जयंत ठाकुर
जयंत ठाकुर
Budget 2023: पुरानी कहावत है कि टैक्स और मौत से बचना नामुमकिन है। इसका मतलब है कि हम लाख उपाय कर लें हमें टैक्स चुकाना ही पड़ेगा। लेकिन, टैक्स के नियम अगर आसान हों तो हमारा दर्द कम हो जाता है। अभी टैक्स के नियम बहुत जटिल हैं। इनकम टैक्स एक्ट, 1961 के सेक्शन 10 का उदाहरण लिया जा सकता है। यह 100 पेज में है। इसके अलावा 50 पेज हैं, जिसमें पिछले सालों में किए गए संशोधन के फुटनोट्स दिए गए हैं। इस तरह की जटिलताएं सिर्फ बिजनेस, कंपनियों और ज्यादा इनकम वाले लोगों तक सीमित नहीं हैं। नौकरीपेशा वाले लोग, रिटायर्ड लोग और छोटे कारोबार करने वाले लोग भी इससे परेशान हैं। इसलिए टैक्स सिस्टम को आसान बनाने के गंभीर प्रयास करने की जरूरत है।
टैक्स के नियमों में दो तरह के बदलाव करने की जरूरत
यूनियन बजट 2023 में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण दो चीजों पर फोकस कर सकती हैं। पहला है टैक्स के आसान नियम और उचित टैक्स रेट्स। दूसरा है लॉन्ग टर्म और शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस के लिए अलग-अलग एसेट क्लास के एक जैसे नियम। प्रोग्रेसिव टैक्स रेट्स लोगों और इकोनॉमी के लिए अच्छे हैं। इसमें जैसे-जैसे इनकम बढ़ती है टैक्स बढ़ता जाता है। इसमें अमीर लोगों को ज्यादा टैक्स चुकाना पड़ता है। कम इनकम वाले लोगों को कम टैक्स चुकाना होता है। इंडिया में टैक्स रेट्स बहुत ज्यादा रहे हैं। कई बदलाव करने के बाद भी एक समय ऐसा था जब सबसे ज्यादा इनकम स्लैब के लिए टैक्स रेट 60 फीसदी था।
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टैक्स नियमों में बार-बार बदलाव करना ठीक नहीं
बड़ा मसला टैक्स नियमों में जटिलता और रेट्स में बार-बार होने वाला बदलाव है। इस तरह के बदलावों का बहुत असर पड़ता है। इनकम की रेंज पर टैक्स रेट में बार-बार बदलाव किए जाते हैं। इसकी कुछ वजह इनफ्लेशन है। हालांकि, सच्चाई यह है कि टैक्स रेट्स और इनफ्लेशन के बीच कभी सामंजस्य नहीं रहा। सरकार ने हमेशा ज्यादा से ज्यादा कलेक्ट किया है। कुछ साल पहले सरकार ने एक स्कीम पेश की थी, जिसमें कुछ शर्तों के साथ टैक्स रेट्स कम रखे गए हैं। इससे जटिलता बढ़ी है।
कैपिटल गेंस टैक्स के नियम बहुत जटिल
कॉर्पोरेट टैक्स रेट्स को लेकर स्पेशल ट्रीटमेंट की वजह से भी डबल टैक्सेशन की स्थिति बनी है। पहले कंपनियों को ज्यादा टैक्स चुकाना पड़ता है। फिर डिवडेंड पर टैक्स लगता है। इससे छोटे-बड़े शेयरधारकों पर टैक्स का बोझ बढ़ जाता है। इससे जटिलताएं भी बढ़ती है और कंप्लायंस मुश्किल हो जाता है। इसके बाद कैपिटल गेंस पर भी टैक्स रेट्स के नियम जटिल हैं। जिस तरह से लॉन्ग-टर्म और शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस का निर्धारण होता है, उससे जटिलता और बढ़ जाती है।
कैपिटल गेंस टैक्स तब लगता है जब किसी एसेट को बेचने से फायदा होता है। इसमें जमीन, इमारत, शेयर आदि शामिल हैं। ज्यादातर मामलों में एसेट को 3 साल तक रखने के बाद बेचने पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस टैक्स लगता है। इससे ज्यादा समय तक एसेट को रखने के बाद बेचने पर लॉन्ट टर्म कैपिटल गेंस टैक्स लगता है। लॉन्ग टर्म गेंस के मामले में दो तरह से रियायत मिलती है। पहला, इसमें टैक्स का रेट कम है तो दूसरा इसमें इंडेक्सेशन की सुविधा मिलती है।
रिटायर्ड लोगों को टैक्स में राहत देने की जरूरत
टैक्स के कुल स्ट्रक्चर को आसान बनाने की जरूरत है। कम इनकम वाले लोग खासकर रिटायर्ड लोग जिन्होंने टैक्स चुकाकर अपनी पूरी जिंदगी देश की सेवा में लगाई है, उनके लिए टैक्स के नियम आसान होने चाहिए। उन्हें न सिर्फ उनके प्रोडक्टिव लाइफ के लिए रिवॉर्ड देने की जरूरत है बल्कि उनकी जरूरतों का भी ख्याल रखने की जरूरत है। खासकर बुजुर्ग और दिव्यांग लोगों के मामले मे इसकी ज्यादा जरूत है।
ऐसे में टैक्स के नियमों में बड़ा बदलाव करने की जरूरत है। फिर, इसके बाद यह आश्वासन होना चाहिए कि इसमें पांच साल तक कोई बदलाव नहीं होगा। अच्छा होगा कि इसमें 10 साल तक बदलाव नहीं किया जाए। टैक्स रेट्स में स्थिरता नहीं होने से लोगों को प्लानिंग में दिक्कत आती है।
(जयंत ठाकुर चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं। यहां व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं। इन्हें इस प्रकाशन के विचार नहीं मानना चाहिए।)
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