्दशा को दूर करने के मामले में सरकारी सोच का एक बड़ा हिस्सा इस बात पर केंद्रित रहा है कि किसानों को दिए जाने वाले कर्जे में बढ़ोत्तरी कर दी जाये कुछ वैसी ही सोच छोटे कारोबारियों के मामले में भी चली आ रही है। छोटे व्यापारियों के लिए अक्सर आकर्षक दरों पर कर्ज देने के उपाय किये जाते हैं।

कोरोनाबंदी के सालों में यह उपाय कारगर नहीं रहा। लॉकडाऊन की हालत में लोग बाजार-दुकान जाना कम कर दें और घर बैठे ऑनलाइन आर्डर करें तो छोटे व्यापारियों के लिए उम्मीद की कौन सी किरण बची रह जाती है ?

छोटा व्यवसाय बड़ी छोटी पूंजी से चलता है, बाजार में माल लंबे समय तक ना खपे तो छोटा व्यवसायी कच्चे माल की खऱीद के लिए कहां से पैसे लाये और किस उम्मीद पर तैयार माल को अपने भंडार में रखे ? बाजार में खपाये गये माल की बकाया रकम वसूल नहीं हो पाती और नये माल के खपत की उम्मीद नहीं रह जाती तो छोटी पूंजी के भरोसे बेहतर भविष्य के सपने सजाने वाले व्यापारी और उसके परिवार के लिए आर्थिक-संकट में फंसने की ही नियति बचती है।

बात तो ठीक-ठीक समझने के लिए यहां यूपी का ही उदाहरण लें, जहां सरकार पर छोटे और मंझोले दर्ज के व्यापारियों की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए श्रम एवं रोजगार मंत्री मौर्य का इस्तीफा हुआ है। यूपी अत्यंत छोटे, लघु एवं मध्यम दर्जे के व्यावसायिक इकाइयों की संख्या के मामले में देश में तीसरे नंबर पर है। यहां एमएसएमई श्रेणी की 12 लाख 78 हजार रजिस्टर्ड इकाइयां हैं।

चूंकि योगी सरकार का जोर सूबे को हिन्दू संस्कृति मूल भूमि के रुप में विकसित करने का रहा है और इसके लिए अयोध्या के घाटों पर लाखों की संख्या में दीये जलाने से लेकर काशी के मंदिर में विशिष्ट पूजा करने और प्रयागराज में कुंभ-स्नान करने तक के बड़े सरकारी प्रयास किये जाते रहे हैं— सो उदाहरण के रुप में हॉस्पिटलिटी से जुड़े व्यवसाय की बात करना ठीक होगा।

यूपी में जिन जगहों को हिन्दू-संस्कृति के केंद्र प्रतीक के रुप में विकसित करते हुए वहां बार-बार ट्रेड एंड टूरिज्म को बढ़ावा देने और इसी क्रम में बिजनेस के अवसर बढ़ाने की बात की जाती है- वहां हॉस्टिपिटलिटी से जुड़े उद्यम और उद्यमियों की दशा कोरोनाबंदी के समय क्या हुई? पर्यटक आयेंगे नहीं तो होटल चलेंगे कैसे और कुटीर उद्योगों में तैयार किया जाने वाला हस्तशिल्प बिकेगा कैसे ? किन ग्राहकों के बीच रुद्राक्ष की माला से लेकर बनारस की साड़ियों और कन्नौज के इत्र की नुमाइश होगी ? जीएसटी तो फिर भी देना पड़ेगा ना टूरिज्म और हॉस्पिटलिटी से जुड़ी इकाइयों को ?

कोरोनाबंदी के दौर में छोटे व्यापारियों ने अपनी नियति देखी है कि सेवा और सामान बिक नहीं रहे, कर्जा चढ़ा हुआ है, व्यवसाय को आगे के दिनों के लिए बनाये रखने का स्थायी खर्च बना हुआ है और नये माल को तैयार करने की कोई सूरत नजर नहीं आ रही क्योंकि बाजार या तो ठप्प चल रहा है (कोरोनाबंदी में) या फिर मंदा है (चरणबद्ध ढंग से लॉकडाऊन में ढील दिये जाने पर) और बाजार में जो रकम बकाया है उसकी वसूली नहीं हो पा रही।

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के सामने छोटे और मंझोले दर्जे के व्यापारियों को कोरोना की तीसरी लहर की आहट के साथ शुरु हुए इस साल में आर्थिक-संकट की इसी नियति से उबारने की चुनौती होगी।

(लेखक सामाजिक-सांस्कृतिक स्कॉलर हैं)

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First Published: Jan 15, 2022 12:34 PM

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