Budget 2023: फिस्कल डेफिसिट को 3% पर लाने की कोशिश होनी चाहिए, पूर्व वित्त सचिव सुभाष गर्ग ने सरकार को दी सलाह

Budget 2023: सुभाष गर्ग ने कहा कि कैपिटल एक्सपेंडिचर बढ़ाना ठीक है। लेकिन, ऐसे कई पूंजीगत खर्च हैं, जिनसे जीडीपी की ग्रोथ बढ़ाने में ज्यादा मदद नहीं मिलती है। डिफेंस एक्सपेंडिचर, एयर इंडिया एसेट होल्डिंग कंपनी में इक्विटी इनवेस्टमेंट और भारत संचार निगम लिमिटेड में इक्विटी इनवेस्टमेंट इसके कुछ उदाहरण हैं

अपडेटेड Dec 29, 2022 पर 7:21 PM
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सुभाष गर्ग ने कहा कि सरकार को जितनी जल्द हो सके फिस्कल डेफिसिट को 3-3.5 फीसदी तक लाने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन, अभी इसकी उम्मीद कम दिख रही है।

Budget 2023: सरकार को फिस्कल डेफिसिट (Fiscal Deficit) GDP के 3 फीसदी तक लाने की कोशिश शुरू कर देनी चाहिए। पिछले तीन साल से फिस्कल डेफिसिट लगातार 6 फीसदी से ऊपर बना हुआ है। उधार के पैसे पर ज्यादा समय तक निर्भर रहना ठीक नहीं है। यह कहना है पूर्व फाइनेंस सेक्रेटरी (Finance Secretary) सुभाष चंद्रा का। चंद्रा ने मनीकंट्रोल से बातचीत में अगले यूनियन बजट (Union Budget 2023), इकोनॉमी की सेहत, पूंजीगत खर्च सहित कई मसलों पर खुलकर चर्चा की। उन्होंने बताया कि मौजूदा हालात में फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) को किन चीजों को अपनी प्रायरिटी में शामिल करनी चाहिए।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी, 2023 को यूनियन बजट पेश करेंगी। वह ऐसे वक्त नया यूनियन बजट पेश करने जा रही हैं, जब ग्लोबल इकोनॉमी (Global Economy) पर मंदी का खतरा मंडरा रहा है। इधर, इंडिया में इकोनॉमी बेहतर स्थिति में है।

गर्ग ने कहा कि सरकार को जितनी जल्द हो सके फिस्कल डेफिसिट को 3-3.5 फीसदी तक लाने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन, अभी इसकी उम्मीद कम दिख रही है। अगर आप सरकार के फिस्कल मैथ को देखें तो सरकार के लिए उधार लेना मजबूरी है। उसे अपने बढ़े खर्च को पूरा करने के लिए कर्ज लेना पड़ेगा। मेरा मानना है कि सरकार फाइनेंशियल ईयर 2023-24 या 2024-25 में फिस्कल डेफिसिट को जीडीपी के 6 फीसदी से कम पर नहीं ला सकेगी। इंटरेस्ट पर होना वाला खर्च पहले ही जीडीपी के 3.5 फीसदी को पार कर चुका है। यह सरकार के लिए सबसे तेजी से बढ़ने वाला खर्च बन गया है।


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पूर्व फाइनेंस सेक्रेटरी ने कहा कि सरकार फूड और फर्टिलाइजर सब्सिडी और अपनी मुफ्त योजनाएं बनाते समय फिस्कल डेफिसिट के बारे में नहीं सोचती है। सरकार ने नेशनल फूड सिक्योरिटी स्कीम (NFSA) के तहत 80 करोड़ लोगों को पहले 5 किलोग्राम और फिर 10 किलोग्राम मुफ्त खाद्यान्न देने का ऐलान किया। फिर इसे बढ़ाकर तीन साल के लिए कर दिया गया। एक व्यक्ति के 5 किलोग्राम खाद्यान कैलरी की जरूरत पूरी करने के लिए पर्याप्त था। इसे बढ़ाकर दोगुना करना पैसे की बर्बादी है। उधर, फर्टिलाइजर सब्सिडी भी बहुत बढ़ गई है। इस साल यह करीब 2.29 लाक करोड़ रुपये हो गई है। सरकार इस तरह की सब्सिडी पर अपने खर्च को ज्यादा नहीं बढ़ा सकती।

उन्होंने कहा कि कैपिटल एक्सपेंडिचर बढ़ाना ठीक है। लेकिन, ऐसे कई पूंजीगत खर्च हैं, जिनसे जीडीपी की ग्रोथ बढ़ाने में ज्यादा मदद नहीं मिलती है। डिफेंस एक्सपेंडिचर, एयर इंडिया एसेट होल्डिंग कंपनी में इक्विटी इनवेस्टमेंट और भारत संचार निगम लिमिटेड में इक्विटी इनवेस्टमेंट इसके कुछ उदाहरण हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर खासकर रेलवे, नेशनल हाईवे, मेट्रो आदि पर होने वाले पूंजीगत खर्च का कई तरह से लाभ मिलता है। लेकिन, इस काम को सही प्लानिंग और ठीक तरह से करने की जरूरत है।

इनफ्लेशन के बारे में गर्ग ने कहा कि इनफ्लेशन कम होना चाहिए और इसमें स्थिरता होनी चाहिए। ऐसा आम लोगों के हित में है। इसलिए सरकार और RBI को इसके लिए कोशिश करना जरूरी है। हालांकि, इनफ्लेशन ऐसी चीज है, जो पूरी तरह से सरकार के नियंत्रण में नहीं होती है। लेकिन, सरकार अपने फिस्कल डेफिसिट को कम कर इनफ्लेशन को ज्यादा बढ़ने से रोक सकती है। वह अपने खर्च की उत्पादकता बढ़ाने और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को इनफ्लेशन के कुप्रभाव से बचाने की कोशिश कर सकती है। इनफ्लेशन और ग्रोथ के बीच जन्मजात दुश्मनी नहीं है। ग्रोथ को बढ़ावा देने के वास्ते सरकार के लिए हाई इनफ्लेशन को बर्दाश्त करना जरूरी नहीं है। दरअसल, ऐसी पॉलिसीज से न तो ग्रोथ बढ़ती है और न ही इनफ्लेशन कंट्रोल में आता है।

Rakesh Ranjan

Rakesh Ranjan

First Published: Dec 19, 2022 5:09 PM

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