भुवन भास्कर
भुवन भास्कर
रोजगार भारत में सिर्फ सामाजिक-आर्थिक ही नहीं, एक राजनीतिक मुद्दा भी है और इसलिए लगभग हर चुनाव, चाहे वो राज्यों के हों या फिर राष्ट्रीय- में रोजगार एक चुनावी मुद्दा भी होता है। ऐसे में जब भारत के लोकसभा चुनावों में सिर्फ 2 वर्षों का समय बाकी बचा है, यह स्वाभाविक ही है 2022-23 के लिए पेश होने जा रहे आम बजट में वित्त मंत्री रोजगार पैदा करने पर विशेष ध्यान दें। विशेष तौर पर तब जब 2014 लोकसभा चुनावों से पहले किए गये अपने उस वादे के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर विपक्षी दलों के निशाने पर रहते हैं, जिसमें उन्होंने युवाओं के लिए 1 करोड़ रोजगार पैदा करने का वादा किया था।
हालांकि रोजगार सृजन पर सरकार के अपने दावे हैं और वे कितने भी सही या गलत हों, उससे इस सच्चाई पर कोई असर नहीं पड़ता है कि इस समय देश जिस मोड़ पर खड़ा है, वहां किसी भी सरकार के लिए रोजगार सृजन शीर्ष प्राथमिकताओं में से एक होना चाहिए। इसके दो कारण हैं। पहला, कोरोना महामारी के कारण पिछले दो वर्षों में अर्थव्यवस्था का पटरी से उतरना है, जिसके कारण एक बहुत बड़ा वर्कफोर्स बाजार से बाहर हुआ है।
आंकड़ों की जुबानी बात करें तो जनवरी 2020 में देश में बेरोजगारी दर जो 7.2% थी, वह मार्च और अप्रैल महीनों में बढ़कर क्रमशः 23.5% और 22% पर पहुंच गई। बाद के महीनों में यह हालांकि वापस 6-7% के दायरे में लौटी, लेकिन दिसंबर 2020 में इसने फिर 9% का स्तर पार किया और मई-जून 2021 में जब कोविड का दूसरा दौर आया तो यह लगभग 12% तक पहुंच गई।
अब कोविड के तीसरे दौर की शुरुआत के साथ ही हालात फिर बिगड़ने लगे हैं और CMIE द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर 2021 में भारत की बेरोजगारी दर एक बार फिर 4-महीनों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। कई अर्थशास्त्री मान रहे हैं कि ओमिक्रोन वेरिएंट का यह दौर आर्थिक स्थिति में बहुत मुश्किल से हासिल सुधार पर पानी फेर सकता है। ऐसे में 2022-23 का आम बजट सरकार के लिए वक्त रहते उद्योगों और रोजगार बचाने का एक मौका है।
दूसरा कारण मध्यम से लंबी अवधि में भारतीय वर्कफोर्स की स्थिति है। अगस्त 2020 में कंसल्टेंसी फर्म मैकेंजी ने एक रिपोर्ट जारी की जिसमें यह अनुमान जताया गया कि 2030 तक भारत में 6 करोड़ अतिरिक्त लोग भारत के गैर-कृषि लेबर मार्केट में प्रवेश करेंगे और 3 करोड़ लोग कृषि क्षेत्र से गैर-कृषि क्षेत्र में शिफ्ट करेंगे। यानी अगले 8 वर्षों में औद्योगिक क्षेत्र को 9 करोड़ लोगों को रोजगार देने के लिए तैयार होना होगा। रिपोर्ट के मुताबिक इनके अलावा 5.5 करोड़ अतिरिक्त महिलाएं भी इस लेबर मार्केट में आ सकती हैं, यदि सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर महिला सशक्तीकरण और बराबरी की योजनाओं को ठीक प्रकार से क्रियान्वित किया गया। यह एक बड़ी चुनौती है, जिसके लिए सरकार को अभी से प्रयास करने होंगे।
मैन्युफैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन में तेजी लाने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट में भूमि सुधार के लिए जमीन तैयार की जा सकती है
वर्ष 2022-23 का आम बजट इस दिशा में एक मजबूत शुरुआत हो सकता है क्योंकि तमाम संकेत इस ओर इशारा कर रहे हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था अपने बुरे दौर से निकल चुकी है और इस पूरे साल 2021-22 के दौरान 9% से ज्यादा की वृद्धि दर हासिल कर सकती है। इकरा ने 2022-23 के दौरान भी जीडीपी के 9% की दर मेंटेन रहने का अनुमान जताया है। यह लक्ष्य के अनुकूल है क्योंकि मैकेंजी की रिपोर्ट के मुताबिक देश यदि सारी अनुमानित लेबर फोर्स को रोजगार देना चाहता है, तो उसे 2030 तक 8% की वृद्धि दर हासिल करनी होगी। यह एक चुनौतीपूर्ण लक्ष्य है और सरकार को इसे हासिल करने के लिए अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में गंभीर सुधार करने होंगे।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन 2022-23 के बजट में मैन्युफैक्चरिंग, रियल एस्टेट, कृषि, फूड प्रोसेसिंग, रिटेल और हेल्थकेयर सेक्टरों पर खास ध्यान देना चाहिए क्योंकि मैकेंजी का अनुमान है कि सिर्फ ये 6 सेक्टर ही 2030 तक भारतीय जीडीपी में 6 लाख करोड़ डॉलर जोड़ सकते हैं। भारत सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को 2024-25 तक 5 और 2030 तक 10 लाख करोड़ डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा है। यदि वित्त मंत्री ने आगामी बजट को इन 6 सेक्टरों में आवश्यक और सार्थक सुधारों की शुरुआत के अवसर के तौर पर इस्तेमाल किया, तो वह केंद्र सरकार के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
रियल एस्टेट में सेक्टर में 2020 और 2021 में सुधार के लक्षण दिखने शुरू हो गये हैं। JLL इंडिया के मुताबिक 2021 की तीसरी तिमाही में दिल्ली-एनसीआर, मुंबई और पुणे के बाजारों में ऑफिस स्पेस के उपयोग में सालाना आधार पर 8% की बढ़ोतरी देखी गई। जुलाई-सितंबर 2021 के दौरान भारत के 8 माइक्रो मार्केट में लगभग 56000 घर बिके, जो साल-दर-साल आधार पर 59% की वृद्धि है।
अब निर्मला सीतारमन रजिस्ट्रेशन फीस और ड्यूटी में कमी कर लोगों को घर खरीदने के लिए प्रोत्साहित कर सकती हैं। इसके अलावा कंस्ट्रक्शन में तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ाने से संबंधित नीतियों के जरिए रियल एस्टेट में तेजी लाई जा सकती है, जो कि रोजगार पैदा करने का एक बड़ा जरिया बन सकता है क्योंकि रियल एस्टेट में तेजी का मतलब सीधे ईंट, सीमेंट, स्टील, इलेक्ट्रिकल्स और सैनिटरी उद्योगों से मांग में वृद्धि भी होती है।
मैन्युफैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन में तेजी लाने के लिए बजट में भूमि सुधार के लिए जमीन तैयार की जा सकती है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के पास जो बिना इस्तेमाल की जमीन है, यदि उसे मुक्त किया जाए तो एक अनुमान के मुताबिक उद्योगों के लिए जमीन का खर्च 25% तक कम हो सकता है। इससे उद्योगों को विस्तार में आसानी होगी और रोजगार के लिए नए अवसर बनेंगे। श्रम सुधार तो वैसे भी मोदी सरकार ने संसद से पारित करा लिया है और अप्रैल से ये लागू हो सकता है। निश्चित तौर पर इसके सकारात्मक परिणाम होंगे और औद्योगिक निवेश बढ़ने से रोजगार सृजन होगा।
कृषि में सुधार एक टेढ़ी खीर है। सरकार अभी-अभी इस मोर्चे पर मुंह की खाकर अपना घाव सहला रही है और इस बात की संभावना कम ही है कि फिलहाल कृषि सुधारों पर कोई और कदम उठाया जाएगा। लेकिन कृषि निर्यात को बढ़ावा देने, वेयरहाउसिंग में निवेश को तेजी लाने और फूड प्रोसेसिंग उद्योग को छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंचाने जैसे कदम हैं, जिन्हें सरकार उठा सकती है। इन क्षेत्रों में ग्रामीण युवाओं को बड़ी संख्या में रोजगार मिल सकता है।
इनके साथ ही सरकार को MSME पर अपना फोकस और बढ़ाने की जरूरत है क्योंकि यही हैं जो वास्तव में शहरों में युवाओं का पलायन रोक कर वास्तव में रोजगार को छोटे शहरों तक पहुंचा सकते हैं। MSME सेक्टर में अब तक सरकार का ज्यादातर प्रयास ऋण को आसान करने तक सीमित रहा है। इसे आगे बढ़ाकर ईज ऑफ डूईंग बिजनेस तक ले जाने की आवश्यकता है। ज्यादा से ज्यादा युवाओं को रोजगार सृजन का माध्यम बनने के लिए नए उद्यम लगाने के लिए प्रोत्साहित करके ही सचमुच उस पैमाने पर रोजगार सृजन किया जा सकता है, जिसकी आवश्यकता है।
(लेखक कृषि और आर्थिक मामलों के जानकार हैं)
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